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बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख घटने लगी है। महाराज के गढ़ ग्वालियर में ही कम हो रही है उनकी पूछ परख या महाराज खुद ग्वालियर को भुला बैठे हैं। ये जानकारी नहीं कुछ सवाल हैं। बस थोड़ी देर गौर से इस आलेख को पूरा पढ़िए समझिए। उसके बाद आप भी ये सवाल पूछेंगे। इन सवालों की वजह क्या है वो हम आपको तफ्सील से बताएंगे और क्यों महाराज अपने प्रिय ग्वालियर से दूर हो रहे हैं इसकी भी वजह बताएंगे। आप आखिर तक साथ बने रहिए और, कमेंट सेक्शन में बताइए कि क्या आपको भी लगता है कि अब सिंधिया का दौर ग्वालियर में खत्म हो रहा है या फिर दबदबा कम हो रहा है।
नहीं भुलाए जा सकते हैं ये तीन जुमले
बीजेपी में अब एमपी की राजनीति में तीन जुमले ऐसे हैं जो कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे। अब इस जुमलेबाजी में ताजा जुमला एड हो गया है। लेकिन, इस बार मामला बहुत सीरियस है। जो एक बड़ी राजनीतिक उथलपुथल की तरफ इशारा कर रहा है। पहले पुराने जुमले आपको याद दिला दें।
साल 2018 में जब बीजेपी हारी तब विपक्ष में हो कर भी शिवराज सिंह ने जुमला उछाला, टाइगर अभी जिंदा है। इसके कुछ ही दिन बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनबन की खबरें आईं। सिंधिया के सड़क पर उतरने के बयान पर कमलनाथ ने बड़े बेरूखी से कह दिया तो उतर जाएं। इसके कुछ दिन बाद सिंधिया ने जुमला उछाला उसूलों पर आए तो टकराना जरूरी है। ये बयान बहुत अलग अलग समय पर दिए गए। लेकिन मध्य प्रदेश के उस सियासी अध्याय के पन्ने अगर आप अब पलट कर देखेंगे तो शायद लगेगा कि कड़ी से कड़ी कहीं न कहीं जुड़ी हुई है। खैर हम इतिहास को ज्यादा रिवाइज नहीं करेंगे। ये जिक्र भी सिर्फ आपको उस साल की सियासी उठापटक को याद दिलाने के लिए ही किया गया है।
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सिंधिया खेमे से आया नया जुमला
ताजा मामला फिर ऐसे ही एक जुमले से है। इत्तेफाक कह लीजिए या स्ट्रेटजी कह लीजिए। पर, इस बार भी जुमला सिंधिया खेमे से ही आया है। ये बयान दिया है सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने। जो मोहन कैबिनेट में शामिल हैं। सिंधिया की सरपरस्ती में ग्वालियर से ही चुनाव जीतते आ रहे हैं और मंत्री भी बनते आ रहे हैं। हाल ही में तोमर ने एक भाषण दिया है जिसके बाद से सियासी हलचलें तेज हैं। तोमर ने एक सार्वजनिक मंच से कहा कि आपके बिना ग्वालियर का विकास नहीं हो रहा, कुछ मजबूरियां होगी...लेकिन महाराज आपको सीमा रेखा को लांघना ही पड़ेगा। आपके अंदर की पीड़ा और दर्द हम समझते हैं महाराज। तोमर ने ये बात ग्वालियर के विकास से जोड़ कर कही।
तोमर का बयान, निकाले जा रहे सियासी मायने
उन्होंने मंच से ही ग्वालियर के विकास का इतिहास भी बताया। तोमर ने कहा कि 1956 में ग्वालियर का विकास जिस तरह से हो रहा था वैसा अब नहीं हो रहा है। तोमर के इस बयान के बहुत से सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। तोमर बीजेपी सरकार के जिम्मेदार मंत्री है। खुद सिंधिया मोदी कैबिनेट में अहम मंत्रालय देख रहे हैं। ग्वालियर से सांसद भरत सिंह कुशवाह हैं। उसके बाद भी तोमर सिंधिया से ग्वालियर को लेकर आस लगाए बैठे हैं।
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महाराज से की सीमा लांघने की अपील
लेकिन ग्वालियर के विकास से ज्यादा बयान के दूसरे हिस्से की चर्चा कुछ ज्यादा है। जिसमें तोमर महाराज से सीमा लांघने की अपील कर रहे हैं। ग्वालियर के विकास की गुहार लगाना अलग बात है और इसकी खातिर सीमा लांघने की गुजारिश करना थोड़ा अलग और गंभीर मसला बना जाता है। वो भी ऐसे समय में जब सिंधिया खुद उस मंच पर मौजूद थे। जहां से तोमर ने ये बात कही। और यही वो जुमला है जिसकी वजह से मैंने आपको मध्य प्रदेश में सियासी भूचाल लाने वाले कुछ पुराने जुमले याद दिलाए। तोमर किस सीमा रेखा को लांघने की बात कर रहे हैं। क्या वो भूल गए कि जब सिंधिया ने एक बार सीमा लांघी थी तब मध्य प्रदेश की सरकार हिली ही नहीं थी गिर भी गई थी। और, उसके बाद से कांग्रेस दोबारा सत्ता में आने के लिए संघर्ष ही कर रही है। एक बार फिर तोमर ऐसी रिक्वेस्ट करके महाराज को क्या हिंट देना चाहते हैं।
ग्वालियर में हावी हो चुकी है गुटबाजी?
क्या सिंधिया किसी भी वजह से ग्वालियर में पहले से कम एक्टिव हैं। क्या ग्वालियर के मामले में सिंधिया की सुनवाई अब बीजेपी में कम हो गई है या फिर उनके दखल को सीमित कर दिया गया है। भरे मंच से सिंधिया समर्थक का ये जो दर्द छलका है। उसके पीछे क्या राज है। तोमर के इस भाषण पर बीजेपी में फिलहाल खामोशी है लेकिन कांग्रेस ने इसे हथिया लिया है। कांग्रेस के मुताबिक सिंधिया पहले ही कांग्रेस की सीमा लांघ चुके हैं। अब सीमा लांघ कर कहां जाएंगे।
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तोमर की इस अपील से ये तो क्लियर हो ही जाता है कि ग्वालियर में गुटबाजी हावी हो चुकी है। सांसद कुशवाहा और सिंधिया का गुट ग्वालियर में आमने सामने हैं। और, जिस हिसाब से तोमर का दर्द छलका है उसे सुनकर लगता है कि कुशवाहा का गुट सिंधिया खेमे पर भारी पड़ रहा है। उनके रुतबे को कम करने की सिलसिलेवार कोशिश भी बीजेपी में नजर आती है। इस बार उनके खेमे के मंत्रियों को भी कैबिनेट में कम जगह मिली है। सिर्फ तोमर, तुलसी राम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को ही कैबिनेट में जगह मिली है। वैसे एंदल सिंह कंसाना भी कैबिनेट में शामिल हैं, लेकिन वो इन तीन के मुकाबले सिंधिया के जरा कम करीबी हैं। जिसमें दो सीधे सीधे परेशान दिख रहे हैं। गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ तो कांग्रेस सहित बीजेपी के ही भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव और अजय विश्नोई ने मोर्चा खोला हुआ है। तोमर सीधे सीधे किसी की रडार पर नहीं है। पर उनका बयान साफ कर रहा है कि सिंधिया खेमे में दर्द तो है।
क्या सिंधिया लांघेंगे सीमा रेखा
क्या पार्टी में उनकी सुनवाई नहीं होती। क्या अफसर और पार्टी के दूसरे पदाधिकारी उनकी सुनते नहीं है। ऐसी क्या वजह है कि तोमर ने भरे मंच से ऐसी अपील कर डाली। वैसे भी सिंधिया समर्थक को जब भी कोई तकलीफ होती है या कोई इनसिक्योरिटी सताती है तब वो पार्टी आलाकमान की शरण में जाने की जगह सिंधिया की शरण में ही जाते हैं। कांग्रेस की ये परंपरा सिंधिया गुट ने बीजेपी में जारी रखी है। इस बार खुलेआम उनके समर्थक को ये कहना पड़ा है। अब देखना ये है कि इस बार सीमा रेखा लांघी जाती है तो घमासान ग्वालियर बीजेपी के गलियारों के भीतर ही होता है या फिर प्रदेश स्तर पर भी इसकी धमक सुनाई देती है।
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