News Strike: Mauganj की घटना पर पूर्व सांसद का गैर जिम्मेदाराना बयान

मध्य प्रदेश की सियासत में आपने ऐसे शब्द कम ही सुने होंगे कि फलां क्षेत्र मजहबी रूप से काफी ज्यादा सेंसिटिव है या फलां इलाके में फलां पार्टी के बाहुबली का बोल बाला है। ये उत्तर प्रदेश की राजनीति की तासीर रही है।

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Harish Divekar
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news strike 24 march

Photograph: (the sootr)

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क्या मध्य प्रदेश की सियासी तासीर बदलने वाली है या बदलने की कोशिश है। हम आज जिस मुद्दे पर आपका ध्यान खींचने वाले हैं, उसे बहुत गौर से पढ़िए और समझिएगा। क्योंकि ध्यान इधर उधर भटका तो शायद आपको ये मामला सिर्फ एक मामुली सा बयान लगे। लेकिन ये कोई आम बयान नहीं है। ये वो स्टेटमेंट है जो दिल्ली तक बवाल मचा रहा है। और, ये इशारा कर रहा है कि इस तरह की बयानबाजी पर समय रहते लगाम नहीं कसी तो मध्य प्रदेश की सियासत भी उत्तर प्रदेश या बिहार जैसी एग्रेसिव हो सकती है। यूं एमपी पॉलीटिकली डल स्टेट माना जाता है। लेकिन इसका फायदा जनता को ही होता है क्योंकि ये एक स्टेबल अवस्था है। पर एक बयान से अगर सियासत में भूचाल आ जाए तो सोचिएगा कि इसका हम पर और आप पर और आने वाले वोटर्स पर क्या असर पड़ सकता है।

मध्य प्रदेश की सियासत में आपने ऐसे शब्द कम ही सुने होंगे कि फलां क्षेत्र मजहबी रूप से काफी ज्यादा सेंसिटिव है या फलां इलाके में फलां पार्टी के बाहुबली का बोल बाला है। ये उत्तर प्रदेश की राजनीति की तासीर रही है। उत्तर प्रदेश से सटा होने के बावजूद मध्य प्रदेश अप्रत्याशित रूप से शांत और पॉलिटकली स्थिर राज्य रहा है। सिवाय हम 2020 का उदहारण भूल जाएं तो। लेकिन, अब मध्य प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने की कोशिश होती दिख रही है।

दिल्ली से एमपी तक गूंज रहा पटेल का बयान

प्रदेश में सत्ता पक्ष के कई नेता आपको धर्म से जुड़े बयान देते हुए सुनाई देंगे। इस बार एक नेता ने ऐसा बयान दिया है जिस पर चिंता और चिंतन दोनों ही बेहद जरूरी है। हम आपसे जिस नेता की बात कर रहे हैं वो नेता हैं रीवा के पूर्व सांसद बुद्ध सेन पटेल। पटेल बसपा से सांसद रहे हैं। लेकिन उनके तार अलग अलग पार्टियों से जुड़े हुए हैं जिसमें से एक बीजेपी भी है। फिलहाल पहले हम उनके बयान की बात करते हैं। पटेल हाल ही में जातिगत जनगणना से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल हुए। ये कार्यक्रम दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हुआ था। इस कार्यक्रम में उन्होंने जो कहा वो बयान दिल्ली से एमपी तक में गूंज रहा है।

पटेल ने पिछले दिनों मऊगंज में हुई दिल दहला देने वाली घटना या यूं कहें कि हिंसा को जायज ठहराया है और इसे स्वाभिमान की जंग भी बताया है। पटेल ने इस कार्यक्रम में साफ कहा कि कोल के खत्म होने के बाद उस समुदाय के लोगों की नाराजगी बढ़ गई और समुदाय ने एक टीम की तरह काम किया। जिसने कोल को मारा था उसे भी मार दिया और बीच बचाव में आए पुलिस वालों पर भी हमला किया। जिसका अंजाम क्या हुआ ये किसी से छिपा नहीं है। पटेल इतने पर ही नहीं रुके। असल आग उन्होंने इतने बयान के बाद उगली।

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वर्ग संघर्ष फिर से गर्माने का डर

ये बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। हम चाहें तो आप को आगे का बयान बता सकते हैं, लेकिन एक जिम्मेदार संस्थान होने और अपनी नैतिक जिम्मेदारी को नहीं भूलते हुए वो बयान यहां नहीं दोहराएंगे। क्योंकि पटेल के बयान से ही उस सेंसिटिव इलाके में फिर से तनाव बढ़ने का खौफ पहले ही पैदा हो चुका है। पटेल का बयान जितना तेजी से वायरल हो रहा है उतनी ही उसकी निंदा भी की जा रही है। पुलिस को फिर से वर्ग संघर्ष गर्माने का डर है जिसकी वजह से पटेल पर एफआईआर दर्ज करने की भी बात हो रही है।

याद दिला दें कि मऊगंज में जो कुछ भी हुआ वो घटना करीब नौ दिन पुरानी हो चुकी है। मामला 15 मार्च का है। पूरी घटना को फिर से बताने की यहां कोई जरूरत नहीं है। आप पुरानी सुर्खियों में उसे आसानी से तलाश सकते हैं। आपको ये बता दें कि मऊगंज में धीरे धीरे स्थितियों को सामान्य करने की कोशिश जारी है। लेकिन इस तरह की बयानबाजी से हालात दोबारा खराब हो सकते हैं।

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दल बदल की आदत के शिकार हैं बुद्धसेन पटेल

इस घटना की बजाय ये जान लेते हैं बुद्धसेन पटेल का सियासी इतिहास क्या रहा है। बसपा से पूर्व सासंद भी दल बदल की आदत के शिकार हैं। बसपा से वो विधायक और सांसद दोनों रह चुके हैं। इसके अलावा वो समाजवादी पार्टी, परिवर्तन पार्टी, तेलांगाना राष्ट्र समिति, भाजपा सहित कई दलों में रहे और फिर बसपा में ही चले गए। बीजेपी में वो प्रदेश संगठन मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।

एक गंभीर घटना पर गैर जिम्मेदाराना बयान देने के बाद पूर्व सांसद ने उस पर सफाई भी दी है। पटेल ने कहा कि लोग बार बार मऊगंज की घटना के बारे में पूछ रहे थे। इसलिए उन्हें बयान देना पड़ा। उन्होंने किसी की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए ये बयान नहीं दिया है। बयान से मुकर जाना उनके लिए आसान हो सकता है। लेकिन आम मतदाता पर इसका क्या असर पड़ता है ये जरूर देखा जाना चाहिए।

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तनाव बढ़ने पर कौन होगा जिम्मेदार ?

उनके एक बयान की वजह से अगर तनाव दोबारा बढ़ा तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। क्या एक जनप्रतिनिधि होने के नाते पटेल खुद उन हालातों की नैतिक जिम्मेदारी लेंगे। और, सिर्फ पटेल ही क्यों, इस तरह समुदाय विशेष पर टिप्पणी करने का चलन लगातार बढ़ रहा है। जिसकी वजह से होने वाले तनाव का शिकार आम आदमी बनता है। तो ये आवाज क्यों नहीं उठती कि ऐसे बयानों की जिम्मेदारी भी वही सियासतदां लें और उन पर कार्रवाई भी हो।

उत्तर प्रदेश में इस तरह के बयानों से सियासत का गर्माना आम बात रही है। कभी संभल, कभी मथुरा तो कभी कुछ और। अब क्या एमपी भी उसी तर्ज पर चलने को तैयार हो रहा है या किया जा रहा है। एक सवाल ये भी है कि क्या एमपी में इस तरह की सियासत अपना असर दिखा सकेगी। जो भी होगा उसका असर चुनावों पर नजर आएगा। जिनमें अभी तीन साल का समय बाकी है। पर, क्या तब तक एमपी में ऐसे बयान आम होंगे। अगर हुए तो उसका अंजाम क्या होगा और उसका क्या तोड़ हो सकता है। ये सोचिए और कमेंट सेक्शन में बताइए ताकि आपके विचार को हम हुक्मरानों तक पहुंचा सकें। और, एक जिम्मेदार पत्रकार होने का हक अदा कर सकें।

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न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर न्यूज स्ट्राइक MP News News Strike Harish Divekar News Strike