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मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित श्रीमंत राजमाता विजयाराजे सिंधिया मेडिकल कॉलेज के एक छात्र का मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। डॉ. उमेश नागर, जिन्होंने नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (नीट पीजी 2024) के माध्यम से एमडी फिजियोलॉजी की सीट हासिल की थी, उन्हें इंग्लैंड की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में पीएचडी करने का अवसर मिला है। पीएचडी कार्यक्रम 1 अक्टूबर 2025 से शुरू होना है। लेकिन कॉलेज द्वारा मूल दस्तावेज और NOC (अनापत्ति प्रमाणपत्र) न लौटाने से वे मुश्किल में आ गए।
30 लाख का बांड बना मुश्किल
एमडी कोर्स शुरू करने के बाद डॉ. नागर ने फरवरी 2025 में कॉलेज को अपने सभी मूल दस्तावेज सौंप दिए थे। नियमों के अनुसार 30 लाख रुपए का बांड भी भरना पड़ा। इस बांड की शर्त है कि अगर छात्र बीच में सीट छोड़ता है तो उसे पूरी राशि जमा करनी होगी। कॉलेज का तर्क है कि अगर वह सीट छोड़ देगा तो सार्वजनिक कोष को नुकसान होगा क्योंकि सत्र के बीच में सीट किसी और को नहीं दी जा सकती।
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लिवरपूल में पीएचडी छात्र के लिए सुनहरा अवसर
डॉ. नागर का कहना है कि वे अपने दस्तावेज और NOC सिर्फ सत्यापन के लिए चाहते हैं ताकि इंग्लैंड में पीएचडी के लिए वीज़ा और अन्य औपचारिकताएं पूरी की जा सकें। उन्होंने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि पीएचडी की पढ़ाई (जिसकी अवधि 4 वर्ष है) पूरी होने के बाद वे भारत लौटकर एमडी की पढ़ाई जारी रखेंगे। इसके लिए वे हलफनामा देने को भी तैयार हैं। उनका कहना है कि अगर दस्तावेज समय पर नहीं मिले तो लिवरपूल विश्वविद्यालय में पीएचडी का सुनहरा अवसर हाथ से निकल जाएगा।
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अन्य मामलों का भी दिया हवाला
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आदित्य सांघी ने अदालत को बताया कि पूर्व में भी इसी तरह के कई मामलों में जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर खंडपीठों ने छात्रों को उनके दस्तावेज NOC के साथ लौटाने का अंतरिम आदेश दिया है। राजस्थान और बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी समान आदेश पारित किए हैं। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार और नेशनल मेडिकल कमीशन ने भी राज्यों को सीट छोड़ने की बांड नीति पर पुनर्विचार करने और इसे समाप्त करने की सिफारिश की है।
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छात्र को मिलो हाईकोर्ट से अंतरिम राहत
ग्वालियर हाईकोर्ट में जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की डिविजनल बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश पारित कि याचिकाकर्ता हलफनामा देंगे साथ ही पूरा मामला अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। यदि कोर्ट भविष्य में आदेश देती है, तो उसे बांड राशि (30 लाख रुपए) या दस्तावेज वापस करना होगा। फिलहाल शिवपुरी के सिंधिया मेडिकल कॉलेज को निर्देश दिया गया है कि 2 सितंबर 2025 से पहले डॉ. नागर को उनके सभी मूल दस्तावेज उचित पावती के साथ लौटा दिए जाएं। प्रतिवादी पक्ष को 10 दिन के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का भी समय दिया गया है। कोर्ट ने यह साफ किया गया कि यह आदेश केवल अंतरिम है और मामले की सुनवाई मेरिट के आधार पर होगी।
बांड पॉलिसी पर सवाल
यह मामला सिर्फ एक छात्र के भविष्य से जुड़ा नहीं है, बल्कि पूरे देश की मेडिकल शिक्षा प्रणाली में प्रचलित सीट छोड़ने की बांड नीति पर भी सवाल उठाता है। छात्रों का तर्क है कि यह नियम अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है और इसे अनुचित करार दिया जाना चाहिए। वहीं कॉलेज और राज्य सरकारें मानती हैं कि बीच में सीट छोड़ने से सार्वजनिक संसाधनों का नुकसान होता है।
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