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बीजेपी में बड़े बदलाव के बाद अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस में भी बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। बदलाव से बात शुरू हुई है तो ये याद दिला दूं कि दिल्ली में आप बुरी तरह हारी है। और, इसका असर एमपी में भी देखने को मिलेगा। और, अगर जो बदलाव अब कांग्रेस करने जा रही है, वो ठीक तरह से कर पाती है। मतलब यह कि कलह और गुटबाजी से उभर कर कर पाती है तो शायद कांग्रेस इस सिचुएशन का फायदा उठा सकती है। कांग्रेस किस बदलाव की तरफ जा रही है और आम आदमी पार्टी की हार और बदलाव के बीच क्या हो सकता है कनेक्शन।
बीजेपी के बाद कांग्रेस भी जिलाध्यक्ष बनाने में जुटी
बीजेपी ने काफी माथा पच्ची के बाद अपने जिलाध्यक्ष बदले हैं। अब कांग्रेस भी ऐसे ही बड़े बदलाव का मूड में आ चुकी है। खबर है कि कांग्रेस भी अब हर जिला लेवल पर नए कलेवर में नजर आने की कोशिश शुरू करने वाली है। जिसकी शुरुआत जिलाध्यक्ष पद से ही होगी।
एक बार याद दिला दूं कि बीजेपी ने साठ से ज्यादा जिलाध्यक्ष नियुक्त किए हैं। अब कांग्रेस भी जिलाध्यक्ष बनाने में जुटने वाली है। वैसे तो ये काम पार्टी में बड़े नेताओं की रायशुमारी से होता रहा है। लेकिन इस बार कांग्रेस एक अलग मॉडल पर काम करने की तैयारी में है। इस बार जिलाध्यक्ष की घोषणा सिर्फ बंद कमरे में मीटिंग करने के बाद नहीं हो जाएगी। न ही बड़े नेताओं के समर्थकों को मौका मिलेगा। बल्कि इस बार कांग्रेस भी प्रोपर फील्ड वर्क के बाद इन नामों का ऐलान करेगी। इसका जिम्मा भी जीतू पटवारी और उमंग सिंघार संभालेंगे। जो हर जिले का दौरा करेंगे। जमीनी कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करेंगे और फिर किसी फैसले पर पहुचेंगे।
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पटवारी-सिंघार करेंगे अलग-अलग जिलों का दौरा
बताया जा रहा है कि पीसीसी चीफ जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी अलग-अलग जिलों का दौरा करेंगे, जिसके बाद कांग्रेस भी तीन साल पुराने जिलाध्यक्षों को बदल सकती है, जबकि नए बने जिलों में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां करेगी। खुद जीतू पटवारी विंध्य का जिम्मा संभालने निकल पड़े हैं। उमंग सिंघार की शुरूआत बुंदेलखंड से होगी। ये दोनों ही नेता हर जिले के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे। मेल मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर सकते हैं।
2028 के चुनाव पर फोकस
कांग्रेस इस तैयारी के जरिए अब सीधे साल 2028 के चुनाव पर फोकस कर रही है। इसलिए ये सारी भागदौड़ की जा रही है। ये बात अलग है कि फाइनल फैसला दिल्ली में बैठे आलाकमान ही लेंगे। सारी रिपोर्ट उनके सामने सब्मिट होगी और फिर फैसले पर मुहर लगेगी। अब कांग्रेस की तरफ से जो खबरें आ रही हैं। उन्हें माने तो इस बार किसी और नेता का कोई दखल नहीं होगा। जीतू पटवारी और उमंग सिंघार ही सीधे कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। नाम तय करेंगे। और सीधे आलाकमान से संपर्क भी करेंगे। इस प्रक्रिया से मिला फीडबैक ही नए जिलाध्यक्ष के चयन का आधार बनेगा।
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कई जिलों में अव्यवस्थित हालत में कांग्रेस
इस पूरी कवायद के तहत प्रदेश के हर जिले का जिलाध्यक्ष बदला जाएगा। फिलहाल कांग्रेस बहुत अव्यवस्थित हालत में हैं। करीब पांच जिले ऐसे हैं जहां कांग्रेस के पास जिलाध्यक्ष ही नहीं है। इन में रायसेन, कटनी, रतलाम ग्रामीण शामिल है। खंडवा में शहर और ग्रामीण दोनों जिलाध्यक्षों के पद खाली हैं। ये खाली पद भरे जाएंगे और पुराने जिलाध्यक्ष भी बदले जाएंगे। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बाहर से नहीं, बल्कि अपनों से ही है। क्योंकि जीतू पटवारी ने जितनी बार नई टीम से जुड़े फैसले लिए हैं वो हर बार विवादों में जरूर उलझे हैं। बड़े नेताओं का दखल या दबाव उन्हें फैसले बदलने पर मजबूर करता रहा है। क्या जिलाध्यक्ष पद की नियुक्ति के समय कांग्रेस इस दखल और दबाव से बच सकेगी। क्योंकि कहने को ये भले ही जिलाध्य़क्ष का पद है लेकिन बहुत महत्वपूर्ण पद होता है। इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि बीजेपी जैसी पार्टी में अपने अपने समर्थक को ये पद दिलाने के लिए दिग्गजों ने पूरी ताकत झौंक दी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह चौहान तक सब अपने अपने खास को ये पद दिलाना चाहते थे।
जिलाध्यक्ष पद को लेकर खूब है मारामारी
कांग्रेस भले ही ढाई दशक से ज्यादा समय से सत्ता से बाहर है पर वहां भी जिलाध्यक्ष पद को लेकर मारामारी कम नहीं होगी। इस बार कहा भी ये जा रहा है कि दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जैसे बड़े नेताओं का दखल ज्यादा नहीं चलेगा। साल 2028 के चुनाव के लिए कांग्रेस नई ऊर्जावान टीम के साथ मैदान में उतरना चाहती है।
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दिल्ली चुनाव का एमपी में भी दिखेगा असर
पिछले चुनाव तक आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन रही थी। कुछ प्रदेशों में आम आदमी पार्टी कांग्रेस का विकल्प बन चुकी थी। जो लोग बीजेपी को नहीं चुनना चाहते थे। पर कांग्रेस भी उनकी च्वाइस नहीं थी, ऐसे मतदाता आम आदमी पार्टी का रुख कर रहे थे। लेकिन दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार ने एक मैसेज बहुत लाउड एंड क्लीयर दे दिया है। वो ये कि अगर अलग अलग लड़े तो दोनों में से किसी का भला नहीं हो सकता। इसका असर एमपी में भी जरूर दिखाई देगा। आप और कांग्रेस का गठबंधन तो अब मुश्किल ही दिखाई देता है। पर ये बात भी जरूर है कि अब मतदाताओं के बीच आप को विकल्प चुनने का खतरा भी बहुत हद तक कम हो चुका है।
यानी अब अगर कांग्रेस भरपूर तैयारी करके मैदान में उतरती है तो उसके वोट कटने का खतरा भी कम हो सकता है। देखना ये है कि क्या कांग्रेस में पूरी दमदारी से नई टीम का ऐलान होता है। और, फिर बिना किसी कलह के उस टीम को एक्सेप्ट कर लिया जाता है। कांग्रेस अगर ये करने में कामयाब रही तो कोई दोराय नहीं कि वो खुद से ही एक बड़ी जंग जीत जाएगी।
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