News Strike : जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में दो दिग्गजों की नहीं चल रही बिसात, क्या क्षेत्र में घटेगी साख?

मध्यप्रदेश में बीजेपी के 57 जिलों के जिलाध्यक्षों के नामों का ऐलान हो चुका है, जबकि अभी भी कई जगह पेंच अटका हुआ है। पार्टी ने कुल 62 जिलों के जिलाध्यक्ष तैनात करने का फैसला किया है...

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Harish Divekar
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News Strike District Heads appointment Photograph: (thesootr)

News Strike : एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी। दूध का दूध और पानी का पानी होना। मध्यप्रदेश में बीजेपी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति का मामला भी कुछ ऐसा ही हो गया है। अब किस पुराने और दिग्गज नेता की धाक कायम है और किसकी नहीं। ये सब जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से पता चल रहा है। 
खासतौर से दो दिग्गजों की साख तो वाकई इस नियुक्ति को लेकर दांव पर आ गई है। ये दो ऐसे दिग्गज है जो कभी सीएम पद के मजबूत दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन फिर मोहन केबिनेट में मंत्री बनकर ही संतोष करना पड़ा। मंत्रियों की बात करें तो वहां भी ये दोनों दिग्गज सबसे सीनियर मंत्री हैं। उसके बाद भी अपने पसंदीदा जिलाध्यक्ष नियुक्त करवाना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है।

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बात का असर इन दोनों ही दिग्गज नेताओं के समर्थकों पर जरूर पड़ेगा। दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के दो पुराने दिग्गज जहां चूक रहे हैं वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया बाजी मारने में कामयाब रहे हैं। 

बीजेपी का 62 जिलाध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला

सबसे पहले ये बता दूं कि इस सेगमेंट की तैयारी होने तक बीजेपी के 57 जिलों के जिलाध्यक्षों के नामों का ऐलान हो चुका था, जबकि अभी भी कई जगह पेंच अटका हुआ है। पार्टी ने कुल 62 जिलों के जिलाध्यक्ष तैनात करने का फैसला किया है। 18 जनवरी तक तो लिस्ट पर लिस्ट आती रही, लेकिन उसके बाद अचानक इस पर ब्रेक लग गया। करीब पांच जिलों में ये काम फिर से अटक गया है। और, इसकी वजह है दिग्गजों की आपसी खींचतान।

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सबसे दिलचस्प मुकाबला है इंदौर और नरसिंहपुर में

हम आपको बताते हैं कि इस मामले में सियासी पेंच असल में कहां फंस रहा है। जिले के प्रभारी मंत्री या उस जिले से ताल्लुक रखने वाले मंत्री, सांसद या विधायक इस कोशिश में हैं कि उनके पसंदीदा जिले में उनके पसंदीदा व्यक्ति को ही ये जिम्मेदारी मिले। बस इसी सोच के साथ रस्साकशी जारी है। सबसे दिलचस्प मुकाबला होता जा रहा है इंदौर और नरसिंहपुर में। इंदौर के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय लाख कोशिशों के बावजूद अपनी पसंद के दावेदार के नाम पर मुहर नहीं लगवा सके हैं। दूसरे दिग्गज नेता हैं प्रहलाद पटेल। उनकी भी पसंद को अब तक मंजूरी नहीं मिल सकी है। इसलिए नरसिंगपुर में नाम के ऐलान में वक्त लग रहा है। ये दोनों ही वो नेता हैं जो आलाकमान के करीबी होने के साथ साथ प्रदेश के सीनियर लीडर्स में शामिल हैं। सीएम पद के दावेदार भी रह चुके हैं।

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शिवपुरी में सिंधिया दबदबा कायम रखने में कामयाब

कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल को अपने समर्थकों को पद दिलाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है और अभी भी ये गारंटी नहीं है कि उनके पसंदीदा व्यक्ति को पद मिल ही जाएगा। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मामले में अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे हैं। छह साल की सदस्यता वाले क्राइटेरिया को दांव पर रखकर शिवपुरी जिले की कमान जसवंत जाटव को सौंप दी गई है। जो सिंधिया समर्थक हैं। ऐसे में अगर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता और समर्थकों का विश्वास अपने दिग्गज नेताओं पर कमजोर पड़ जाए तो कुछ गलत भी नहीं कहा जा सकता।

पहले बात करते हैं इंदौर की। जहां जिलाध्यक्ष की नियुक्ति ये तय करेगी कि किस में कितना है दम। इंदौर के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय या फिर चंद साल पहले बीजेपी में आए तुलसी राम सिलावट। जिनके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेता का बैकअप है। 

दो नेताओं की प्रतिष्ठा की जंग बना जिलाध्यक्ष का नाम 

जिलाध्यक्षों की लिस्ट में इंदौर शहर और इंदौर ग्रामीण दोनों ही जगह के नामों का ऐलान अभी अटका हुआ है। वजह है कैलाश विजयवर्गीय और तुलसी राम सिलावट जो अपनी अपनी पसंद पर अड़े हुए हैं। अब ये दो नेताओं के बीच प्रतिष्ठा की जंग बन चुकी है। ये जंग हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि कैलाश विजयवर्गीय निर्विवादित रूप से बीजेपी के बड़े नेता हैं। सीनियोरिटी में वो सीएम मोहन यादव से भी कहीं ज्यादा आगे हैं। तुलसीराम सिलावट के मुकाबले भी बिना किसी शक वो पार्टी में बड़ा ओहदा रखते हैं। उसके बाद भी उन्हें अपना पसंदीदा चेहरा लाने में इतनी मगजमारी करनी पड़ रही है। विजयवर्गीय चाहते हैं कि इंदौर में उनके समर्थक चिंटू वर्मा को पद दिलाना चाहते हैं, लेकिन तुलसी सिलावट ने इस में अड़ंगा लगा दिया है। तुलसी सिलावट की पसंद हैं अंतर दयाल जो कलोता समाज से आते हैं। मामले में ट्विस्ट ये है कि उषा ठाकुर और मनोज पटेल दोनों ने तुलसी सिलावट की पसंद पर सहमति जता दी है और सबसे खास बात खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अंतर दयाल के नाम को ही सेकंड किया है।

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कुछ नामों के बीच इंदौर जिलाध्यक्ष का मामला अटका

विजयवर्गीय ने दूसरी पसंद के रूप में दीपक जौन टीनू का नाम भी आगे बढ़ाया है और सुमित मिश्रा भी उनकी पसंद में शामिल हैं। इंदौर की रेस में गौरव रणदिवे भी शामिल हैं जो इस पद को हासिल करने के लिए इंदौर से भोपाल नाप रहे हैं। इंदौर के ही कुछ नेता मुकेश राजावत का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। इन नामों के बीच इंदौर में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति का मामला अटक कर रह गया है। 
नरसिंहपुर जिले के हालात भी कुछ अलग नहीं है। यहां भी दिग्गज की साख ही दांव पर है। इस जिले के लिए पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल अपने भाई जालम पटेल को अध्यक्ष बनवाना चाहते थे। बाद में खुद उनके खेमे से नया नाम सामने आया और बीन ओसवाल की पैरवी शुरू हो गई। यहां पेंच फंसाया स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने। जो राजीव पटेल को ये पद दिलवाना चाहते हैं। इसलिए नरसिंहपुर में भी बीजेपी संगठन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा है।

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नाम फाइनल होना ताकत का अहसास तो कराएगा...  

इन दो जिलों के अलावा निवाड़ी और छिंदवाड़ा का मामला भी अटका हुआ है। इसमें छिंदवाड़ा का नाम चौंकाने वाला है क्योंकि छिंदवाड़ा तो किसी बड़े बीजेपी नेता का गढ़ भी नहीं है। उसके बाद भी वहां जिलाध्यक्ष फाइनल हो पाना मुश्किल हो रहा है। नाम की लिस्ट का क्या है वो तो आगे पीछे आ ही जाएगी, लेकिन नाम फाइनल होने के बाद नेताओं को अपने-अपने जिले में अपनी ताकत का अहसास जरूर हो जाएगा।

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