News Strike : OBC आरक्षण पर हाईकोर्ट का सख्त फैसला, जवाब या जुर्माना, क्या चुनेंगी सरकार?

मामला ये है कि जबलपुर हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर की है। ये नाराजगी ओबीसी यानी कि पिछड़े वर्ग को 51 फीसदी आरक्षण देने के मामले पर जताई गई है। आइए जानते हैं पूरा मामला आखिर है क्या...

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Harish Divekar
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News Strike OBC Reservation Photograph: (thesootr)

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News Strike : ओबीसी आरक्षण पर सरकार की मंशा क्या है। क्या सरकार बार-बार इस आरक्षण से पीछे हट रही है। ये सवाल तब उठ रहे हैं जब मध्यप्रदेश में करीब 18 साल तक एक ओबीसी सीएम की सरकार रही है। चेहरा बदलने के बाद भी वही दस्तूर कायम है, लेकिन ओबीसी समाज को अपने हक की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। अलग-अलग मामले अब तक अदालत में अलग-अलग पड़ाव पर पहुंचे है। एक मामले में अब हाई कोर्ट ने ही आखिरी अल्टीमेटम दे दिया है। इससे पहले इस आरक्षण के खिलाफ लगी एक याचिका को भी निरस्त किया जा चुका है। सवाल बार-बार यही उठ रहे हैं कि इस मुद्दे पर सरकार क्यों पीछे हट रही है।

ओबीसी वर्ग को 51 फीसदी आरक्षण पर हाईकोर्ट की नाराजगी

ओबीसी आरक्षण एक बार फिर सरकार की मुश्किलें बढ़ा रहा है। इस बार हाईकोर्ट ने ही सरकार को आखिरी मोहलत दे दी है। मामला क्या है इसे जरा तफ्सील से समझ लीजिए। फिर सरकार के रुख पर भी बात होगी। मामला ये है कि जबलपुर हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर की है। ये नाराजगी ओबीसी यानी कि पिछड़े वर्ग को 51 फीसदी आरक्षण देने के मामले पर जताई गई है। मामला कल ही का यानी कि गुरुवार का है। हाईकोर्ट में एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस याचिका में प्रदेश में ओबीसी की आबादी 51 फीसदी बताई गई है। साथ ही ये मांग भी की गई है कि ओबीसी की जनसंख्या के अनुपाम में आरक्षण मिलना चाहिए। उसके बाद ही उनके हालात बदलेंगे।

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस याचिका पर 11 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। इससे नाराज होकर हाईकोर्ट ने खुद ही सरकार को दो हफ्ते की मोहलती दी है। साथ ही ये ताकीद भी किया है कि अब अगर जवाब नहीं आया तो सरकार पर जुर्माना भी लग सकता है। 

ओबीसी आरक्षण मुद्दे को लेकर कोर्ट में कई याचिकाएं पेंडिंग

जिस मामले पर हाईकोर्ट ने ये वॉर्निंग दी है वो याचिका 2024 में दायर हुई थी। इसके अलावा भी ओबीसी आरक्षण से जुड़े कुछ मामले अदालत में चलते रहे। ओबीसी आरक्षण के पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के मामले देखें तो सौ से भी ज्यादा याचिकाएं अदालत में मिल जाएंगी। कुछ सुनवाइयों के बाद निरस्त होती गईं तो किसी की सुनवाई पेंडिंग है। 

अभी कुछ ही दिन पहले प्रदेश में ओबीसी की मामला गर्माया था। जबलपुर हाईकोर्ट ने यूथ फॉर इक्वेलिटी संस्था की एक याचिका को खारिज कर दिया था। ये याचिका ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की मांग के खिलाफ लगी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने 27 फीसदी आरक्षण पर रोक को भी बरकरार रखा था। 

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आरक्षण के मुद्दे को दोनों पार्टियों ने समय-समय पर भुनाया

मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर वाद विवाद का इतिहास बहुत पुराना है। समय समय पर कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों इस मुद्दे को अलग-अलग तरह से भुनाती भी रही हैं। साल 2018 में कमलनाथ ने भी इस मांग का समर्थन किया इसके बाद ओबीसी तबके का साथ कांग्रेस को मिला और कांग्रेस की सरकार बनी। कमलनाथ सरकार ने वादा निभाने की पूरी कोशिश भी की, लेकिन कोई ठोस कदम आगे बढ़ पाते उससे पहले ही आतिशि दुबे नाम की डॉक्टर ने ओबीसी आरक्षण को चुनौती दे दी। ये चुनौती सिर्फ नीट एग्जाम में आरक्षण के मामले पर थी। तब इस फैसले पर, नीट के संदर्भों में रोक लगा दी गई थी। इसके बाद से मामला लगातार उलझता गया। 

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शिवराज सरकार ने पुराने फॉर्मूले के आधार पर दिए आदेश 

नीट के फैसले को नजीर बनाकर पीएससी मेडिकल ऑफिसर्स की भर्ती पर भी रोक लगा दी गई। इसके कुछ दिनों बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान फिर सत्ता में आए। तब तक मामला सुलझा नहीं था और सरकारी पदों को भरना मजबूरी हो गया था। जिसे देखते हुए शिवराज सरकार ने पुराने फॉर्मूले के आधार पर ही भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के आदेश दिए। पुराने फॉर्मूले के तहत 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। 

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ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार की इच्छाशक्ति में कमी है?

ओबीसी आरक्षण को लेकर मध्यप्रदेश की सियासत में उबाल आता रहा है। खासतौर से तब जब किसी अदालत से इस बारे में कोई नया फैसला या आदेश जारी होता है तब, लेकिन हालात कुछ खास नहीं बदले हैं। इसकी वजह क्या हो सकती है क्या ये सरकारी इच्छाशक्ति में कमी का इशारा है या फिर ऐसा सियासी दबाव है जिसके प्रेशर में आकर हुक्मरान किसी भी ठोस फैसले पर पहुंचने से हिचकिचाते हैं।

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आरक्षण के खिलाफ बोलने से खामोश रहना ही बेहतर...

सीएम भले ही ओबीसी वर्ग से ही क्यों न रहे। वो एक तरफा फैसला नहीं ले सकता। मजबूरी है हर वर्ग के वोट बैंक को साधना। अगर आरक्षण का पक्ष लिया जाता है तो दूसरे तबके नाराजगी जाहिर कर सकते हैं इसका खामियाजा कुछ यूं भुगतना पड़ सकता है कि वो वोट बैंक सियासी दल से ही दूर हो जाए। अगर आरक्षण के खिलाफ खुलकर बोले तो ओबीसी वर्ग की नाराजगी भारी पड़ेगी। ऐसे में सरकारें या सियासी नुमाइंदे शायद खामोश रहना ही बेहतर समझते हैं। 

पर, अब हाईकोर्ट ने ही सरकार से जवाब तलब किया है। इस मोहलत में सरकार क्या जवाब देती है, यकीनन उस पर सबकी नजरें टिकी होंगी।

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