News Strike : क्यों टला सीएम मोहन यादव का जनता दरबार ? तीन सवालों में उलझा पेंच!

मध्यप्रदेश के सीएम मोहन यादव को क्यों अपना पहला ही जनता दरबार डिले करना पड़ गया। आज हम आपको बताएंगे कि एक दरबार लगाने के बाद सीएम मोहन यादव को क्या-क्या चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है...

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Harish Divekar
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CM Mohan Yadavs Janata Darbar postponed Photograph: (thesootr)

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News Strike : मध्यप्रदेश में एक बार फिर जनता दरबार की सियासत शुरू होने वाली है। वैसे इसे सियासत कहना गलत होगा। क्योंकि ये काम जनता के भले के लिए होता है। पर ये बात भी कहां गलत है कि इसके पीछे कोशिश अपना सियासी चेहरा चमकाने की भी होती है। एक पंथ दो काज भी हो जाते हैं। जनता की सुनवाई भी हो जाती है और राजनेता भी लोकप्रिय हो जाता है। 

अब सीएम मोहन यादव भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं, लेकिन क्या ये रास्ता इतना आसान है। हम आपको बताते हैं कि एक दरबार लगाने के बाद मोहन यादव को क्या-क्या चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सीएम मोहन यादव को क्यों अपना पहला ही जनता दरबार डिले करना पड़ गया। 

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सीएम मोहन से पहले दिग्विजय और उमा भारती भी लगा चुके दरबार 

मोहन सरकार ने तय तो ये किया था कि नए साल की शुरुआत में ही जनता दरबार लगाएंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। फिलहाल जनता दरबार को कुछ दिन के लिए टाल दिया गया है। उसकी वजह है व्यवस्था को बनाए रखने का बड़ा चैलेंज। क्योंकि एक पूर्व सीएम को अपना जनता दरबार सिर्फ इसलिए बंद करना पड़ा था क्योंकि माकूल व्यवस्था नहीं हो सकी थी। आपको बता दें कि सीएम मोहन यादव से पहले दिग्विजय सिंह, उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान भी जनता दरबार लगा चुके हैं। उमा भारती के जनता दरबार को शुरुआती दौर में जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला था जिसका इस दरबार को फायदा नहीं हुआ बल्कि नुकसान हो गया। असल में उनके जनता दरबार को जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला था। 

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फुलप्रूफ मेकेनिज्म तैयार होने से पहले नहीं लगेगा जनता दरबार

उमा भारती की सरकार से पहले कांग्रेस की सरकार थी। उस सरकार से जितने गिले शिकवे और शिकायतें थीं। सब लोग लेकर उमा भारती के जनता दरबार में पहुंचने लगे थे। नतीजा ये हुआ हर जनता दरबार में जबरदस्त भीड़ लगने लगी, लेकिन अधिकारी ऐसा कोई ऑर्गेनिक प्रोसिजर तैयार नहीं कर पाए जो जनता दरबार को सरल बना सके। नतीजा ये हुआ कि जनता दरबार बंद करने की नौबत आ गई। सीएम मोहन यादव बस इसी बात से बचना चाहते हैं। इसलिए जल्दबाजी में जनता दरबार शुरू करने की जगह उन्होंने इसे स्थगित किया है। इशारा साफ है कि जब तक एक फुल प्रूफ मेकेनिज्म तैयार नहीं होगा। तब तक मोहन यादव जनता दरबार नहीं लगाएंगे। 
वैसे भी उनके सामने खुद चुनौती बीजेपी से ही है. उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ काफी समय से जनता दरबार लगा रहे हैं. जिसे जनदर्शन नाम दिया गया है. और काफी लोकप्रिय भी हो चुके हैं. अब मोहन यादव के सामने उनसे बड़ी या कम से कम उनके आसपास की लकीर खींचने की चुनौती तो होगी ही.

अब तक मोहन यादव ने अपने जनता दरबार के बारे में जो सोचा है उसे किस तरह अमलीजामा पहनाया जाना है।

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ये चार आसान प्वाइंट्स में समझाते हैं... 

1. सबसे पहले तो सीएम मोहन यादव का जनता दरबार दो घंटे लंबा रखने का विचार किया गया है। 
2. इन दो घंटो में कौन अपनी शिकायत लेकर सीएम तक पहुंचेगा. इसका भी स्ट्रक्चर तैयार किया गया है। 
3. इस जनता दरबार में ट्रांसफर पोस्टिंग के आवेदन नहीं देखे जाएंगे।
4. सीएम शिकायतें सुनने के बाद संबंधित विभाग के अफसरों को मौके पर ही निराकरण करने के निर्देश देंगे।

ये चार बिंदू तय हो गए हैं। अफसर इस बात पर भी क्लियर हैं कि जनता दरबार लगने के बाद जो सुझाव आएंगे उसके अनुसार दरबार की व्यवस्था में कसावट लाई जाती रहेगी, लेकिन कुछ खामियां अभी ही नजर आ रही हैं। 

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फिलहाल जनता दरबार को जनता के लिए नहीं खोला गया

जो लोग शिकायत लेकर पहुंचेंगे उनमें किसे प्राथमिकता दी जाए। ये कैसे तय होगा। जितनी शिकायतें सीएम के सामने रखी जाएंगी। उनमें से अधिकांश पर तुरंत कार्रवाई या निराकरण के निर्देश मिलेंगे। तब ये स्क्रूटनी कैसे होगी कि किस फाइल को पहले आगे बढ़ाएं और किसे रोक दें। क्योंकि सीएम के निर्देश के बाद अगर एग्जीक्यूशन में देरी हुई। तो, लोग सबसे पहले सीएम के नाम पर ही नाराजगी जताएंगे। इस बात का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी होगा। अगर जनता दरबार में जरूरत से ज्यादा लोग पहुंच गए। तो, ऐसा कौन सा फिल्टर लगाया जाएगा। जो वाकई जरूरतमंद को सीएम तक पहुंचा सके और जो लोग दूर से आने के बावजूद दो घंटे के स्लॉट में सीएम से नहीं मिल सके। उनकी बात सुनने और शिकायतों पर क्या एक्शन लिया जाएगा। शायद यही सब सवालों के चलते फिलहाल जनता दरबार को जनता के लिए नहीं खोला गया। पर कुछ पुराने मॉडल से सीख लेकर जनता दरबार को सफल बनाने की कोशिश की जा सकती है। पूरी तरह से इस व्यवस्था को सेंट्रलाइज करने की जगह शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल की तरह विकेंद्रीकृत भी रखा जा सकता है। यानी जिला स्तर पर, विधायक और मंत्रियों के स्तर पर जनता दरबार लगें। तो वो फिल्टर अपनेआप लग जाएगा। जिसे सीएम हाउस के दरवाजे पर पहुंचे लोगों पर लगाना बहुत आसान नहीं होगा। 

अब देखना ये है कि जनता दरबार एक बार तो टाला जा ही चुका है। क्या किसी नए मेकेनिज्म के साथ फिर से इसकी फुल प्रूफ शुरुआत होगी या कुछ समय तक दरबार पर ताला ही लटका रहेगा।

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