सिंहासन छत्तीसी : नेताजी की नाराजगी से हटे कलेक्टर, सजा मिली या तोहफा, नबीन के हाथों में नेताओं की नब्ज

छत्तीसगढ़ में कलेक्टरों के तबादले, बीजेपी की राजनीति और बिल्डर्स के लिए नई गाइडलाइन इन दिनों चर्चा में है। आज के सिंहासन छत्तीसी में पढ़िए ये सब कुछ...

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Arun Tiwari
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Raipur. छत्तीसगढ़ में कलेक्टरों के तबादलों की लिस्ट जारी हुई। उसमें एक नाम ऐसा भी था जो महीनों से सुर्खियों में है। सुर्खियों में इसलिए क्योंकि उनके खिलाफ एक सीनियर नेताजी ने मोर्चा खोल रखा था। लेकिन इस तबादला सूची से एक सवाल पैदा हो गया। साहब को सजा मिली है या तोहफा?

वहीं छत्तीसगढ़ में एक और चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रदेश के प्रभारी का बीजेपी की सबसे ऊंची कुर्सी पर छलांग लगाना। अब इनके हाथों में पूरे छत्तीसगढ़ के नेताओं की कुंडली है। कोई डर रहा है तो कोई खुश हो रहा है। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।

सजा या तोहफा

बीजेपी के वरिष्ठ और असरदार नेता ने अपने जिले के कलेक्टर के खिलाफ खुला मोर्चा खोला। भ्रष्टाचार से जुड़े गंभीर आरोप भी लगाए गए। यहां तक कि जिद पकड़ ली कि कलेक्टर पर कार्रवाई हो। सरकार ने मजबूर होकर जांच कराई। इसके कुछ दिन बाद तबादलों की एक लिस्ट जारी हुई।

इस लिस्ट में साहब को जिले से हटा दिया। लेकिन लिस्ट का दूसरा सिरा देखा तो सवाल खड़ा हो गया कि यह नेताजी की नाराजगी से मिली सजा है या फिर सरकार ने सजा के नाम पर तोहफा दे दिया है।

लोग यह गुणा-भाग लगा रहे हैं कि जिस जिले में भेजा गया है वह सजा कैसे समझी जाए। जिला संभागीय मुख्यालय है। सीएम साहब का गृह संभाग है। यह जमीन बहुत उर्वरा भी मानी जाती है। यहां पर हमेशा बेहतर अफसर को ही रखा जाता है। तो हो गया न तोहफा।

नबीन के हाथों में नेताओं की नब्ज

अब तक छत्तीसगढ़ बीजेपी के प्रभारी रहे नितिन नबीन के हाथों में पूरे सूबे के नेताओं की नब्ज आ गई। अब यहां के कई नेताओं की पल्स बहुत तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ के बीजेपी प्रभारी नितिन नबीन के पार्टी सुप्रीमो बनने से छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं का एक वर्ग खुश है तो कुछ लोगों को जोर का झटका लगा है।

इनमें कई मंत्री शामिल हैं तो कुछ निगम-मंडलों के चेयरमैन और संगठन के बड़े नेता भी। नितिन के पास सारे नेताओं की कुंडली है कि कौन क्या गुल खिला रहा है। उन्हें उन मंत्रियों के बारे में भी पता है कि सरकार बनते ही बिना वक्त गंवाए कैसे तूफानी बैटिंग शुरू कर दी।

उनके नोटिस में यह भी है कि संगठन का कौन नेता पोस्टिंग और सप्लाई-ठेका के जरिये अपने होने की कीमत वसूल रहा है। नितिन नबीन सक्रिय प्रदेश प्रभारी रहे हैं इसलिए उन्होंने पूरे प्रदेश का कई बार दौरा किया है। वे ब्लॉक के नेताओं को नामों से जानते हैं।

चुनाव के वक्त वे ही रणनीति बनाते थे कि कहां किससे कितना प्रचार करवाना है। यही कारण है कि कई नेताओं की पल्स इन दिनों बहुत तेज चल रही है। बीजेपी की सरकार बनने के बाद बहुचर्चित 300 करोड़ के सीजीएमएससी कांड में जब एक ठेकेदार मेहरबानी पाने नितिन नबीन के यहां पहुंच गया वह भी सूटकेस लेकर। नबीन ने उसे फटकार लगाई और भगा दिया। यही कारण है कि अब कमीशन वाले नेताजी का दिल जोर से धड़क रहा है।

नई गाइडलाइन, कौन हुआ साइडलाइन

जमीनों के गाइडलाइन रेट के दोबारा बदलाव से बिल्डर आखिर प्रसन्न क्यों हैं। दरअसल हुआ कुछ यूं है कि सरकार ने जमीनों की रजिस्ट्री में सुपर बिल्डअप का क्लॉज खत्म कर दिया है। यानी फ्लैट की रजिस्ट्री अब बिल्डअप एरिया के हिसाब से होगी।

जाहिर है, इससे रजिस्ट्री का रेट 30 से 40 प्रतिशत कम हो जाएगा। यह पैसा सरकार के खजाने में जाता था। बिल्डअप एरिया के हिसाब से रजिस्ट्री होने से अब फ्लैट का रेट कम हो जाएगा। इससे फ्लैट की सेल तेज होगी। लेकिन यहां पर सवाल उठता है कि सुपर बिल्डअप का अलग से शुल्क नहीं लगेगा तो फिर खरीददार उसका पैसा भी क्यों देगा।

सुपर बिल्डअप में सीढ़ी से लेकर लॉन और बाल्कनी तक बिल्डर जोड़ देते हैं। अब बिल्डर को अगर सुपर बिल्डअप का रेट नहीं लेने कहा जाएगा तो वह फ्लैट का रेट बढ़ा देगा। यानी बिल्डरों के लिए आम के आम और गुठलियों के दाम वाला सौदा माना जाएगा।

बिल्डअप-सुपर बिल्डअप के फेर में आम आदमी इनके जाल में फंस जाता है। आमतौर पर होता ऐसा है कि कोई फ्लैट खरीदने जाता है तो उसे फुट के हिसाब से रेट बताया जाता है। बाद में जब सौदा पटने लगता है तो पता चलता है कि रजिस्ट्री इतने की नहीं, इतने सुपर बिल्डअप एरिया की होगी। अब सरकार को इस बात की निगरानी भी करनी पड़ेगी कि नई गाइडलाइन में आम आदमी साइडलाइन न हो जाए।

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