सिंहासन छत्तीसी : छत्तीसगढ़ में विधायकों की नहीं सुन रहे मंत्री, नए साल के सैर सपाटा को क्यों भूले अफसर

छत्तीसगढ़ में मंत्री और अफसरों के बीच असहमति का माहौल है। विधायकों की मांगें नहीं सुनी जा रही हैं, वहीं अधिकारियों की छुट्टियां भी कट रही हैं। ऐसे में सुशासन का दावा क्या वाकई काम कर रहा है? आज के सिंहासन छत्तीसी में पढ़िए ये सब कुछ...

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Arun Tiwari
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Raipur. छत्तीसगढ़ में ठंड तो खूब है लेकिन राजनीति का पारा गर्म है। कहते हैं कि यहां सुशासन बाबू की सरकार है। लेकिन इस सुशासन में माननीयों की सुनवाई ही नहीं हो रही। उनके कामों को टरका दिया जाता है।

जब अपने मंत्री नहीं सुन रहे तो अफसर तो सुनने से रहे। विधायक इस बात से मायूस हैं कि पांच साल बाद आई सरकार में भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही तो फिर ऐसा कैसा सुशासन। ये तो माननीय की लाचारी है लेकिन अफसर भी अपने नए बॉस के तेवरों से हलाकान हैं।

साहब ने उनको इतना काम पकड़ा दिया है कि वे क्रिसमस और नए साल सैर सपाटा भूलकर फाइलों में सिर घुसाए हुए हैं। छत्तीसगढ़ की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।

विधायकों की नहीं सुन रहे मंत्री

छत्तीसगढ़ में पांच साल के सूखे के बाद दोबारा बीजेपी की हरियाली आई है। सरकार भी सुशासन के घोड़े दौड़ाने का दम भर रही है। लेकिन इस सुशासन में उनके माननीय ही मायूस हो गए हैं। हाल ही में हुए विधानसभा सत्र के दौरान कुछ ने अंदर तो कुछ ने बाहर अपना गुस्सा निकाला।

कुछ विधायकों ने तो यहां तक कह दिया कि भूपेश सरकार के भ्रष्टाचारी अफसरों को इस सरकार का भी संरक्षण है। मंत्री को चिट्ठी लिखी लेकिन मंत्रीजी ने कुछ नहीं किया। विधायक तो कहने लगे हैं कि मंत्री के दरवाजे पर जाने पर भी उनके काम नहीं हो रहे।

जब मंत्री ही नहीं सुन रहे तो अधिकारी तो सुनने से रहे। कुछ ने यहां तक कह दिया कि मंत्रियों का ध्यान तो सिर्फ कमाई पर है, ऐसे में वे उन पर ध्यान क्यों देंगे।

बॉस का डंडा

अधिकारियों के नए बॉस कुछ ज्यादा ही सख्त नजर आ रहे हैं। कुछ अधिकारी कहते हैं कि वे बैठक में मास्साब की तरह डंडा लेकर बैठते हैं। हाल ही में उन्होंने अधिकारियों की बैठक ली। इससे अधिकारी तबका सकते में है।

जिस तरह मंत्री दिखवा लेंगे कहकर काम को टालते हैं, उसी अंदाज में कई अधिकारियों ने जब कहा दिखवा लूंगा तो सीएस ने कहा, दिखवा नहीं कीजिए। कई सीनियर सचिव मानते हैं कि इस अंदाज में किसी चीफ सचिव ने कभी बैठक नहीं ली।

उन्होंने बजट खर्च करने को लेकर सचिवों से ही 31 दिसंबर तक का सेल्फ टार्गेट घोषित करवा लिया। 31 में अब कुछ दिन बचे हैं। टार्गेट के चक्कर में अफसर क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों को भूल गए हैं। इस समय अफसरों की रात की नींद जरूर उड़ी हुई है।

एक और फर्जीवाड़ा

छत्तीसगढ़ में तो जैसे नौकरी और फर्जीवाड़े का चोली दामन का साथ है। इसी फर्जीवाड़े की कई जगह जांच चल रही है। विश्वविद्यालयों में इधर नियुक्तियां हुईं उधर जांच बैठ गई। ऐसा ही कुछ चल रहा है।

अब एक नई परीक्षा में फर्जीवाड़े के आरोप लगने लगे हैं। एक व्यक्ति का सात जगह सिलेक्शन हो गया तो किसी का चार जगह। भर्ती प्रक्रिया को गलत बताने की जगह जिम्मेदार अधिकारी इसे जस्टीफाई करने में लगे हैं। सात साल बाद पुलिस महकमे में सिपाहियों की भर्ती हुई। मगर वह भी मुकम्मल नहीं हो पाई।

करीब छह हजार पदों पर भर्ती में यह प्रयास नहीं किया गया कि एक आदमी अनेक जिलों में अप्लाई नहीं कर सके। इसका खामियाजा यह हुआ कि एक-एक का कई जिलों में चयन हो गया। रायपुर के एक युवक का सात जिलों में चयन हुआ है। यही वजह है कि जिलों में अभी तक 50 प्रतिशत के आसपास ही आरक्षकों ने आमद दी है।

6000 में से मुश्किल से चार हजार के आसपास ही कांस्टेबल मिलेंगे। बड़ी संख्या में आवेदकों ने सेफ रहने के लिए कई जिलों में आवेदन कर दिया। अब इस शिकायत को दूर करने के लिए मंत्री ने शिकायतकर्ताओं को अपने घर पर ही बुला लिया। अब तो इस परीक्षा की जांच की बात भी उठने लगी है।

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