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रायपुर : क्या एक कुलपति सरकार के सुशासन को ठेंगा दिखा सकता है। सवाल बड़ा है लेकिन ये छत्तीसगढ़ में संभव है। कुलपति ने न नियमों की परवाह की और न सुशासन की और कर ली अपनी मनमानी। छत्तीसगढ़ की महात्मा गांधी यूनवर्सिटी में 15 असिस्टेंट प्रोफेसर अयोग्य हैं। लेकिन इसके बाद भी वे महीनों से नौकरी कर रहे हैं। तत्कालीन कुलपति की कारगुजारी का ये मामला जब सामने आया था तो सरकार ने इस नियुक्ति पर रोक लगा दी थी और इसकी जांच के लिए एक कमेटी भी बना दी गई।
कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट राजभवन को सौंपी और उसमें कहा गया कि यह नियुक्ति नियमों के विरुद्ध है इसलिए इसे रद्द कर देना चाहिए। जांच कमेटी की इस सिफारिश के बाद भी न सरकार ने और न राजभवन ने कोई एक्शन लिया। कुलपति ने रोक के बाद भी इन अयोग्य असिस्टेंट प्रोफेसर को नियुक्ति पत्र देकर ज्वाइनिंग दे दी। द सूत्र के पास जांच कमेटी का वो प्रतिवेदन है जिसमें कुलपति की कारगुजारी और नियमों को ताक पर रखकर हुई नियुक्तियों को रद्द करने की सिफारिश है।
सवाल ये है कि सरकार सुशासन के बड़े बड़े दावे करती है और एक अदद कुलपति नियमों को ठेंगा दिखाकर अपने ही नियम बना लेता है और चहेतों को नियुक्तियां भी दे देता है। तो कहां है वो सुशासन। देखिए सूत्र की पड़ताल करती ये खबर।
कुलपति ने चहेतों को दी नौकरी
महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्तियों का यह मामला 2024 का है। नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के मास्टर माइंड हैं तत्कालीन कुलपति डॉ आरएस कुरील। कुरील ने वो कारनामा कर दिखाया जो सरकार के सुशासन को मुंह चिढ़ा रहा है। नियुक्तियों के इस फर्जीवाड़े पर उस समय बवाल भी मचा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कुरील के खिलाफ अपनी सरकार के सामने प्रदर्शन किया। पहले बताते हैँ क्या है पूरा मसला।
महात्मा गांधी यूनवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति डॉ आरएस कुरील ने यूजीसी और राजभवन के नियमों को ताक पर रखकर अपने चहेतों को नौकरी दे दी। विज्ञापन निकला 36 असिस्टेंट प्रोफेसर और 143 गैर शैक्षणिक तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति का। इनकी सीधी भर्ती शुरु हो गई। यह यूनिवर्सिटी कृषि विभाग के तहत आती है। इस संबंध में जब शिकायतें आईं तो कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने इस नियुक्ति प्रक्रिया को रोक दिया।
राजभवन ने इस पूरे मामले की जांच के लिए एक जांच कमेटी बना दी। तीन सदस्यीय इस जांच कमेटी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गिरीश चंदेल को अध्यक्ष बनाया गया तो पंडित सुंदरलाल शर्मा यूनिवर्सिटी के कुलपति बंशगोपाल सिंह और कुशाभाउ ठाकरे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बल्देव भाई शर्मा को इस कमेटी का सदस्य बनाया गया।
कमेटी ने जांच शुरु की तो कुलपति की मनमानी का सारा कच्चा चिट्ठा सामने आ गया। हैरानी की बात तो यह भी है कि जांच प्रक्रिया पर रोक के बाद भी कुलपति कुरील ने इन असिस्टेंट प्रोफेसरों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिए और उनको ज्वाइनिंग भी दे दी। जांच रिपोर्ट के आधार पर कुलपति आरएस कुरील को तो हटा दिया गया लेकिन अयोग्य असिस्टेंट प्रोफेसरों पर एक्शन नहीं हुआ।
आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर 15 असिस्टेंट प्रोफेसर ऐसे हैं जो अयोग्य हैं। इनके पास जरुरी पीएचडी की डिग्री नहीं है। जबकि इन पदों पर डेढ़ सौ से ज्यादा पीएचई और नेट किए हुए अभ्यर्थियों ने भी आवेदन किया था। यह सीधी भर्ती थी इसलिए इसमें अपनी मनमर्जी से नियुक्तियां कर बड़ा खेला कर लिया। यह सारी जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने सूचना के अधिकार के तहत राजभवन से निकाली है।
यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे यह अयोग्य असिस्टेंट प्रोफेसर
सब्जी विज्ञान - कल्पना कुंजाम
पुष्पांजलि
फल विज्ञान - भावना पांडा
सरिता पैकरा
फ्लोरीकल्चर एंड लैंड स्कैप आर्कीटेक्चर - सुशील कश्यप
मनीषा कश्यप
सुरेश कुमार
एग्रोनॉमी - वीरेंद्र तिग्गा
अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन - नमिता सिंह
कीटशास्त्र - परमेश्वर गोरे
पौधरोग - रितिका समरथ
कृषि विस्तार - अरविंद साय
फोरेस्ट्री बायोलॉजी एंड ट्री इम्प्रूवमेंट -दामिनी शर्मा
फॉरेस्ट प्रोडक्ट एंड यूटलाइजेशन - राजेश कुमार
सिल्वीकल्चर एंड एग्रोफॉरेस्टी - यामिनी बघेल
बिना पीएचडी के प्रोफेसर
जांच रिपोर्ट कहती है कि यूजीसी के नियमानुसार असिस्टेंट प्रोफेसर या प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए पीएचडी अनिवार्य है। लेकिन कुरील ने एमएससी और नेट किए हुए अभ्यर्थियों को असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर सिलेक्ट कर लिया। रिपोर्ट के मुताबिक इन 15 पदों के लिए 55 ऐसे अभ्यर्थी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल थे जिन्होंने पीएचडी की है। कुछ के पास तो पीएचडी और नेट की डिग्री भी थी फिर भी उनका सिलेक्शन नहीं किया गया। इन 36 पदों के लिए 194 पीएचडी और नेट की डिग्रीधारी थे तो 49 के पास पीएचडी थी। इसके बाद भी कुलपति कुरील ने स्कोर बोर्ड में बदलाव कर अपने चहेतों को नौकरी बांट दी।
गैर शैक्षणिक पदों के लिए मांगा विशेष कौशल
सिर्फ शैक्षणिक पदों के लिए ही नहीं गैर शैक्षणिक पदों पर भी कुलपति ने फर्जीवाड़ा किया। 143 पदों पर प्रयोगशाला टेक्नीशियन, क्षेत्र विस्तार अधिकारी, प्रक्षेत्र सहायक,डाटा एंट्री ऑपरेटर, शीध्र लेखक, स्टेनो टायपिस्ट जैसे तृतीय श्रेणी कर्मचारी समेत भृत्य,चौकीदार और स्वीपर जैसे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती निकाली गई। इनकी सीधी भर्ती में कुलपति ने स्कोर बोर्ड में कौशल परीक्षा के अंक जोड़ दिए। कौशल परीक्षा के 30-40 अंक दिए गए। अब सवाल ये है कि भृत्य या स्वीपर कौन सा विशेष कौशल दिखाएंगे। जाहिर सी बात है कि इन पदों पर ही कुलपति ने अपने लोगों को नौकरी पर लगा दिया।
नियुक्ति रद्द करने की सिफारिश
जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये चयन प्रक्रिया पूरी तरह नियम विरुद्ध एवं त्रुटिपूर्ण है। स्कोर बोर्ड में जो परिवर्तन किया गया वह विश्वविद्यालय के अधिकार में नहीं है। इस आधार पर प्रशासनिक कार्यवाही किया जाना चाहिए। इस चयन प्रक्रिया में कम अर्हता वाले अभ्यर्थियों का चयन हो गया और योग्य एवं अधिक अर्हता वाले अभ्यर्थी चयन से वंचित रह गए। इसलिए कम अर्हता वाले अभ्यर्थियों की नियुक्ति रद्द किया जाना चाहिए। जांच कमेटी की यह रिपोर्ट दूसरी सरकारी फाइलों की तरह धूल खा रही है।
बात आई गई हो गई तो फाइल नीचे दब गई। इस मामले में जब हमने कृषि मंत्री रामविचार नेताम के कार्यालय में संपर्क किया तो जवाब मिला कि हमने तो नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। लेकिन आयोग्यों की नियुक्ति हो गई और वे काम कर रहे हैं। राजभवन ने जांच कमेटी बनाई और जांच कमेटी ने रिपोर्ट भी उनको सौंपी तो कार्यवाही वहीं से होना चाहिए। हमारे पास तो जांच रिपोर्ट ही नहीं आई।
कुरील पहले भी कर चुके हैं कारनामे
डॉ. भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी में सौ से ज्यादा नियुक्तियों में भ्रष्टाचार करने पर कुलपति डॉ. आरएस कुरील को हटा दिया गया था। कुरील हाईकोर्ट गए लेकिन उनको स्टे नहीं मिला था। रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रभारी कुलपति डॉ आरएस कुरील पर 47 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगा। उनके कार्यकाल की वित्तीय समीक्षा के लिए चार सदस्यों की जांच टीम बनाई गई थी।
इस टीम ने पाया है कि डॉ कुरील ने अपने प्रभारी कार्यकाल में संवैधानिक अधिकार से ज्यादा रुपये के वित्तीय बिल के भुगतान का आदेश दिया है। उनके द्वारा छह महीने में खर्च किए गए 46,96,60,774 रुपये पर जांच समिति ने सवाल उठाए। साल 2022 में तत्कालीन भूपेश सरकार में उनको महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी का कुलपति बनाया गया था। और साल 2024 में उन्होंने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक और तमगा जोड़ लिया। वे जहां जाते हैं वहां से उनको हटा दिया जाता है। अब यहां से भी उनको हटाया गया है।
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