छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में हॉस्टल बनाकर नक्सलवाद से निपटेगी साय सरकार

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर नकेल कसने के लिए प्रदेश की साय सरकार ने हॉस्टल और शिक्षा को अपना हथियार बनाने का फैसला किया है। इसी के चलते सरकार किशोर और युवाओं में शिक्षा व गेम्स के प्रति लगाव जगाने के लिए प्रयासरत है...

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Deeksha Nandini Mehra
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Chhattisgarh Ashram Hostel : छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित और आदिवासी इलाके में पढ़ाई और खेल को बढ़ावा देने के लिए बड़ा फैसला किया है। प्रदेश के इन इलाकों में ऐसे आश्रम- छात्रावास बनाए जाएंगे, जहां पर 400 से 500 बच्चों के रहने और खाने की व्यवस्था होगी। साथ ही स्कूल और खेल का मैदान भी रहेगा। 

जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने प्रदेश में पहले से मौजूद आश्रम- छात्रावासों की मरम्मत करने के साथ 15- 20 गांवों के लिए क्लस्टर बनाकर एक स्थान पर बड़ा आश्रम- छात्रावास तैयार करने का लक्ष्य रखा है।

सरकार ने इस कांसेप्ट को पूरा करने के लिए एक साल का लक्ष्य रखा है। इससे पहले प्रदेश के गांवों में छोटे- छोटे आश्रम छात्रावास बनाए गए थे, जिनकी हालत अब जर्जर हो गई है। इन आश्रम छात्रावास में लगभग 30 से 50 बच्चों के रहने की व्यवस्था होती थी। 

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नक्सलियों ने उड़ाया आश्रम- छात्रावास

दरअसल बस्तर के कोंटा, सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों के कई आश्रम- छात्रावास ऐसे हैं जिनकी हालत जर्जर है या उन्हें नक्सलियों ने उड़ा दिया है।

इसके बावजूद बच्चे उनमें रहने और पढ़ाई करने को मजबूर हैं। राज्य सरकार ने ऐसे इलाकों में बच्चों के लिए एक नया आश्रम- छात्रावास तैयार कराने का फैसला लिया है।

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सलवा जुडूम में ऐसे ही एक जगह रखा गया था

नक्सली दहशत से ग्रामीणों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम अभियान चलाया गया था। जिसमें कई गांव के लोगों को एक स्थान पर बसाया गया था। इसके कारण कई गांव खाली हो गए थे।

जहां पर ग्रामीणों को रखा गया था वहां पर ग्रामीणों के रहने, खाने की पूरी व्यवस्था की गई थी। इसके अलावा बच्चों के लिए अस्थाई स्कूल भी तैयार किए गए थे।

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गांवों में अस्थाई स्कूल

दंतेवाड़ा के नहाड़ी में ग्रामीणों ने लकड़ियों से एक झोपड़ी तैयार की, जिसमें बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। दरअसल, वहां के 100 सीटर आश्रम को 2007 में नक्सलियों ने तोड़ दिया था, इसके बाद से बच्चे झोपड़ी में पढ़नें के लिए मजबूर हैं। नक्सल क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में कई गांव में ऐसे ही हालात हैं।

नक्सलियों के डर से नहीं पढ़ाते शिक्षक

अबूझमाड़ के अंदरूनी क्षेत्र में जाकर पढ़ाने वाले शिक्षकों के मुताबिक ओरछा तक तो स्थिति ठीक है, लेकिन वहां से अंदर जाने पर पीडियाकोट, जाटलूर, ढ़ोढ़रबेड़ा जैसे स्थानों में पढ़ाना काफी मुश्किल है। यहां नक्सलियों का डर रहता है। क्षेत्र में अब भी आधे से ज्यादा भवन नहीं हैं। बच्चे या तो पेड़ के नीचे पढ़ते हैं या ग्रामीणों द्वारा जो भवन दिया जाता है उसमें।

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विष्णुदेव साय सरकार | नक्सलवाद | आदिवासी इलाकों में हॉस्टल

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