Assistant Professor Recruitment In PRSU : छत्तीसगढ़ के सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के करीब साढ़े पांच हजार स्वीकृत पदों में से दो हजार से ज्यादा पद खाली हैं। उच्च शिक्षा विभाग ने इन खाली पदों को भरने के लिए कुछ महीने पहले वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अब तक मंजूरी नहीं मिली है। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि इस साल असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए वैकेंसी निकलने की संभावना कम है। इस बीच, नए नियमों के तहत अतिथि व्याख्याताओं की भर्ती पूरी कर ली गई है।
335 कॉलेजों में 2160 पद खाली
प्रदेश के 335 सरकारी कॉलेजों में कुल 5314 असिस्टेंट प्रोफेसर के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 3154 पद भरे हैं और 2160 पद अब भी खाली पड़े हैं। शिक्षा विभाग ने वित्त विभाग से सभी रिक्त पदों पर भर्ती की अनुमति मांगी थी, परन्तु जानकारों का मानना है कि एक साथ इतने पदों पर भर्ती की मंजूरी मिलना मुश्किल है। अगर भर्ती की अनुमति मिलती भी है, तो वैकेंसी की संख्या कम ही रहेगी।
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पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में 60 पदों पर भर्ती
रायपुर स्थित पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 60 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इच्छुक अभ्यर्थी 5 नवंबर तक आवेदन कर सकते हैं। पिछली बार कुछ आवेदन देरी से पहुंचे थे, जिससे वे रद्द कर दिए गए थे। इस बार समय पर आवेदन भेजने की सख्त हिदायत दी गई है। आवेदन पत्र विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
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सेट परीक्षा के नतीजों में देरी
राज्य पात्रता परीक्षा (सेट) का आयोजन 21 जुलाई को हुआ था, जिसमें एक लाख से अधिक उम्मीदवार शामिल हुए थे। सेट पास करने वाले अभ्यर्थियों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर पदों के लिए पात्रता मिलेगी, लेकिन अब तक इसके नतीजे जारी नहीं हुए हैं। अनुमान है कि नवंबर में भी नतीजे आने की संभावना कम है।
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छात्रों को हो रहा नुकसान
सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के खाली पद विभिन्न विषयों में बंटे हुए हैं, जिनमें हिंदी में 170, अंग्रेजी में 172, राजनीति शास्त्र में 130, और अर्थशास्त्र में 92 पद शामिल हैं। विज्ञान विषयों में भी कई पद खाली हैं, जैसे कि फिजिक्स में 151, केमिस्ट्री में 169, और बॉटनी में 164 पद रिक्त हैं। इसके अलावा, कामर्स में सबसे अधिक 260 पद खाली हैं। सरकारी कॉलेजों में खाली पदों के कारण शिक्षण व्यवस्था पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जबकि उच्च शिक्षा क्षेत्र के छात्रों को इससे नुकसान हो रहा है।
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