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सत्ता होती ही ऐसी चीज है जिसके साइड इफैक्ट बहुत ज्यादा और बहुत जल्दी दिखाई देने लगते हैं। जिन लोगों का पंच निष्ठा से कोई ज्यादा वास्ता नहीं होता लेकिन अपनी विशेष कलाकारी से सत्ता और संगठन के प्रभावशाली लोगों से निष्ठा गहरी हो जाती है। पहले ये मर्ज कांग्रेस का माना जाता था लेकिन अब यह मर्ज बीजेपी में भी लग गया है।
इसका परिणाम ये हो रहा है कि ये लोग पार्टी में पैठ जमाकर मलाई मार रहे हैं और आम कार्यकर्ता निराश हो रहा है। इनकी पहुंच नीचे से उतर तक है तो कार्यकर्ता बेचारा निचली सीढ़ी तक ही नहीं पहुंच पा रहा। इसी कड़ी में आपको बताते हैं बीजेपी के वे सात रत्न जिनका भाईसाहब के करीबी होने के कारण जलवा चल रहा है। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
भाईसाहब के सात रत्नों की बोल रही तूती
बीजेपी के भाईसाहब के सात रत्न हैं जिनकी पूरे संगठन में तूती बोल रही है। इनका पार्टी की रीति,नीति,सिद्धांत और विचारधारा से भले ही बहुत ज्यादा ताल्लुक न हो लेकिन भाईसाहब की कृपा से सब कुछ सेट है। इन सात रत्नों में कुछ अहम पदों पर विराजमान है तो कोई बिना पद के ही बिना रोकटोक कहीं भी आने जाने की हैसियत रखते हैं। जब बीजेपी की सरकार बनी तो बड़े पद पर बैठे दो रत्नों ने मिलकर कमाई का खेल शुरु कर दिया।
इन्होंने कारोबार जगत से जुड़े लोगों की जूम पर मीटिंग कर ली और टारगेट दे दिया। जब इस बात का पता उपर तक चला तो खुलेआम चल रहे खेल पर थोड़ी पर्देदारी कर दी लेकिन खेल चालू रहा। इनमें से एक ने रायपुर दक्षिण के लिए टिकट की खूब दावेदारी की लेकिन इस सीट के नेताजी के वीटो के कारण ये उम्मीदवार नहीं बन पाए। इनमें से एक वे हैं जिनके परिवार के लोग कांग्रेस के कृपा पात्र रहे लेकिन वे बीजेपी संगठन में जमे हुए हैं।
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चौथे रत्न महासमुंद के एक कारोबारी
तीसरे रत्न भी संगठन के अहम पद पर बैठे हैं। धमतरी में इनका खुला खेल चल रहा है। बात माइनिंग की हो, निर्माण कार्यों की या अन्य कारोबार से जुड़ी, सब इनके इशारे पर ही हो रहा है बदले में इनकी खूब कमाई हो रही है। चौथे रत्न महासमुंद के एक कारोबारी हैं। काम तो कारोबार है लेकिन भाईसाहब के करीबी होने के कारण कारोबार में सोना बरस रहा है।
बदले में भाईसाहब के पास मिठाई के डिब्बे पहुंच रहे हैं। पांचवें रत्न भी संगठन में बेहद खास पद पर बैठे हैं। यह पद पार्टी की ब्रांडिंग में और इस ब्रांडिंग के मैनेजमेंट में खास रोल अदा करता है। भाईसाहब की कृपा से ये भी बड़े जल्दी बड़े पद पर पहुंच गए। महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ी की इन्होंने विधायकी के सपने भी संजो लिए और रायपुर दक्षिण की दावेदारी भी कर दी।
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अब बात छटवें रत्न की
लेकिन इनकी यहां नहीं चल पाई क्योंकि नेताजी किसी और को चाहते थे। इनसे वे लोग भी दुखी हैं जिनसे ताल्लुकात बनाए रखने की जिम्मेदारी इनको दी गई है। अब बात छटवें रत्न की। यह छटवें रत्न के पास पद तो कोई खास नहीं है लेकिन इनकी चलती बहुत है। ये पार्टी के हर कार्यक्रम की फोटो में नजर आ जाते हैं। इनकी मेहमाननवाजी भी कमाल की है।
इनकी आव भगत से सत्ता से संगठन और रायपुर से दिल्ली तक के नेता बहुत खुश रहते हैं। उनको हर तरह की सेवा के लिए यह प्रस्तुत रहते हैं। इनको कार्यकर्ता और कार्यकर्ताओं को ये फूटी आंख नहीं सुहाते। सातवें रत्न हैं वे हैं जिनका व्यक्तित्व तो साधारण है लेकिन उनका कृत्तित्व असाधारण हैं। कहा जाता है कि वे केंद्रीय नेतृत्व या यूं कहें कि केंद्र सरकार के टॉप टू लोगों से सीधे जुड़े हुए हैं।
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यही है सत्ता के साइड इफैक्ट
उनकी यही खूबी उनको छत्तीसगढ़ संगठन में खास बनाती है। उनकी कुर्सी हमेशा मंच पर नजर आती है। वे कभी भी, किसी से भी कोई भी बात कर सकते हैं। उनके पास कोई खास पद नहीं है लेकिन उनको पद की जरुरत भी नहीं है। उनका काम तो ऐसे ही चल जाता है। ये बीजेपी के वे सात रत्न हैं जो किसी के दत्तक पुत्र हैं तो भाईसाहब के कृपा पात्र। इनको देखकर पार्टी को जीत दिलाने वाले और दरी बिछाने वाले कार्यकर्ता दुखी हो रहे हैं और ये लोग मलाई चाट रहे हैं। यही राजनीति है, यही सत्ता है और यही है सत्ता के साइड इफैक्ट।
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