हेट स्पीच केस: अमित बघेल की गिरफ्तारी की मांग वाली याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कही ये बात

छत्तीसगढ़ HC ने 'जोहार छत्तीसगढ़' प्रमुख अमित बघेल की गिरफ्तारी और जांच निगरानी की मांग वाली याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा- आपराधिक जांच का माइक्रो मैनेजमेंट संभव नहीं।

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Harrison Masih
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Raipur. जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के प्रमुख अमित बघेल के खिलाफ कथित हेट स्पीच (भड़काऊ भाषण) के आरोपों को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने बघेल की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि न्यायालय चल रही आपराधिक जांच में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

कोर्ट ने गिरफ्तारी और जांच की निगरानी की मांग ठुकराई

रायपुर निवासी अमित अग्रवाल द्वारा दायर याचिका में बघेल की तत्काल गिरफ्तारी, पुलिस जांच की निगरानी करने और एक समयबद्ध कार्रवाई करने की मांग की गई थी।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया: "किसी जांच की निगरानी, तरीका तय करना या वरिष्ठ अधिकारी की देखरेख के आदेश देना न्यायालय द्वारा 'क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन का माइक्रो मैनेजमेंट' होगा, जो अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।"

कोर्ट ने साफ कहा कि आपराधिक जांच जारी रहने के दौरान, न्यायालय न तो हस्तक्षेप कर सकता है और न ही किसी आरोपी की गिरफ्तारी का निर्देश जारी कर सकता है।

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इन समुदायों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप

याचिकाकर्ता अमित अग्रवाल ने स्वयं अदालत में पैरवी करते हुए आरोप लगाया कि जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के अध्यक्ष अमित बघेल लगातार भड़काऊ भाषण दे रहे हैं और सिंधी, जैन तथा अग्रवाल समुदायों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि बघेल के खिलाफ जगदलपुर सहित राज्य के कई स्थानों पर FIR दर्ज हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार 'राजनीतिक संरक्षण' के कारण कार्रवाई में जानबूझकर देरी कर रही है, जिसके बाद उन्होंने न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की थी।

ऐसे समझें पूरा मामला: 

अमित बघेल हेट स्पीच केस: बघेल पर सिंधी, जैन और अग्रवाल समुदायों के खिलाफ लगातार भड़काऊ भाषण (हेट स्पीच) देने का आरोप है।

याचिका की मांग: याचिकाकर्ता (अमित अग्रवाल) ने हाई कोर्ट से बघेल की तत्काल गिरफ्तारी और पुलिस जांच की निगरानी करने का निर्देश देने की मांग की थी।

कोर्ट का मुख्य फैसला: चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया।

हस्तक्षेप से इनकार: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया का काम 'क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन का माइक्रो मैनेजमेंट' करना नहीं है; इसलिए जांच जारी होने पर कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

कोर्ट ने माना कि जब एफआईआर दर्ज हैं और जांच चल रही है, तो आरोपी की गिरफ्तारी का निर्देश देना या जांच का तरीका तय करना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

सरकार ने निष्क्रियता के आरोपों को नकारा

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं ने अदालत को सूचित किया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत चल रही है और सरकार पर निष्क्रियता का आरोप निराधार है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, हाई कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि चूंकि मामले में कई एफआईआर पहले ही दर्ज हो चुकी हैं और उनकी जांच प्रगति पर है, इसलिए अदालत इस चरण में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसी आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।

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