छत्तीसगढ़ के आंबेडकर अस्पताल के 100 से ज्यादा डॉक्टरों पर गिरफ्तारी वारंट

छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रायपुर के आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों की जिंदगी इलाज, ऑपरेशन और पोस्टमार्टम के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन अब 100 से अधिक डॉक्टरों को कोर्ट में पेश न होने के कारण गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुके हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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Arrest warrant against more than 100 doctors of Chhattisgarh's Ambedkar Hospital the sootr
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छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रायपुर के आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों की जिंदगी इलाज, ऑपरेशन और पोस्टमार्टम के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन अब उनके सिर पर एक नई मुसीबत मंडरा रही है। 100 से अधिक डॉक्टरों को कोर्ट में पेश न होने के कारण गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुके हैं। यह वारंट किसी अपराध के लिए नहीं, बल्कि मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) में कोर्ट की पेशी से गायब रहने की वजह से हैं। पिछले दो महीनों में कई डॉक्टर गिरफ्तारी से बचने के लिए कोर्ट में हाजिरी लगा रहे हैं। अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और वीडियो कॉल के जरिए भी पेशी की सुविधा शुरू हो गई है, जिससे डॉक्टरों को कुछ राहत मिली है।

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इसलिए जरूरी है डॉक्टरों की पेशी

मेडिको-लीगल केस जैसे सड़क हादसे, हत्या, मारपीट या संदिग्ध मौत के मामलों में डॉक्टरों के बयान और मेडिकल रिपोर्ट बेहद अहम होते हैं। ये बयान पीड़ित को मुआवजा दिलाने और केस को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इलाज, पोस्टमार्टम या मरीज का मुलाहिजा करने वाले डॉक्टरों को कोर्ट में गवाही देना अनिवार्य होता है। अगर डॉक्टर पेश नहीं होते, तो केस लंबित रहता है।

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डॉक्टरों की मजबूरी

डॉक्टरों का कहना है कि ओपीडी, ऑपरेशन और आपातकालीन ड्यूटी के चलते उनके लिए कोर्ट जाना मुश्किल हो जाता है। कई बार जूनियर रेसीडेंट डॉक्टर (जूडो) अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने गृह राज्य चले जाते हैं, जिससे पेशी में दिक्कत होती है। पहली बार समन, दूसरी बार गैर-जमानती वारंट और तीसरी बार गिरफ्तारी वारंट जारी होता है। इसके बाद पुलिस डॉक्टरों को कोर्ट तक लाती है। रिटायरमेंट या ट्रांसफर के बाद भी पुराने केस में डॉक्टरों को भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रीवा या जबलपुर जैसे शहरों में कोर्ट जाना पड़ता है।

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हर विभाग के डॉक्टर प्रभावित

आंबेडकर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में कोई भी क्लीनिकल विभाग ऐसा नहीं बचा, जहां के डॉक्टरों को गैर-जमानती या गिरफ्तारी वारंट न मिले हों। मेडिसिन, सर्जरी, ऑर्थोपीडिक्स, न्यूरोसर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, ईएनटी, नेत्र रोग, बाल रोग सर्जरी और रेडियो डायग्नोसिस जैसे विभागों के रेसीडेंट से लेकर कंसल्टेंट तक प्रभावित हैं। आपातकालीन चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) भी इस मुसीबत से अछूते नहीं हैं।

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विशेषज्ञ की राय

रिटायर्ड डीएमई और फोरेंसिक मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. आरके सिंह के मुताबिक, डॉक्टर मेडिको-लीगल केस में महत्वपूर्ण साक्ष्य होते हैं। उनकी जांच, रिपोर्ट और बयान के बिना केस आगे नहीं बढ़ सकता। पेशी में न आने पर पहले समन, फिर गैर-जमानती वारंट और आखिर में गिरफ्तारी वारंट जारी होता है।

महिला डॉक्टरों को भी राहत नहीं

वारंट और पेशी के मामले में महिला डॉक्टरों को भी कोई छूट नहीं मिलती। उन्हें भी पुराने केस में कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है। हालांकि, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा ने दूरदराज के कोर्ट में पेशी को थोड़ा आसान जरूर बनाया है। डॉक्टरों की कोर्ट में पेशी न केवल कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, बल्कि यह पीड़ितों को न्याय और मुआवजा दिलाने में भी अहम है। लेकिन व्यस्तता और संसाधनों की कमी के चलते डॉक्टरों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे कदम इस दिशा में राहत दे रहे हैं, लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना अभी बाकी है।

 

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