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रायपुर : छत्तीसगढ़ में बाल संप्रेक्षण गृह इतने बदहाल हैं कि उनमें बच्चों का रहना नर्क में रहने से कम नहीं है। हम यह बात कोरबा जिले के चाइल्ड होम की हालत को देखकर कह रहे हैं। पिछले दिनों बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम ने रात के वक्त एकाएक कोरबा के रिस्दी में संचालित शासकीय बाल संप्रेक्षण गृह का निरीक्षण किया। घंटे भर यहां की दुर्दशा देखने के बाद बाल आयोग की टीम वापस रायपुर लौट आई। बाल आयोग की अध्यक्ष डॉ वर्णिका शर्मा ने एक कड़ा पत्र विभागीय अफसरों को लिखा है। लिखकर हफ्ते भर में संप्रेक्षण गृह की दुर्दशा को सुधारने का निर्देश दिया।
चाइल्ड होम की हालत पर हड़कंप
डॉ वर्णिका शर्मा का पत्र में कोरबा के चाइल्ड होम की बदहाली की कहानी से कोरबा के महिला एवं बाल विकास विभाग तथा जिला प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों के बीच हड़कंप मच गया। डॉ शर्मा ने कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को फोन करके बाल संप्रेक्षण गृह की दुर्दशा के बारे में जानकारी दी । जिसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर एसडीएम संजय महिलांगे ने बाल संप्रेक्षण गृह का दौरा किया और रिपोर्ट तैयार की। वहीं पत्र मिलते ही महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव एवं संचालक पीएस एल्मा ने संप्रेक्षण गृह में तत्काल सुधार के निर्देश दिए।
बाल आयोग अध्यक्ष के पत्र में यह लिखा :
बाल संप्रेक्षण गृह की स्थिति बेहद ही गंभीर, असंतोषजनक और बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत नाजुक व चिन्ताजनक पाई गई।
बाथरूम बहुत ही गंदे थे एवं कमोड का पानी ओव्हरफ्लो होकर बाहर तक बह रहा था, जो कि बच्चों पर बहुत गंभीर रोग का खतरा बन सकता है।
बिजली के तार बिना प्लग के पूर्णतः असुरक्षित रूप से खुले थे एवं कई तार पानी में डले हुए दिखाई दे रहे थे, जिससे बच्चों में करेन्ट लगकर उनके जीवन तक को गंभीर खतरा हो सकता है।
खिड़कियों के पल्ले गायब थे, बाथरूम के दरवाजे टूटे हुए थे। यहाँ तक की अधिकांशतः दरवाजों को आधा भाग था ही नहीं ।
खिड़कियों के ऊपर लगी हुई मच्छर की जाली टूटी एवं फटी हुई थी, जिसके फलस्वरूप ऐसी जाली निष्प्रयोज्य हो गई थी ।
बच्चों के उपयोग के लगभग सभी स्थानों पर भारी मात्रा में लाल चीटियाँ मौजूद थीं । प्रथम दृष्टया देखने पर स्पष्ट पता चल रहा था कि बच्चे इन्हीं स्थानों पर निरंतर उठते बैठते हैं एवं उनके ऊपर लाल चीटियों के काटने का खतरा निरंतर मौजूद रहता है। मेरे देखते समय बिस्तर तक में लाल चीटियाँ दिखाई दे रही थीं।
संस्था का ड्रेनेज सिस्टम कई महिनों से खराब बताया गया। यहाँ तक कि बच्चों के कमरे तथा बाहर का वातावरण भी बेहद बदबूदार था ।
बच्चों द्वारा प्लास्टिक के मग्गे से घड़े का पानी पीने के लिए उपयोग किया जा रहा था । वहाँ लगा हुआ आर. ओ. सिस्टम खराब व बंद पड़ा था ।
कमरे में लगे आईने के काँच टूटे हुए थे। इस स्थिति में बच्चों के आपस में झगड़ा करने पर उन्हें टूटे काँच से चोट लगने अथवा इन काँचों का उपयोग भी आपसी लड़ाई में करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
सी.सी.टी.वी. कैमरा खराब था ।
अधीक्षिका मौके पर निरीक्षण के दौरान मौजूद नहीं थी। बाद में सूचना प्राप्त होने पर उनकी आमद हुई ।
बड़े एवं छोटे बच्चे एक ही भवन में रहते पाये गये ।
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पत्र में लिखा है कि निरीक्षण के दौरान मुझे बताया गया कि एक एकीकृत भवन का निर्माण (कोहड़िया में निर्मित भवन) लगभग 8-9 वर्ष पूर्व 9.00 करोड़ रूपये की राशि की लागत से बनाया गया है, परंतु पहुँच मार्ग न होने से उस भवन में बाल संरक्षण से संबंधित सभी इकाईयाँ जो कि वहाँ स्थानांतरित की जानी थी, वे नहीं हुई हैं। उनमें मेरे द्वारा निरीक्षण किया गया यह भवन भी शामिल होना बताया गया। यह भी बताया गया कि इतने अधिक वर्ष व्यतीत हो जाने के कारण इस भवन का काफी सामान जैसे दरवाजे टायलेट की सामग्री की चोरी भी हो चुकी है। उक्त स्थिति में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मदों से इसे सुधरवाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। डॉ वर्णिका ने खामियों का जिक्र करते हुए अंत में लिखा है कि उक्त निरीक्षण में पाई गई स्थिति बेहद ही चिंताजनक एवं गंभीर है तथा इसमें तत्काल शासन स्तर से हस्तक्षेप की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तत्काल इस बाल सम्प्रेक्षण गृह को कम से कम किसी स्वच्छ, सुरक्षित व अच्छे किराये के भवन में तो स्थानांतरित किया ही जा सकता है अथवा मकान मालिक से कहकर तत्काल सुधार की व्यवस्थाएं की जा सकती है।
सालों बाद भी नहीं सुधरी व्यवस्था
कोरबा जिले का बाल संप्रेक्षण (सुधार) गृह यहां के रिस्दी चौक पर स्थित निजी भवन में किराए पर चल रहा है। सालों पहले यहां का निरीक्षण बाल आयोग की पूर्व अध्यक्ष प्रभा दुबे द्वारा किया गया था। तब उन्होंने भी जमकर नाराजगी का इजहार किया था और सुधार का निर्देश भी दिया था, मगर तब के अफसरों और जिला प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया और साथी जस की तस नहीं, और भी बदतर हो गई है। दरअसल जिलों में संचालित बाल संस्थाओं के देखरेख और नियमित मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारी पर होती है। कोरबा में यह पद दयादास महंत पिछले कई सालों से संभाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि ये अधिकारी अगर सक्रिय होते तो बाल सुधार गृह के भवन की दशा कब की सुधर गई होती। आरोप है कि कमीशनखोरी के चक्कर में किराए का ये भवन न तो सुधरवाया जा रहा है और न ही बदला जा रहा है।
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