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छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय महत्व की भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर-विशाखापट्टनम आर्थिक गलियारे के लिए भूमि अधिग्रहण में हुए कथित मुआवजा घोटाले की जांच अब तक अधूरी है। इस घोटाले में शामिल जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान के लिए गठित चार जांच समितियों को 15 जुलाई 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन एक भी समिति ने समय-सीमा में रिपोर्ट जमा नहीं की।
इससे नाराज संभागायुक्त ने अब जांच में शामिल अधिकारियों ज्योति सिंह, उमाशंकर बंदे, निधि साहू, और इंदिरा देवहारी को नोटिस जारी करने की चेतावनी दी है। संभागायुक्त ने साफ किया है कि अगर अफसर संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए, तो उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई होगी।
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43 करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी
भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर और दुर्ग संभागों में भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा वितरण में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। जांच में सामने आया कि अभनपुर क्षेत्र में स्वीकृत 29.5 करोड़ रुपये के मुआवजे को बढ़ाकर 78 करोड़ रुपये कर दिया गया, जिससे 43.18 करोड़ रुपये की राशि का गबन हुआ।
यह घोटाला भूमि माफियाओं और कुछ राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों और बैकडेट में रजिस्ट्री के जरिए मुआवजा राशि को हड़प लिया। धमतरी के निवासियों कृष्ण कुमार साहू और हेमंत देवांगन ने इस घोटाले की शिकायत दर्ज की थी, जिसके बाद जांच शुरू हुई।
प्रमुख आरोपी और उनकी भूमिका
इस घोटाले में कई अधिकारियों और व्यक्तियों के नाम सामने आए हैं।
निर्भय कुमार साहू : तत्कालीन एसडीएम और जगदलपुर नगर निगम आयुक्त। उन पर अभनपुर के नायकबांधा और उरला गांवों में भूमि रिकॉर्ड में हेराफेरी कर मुआवजा राशि बढ़ाने का आरोप है। घोटाला उजागर होने के बाद उन्हें 4 मार्च 2025 को निलंबित कर दिया गया।
उमा तिवारी और केदार तिवारी : यह दंपति घोटाले के प्रमुख आरोपियों में शामिल है। इन पर आरोप है कि इन्होंने दूसरों के नाम पर जारी 2 करोड़ रुपये का मुआवजा हड़प लिया। उमा तिवारी की अंतरिम जमानत याचिका को हाईकोर्ट ने हाल ही में खारिज कर दिया।
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हर्मीत सिंह खनुजा : उमा तिवारी का सहयोगी, जिसने मुआवजा राशि को गलत तरीके से हासिल करने में मदद की।
विजय जैन : एक व्यवसायी, जो उमा तिवारी के साथ मिलकर किसानों के हक की मुआवजा राशि हड़पने में शामिल था।
सुरेश मिश्रा : बिलासपुर-उरगा राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए ढेका गांव में भूमि अधिग्रहण में फर्जी दस्तावेज तैयार करने का आरोपी। निलंबन और एफआईआर के दबाव में उन्होंने आत्महत्या कर ली।
डीएस उइके : तत्कालीन तहसीलदार, जिन पर सुरेश मिश्रा के साथ मिलकर मुआवजा राशि में हेराफेरी का आरोप है।
लक्षेश्वर प्रसाद किरण, जीतेंद्र प्रसाद साहू, दिनेश पटेल, लेखराम देवांगन: ये नायब तहसीलदार और पटवारी हैं, जिन्हें निलंबित किया गया है। इन पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए मुआवजा राशि बढ़ाने का आरोप है।
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जांच में देरी, अफसरों पर दबाव
इस मामले की जांच के लिए 15 जून 2025 को संभागायुक्त नेचार टीमें गठित की थीं। टीम को एक महीने में यानी 15 जुलाई 2025 तक रिपोर्ट देनी थी। इन टीमों की अगुवाई अपर कलेक्टर ज्योति सिंह, उमाशंकर बंदे, निधि साहू, और इंदिरा देवहारी कर रहे थे। प्रत्येक टीम में डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार शामिल थे।
इनका काम था उस समय के एसडीएम, तहसीलदार, आरआई, और पटवारियों की सूची तैयार करना, जो भारतमाला परियोजना के दौरान भूमि अधिग्रहण में शामिल थे, और उनके कार्यों की जांच करना।लेकिन समय-सीमा खत्म होने के बाद भी कोई रिपोर्ट जमा नहीं हुई। संभागायुक्त का कहना है कि कुछ प्रभावशाली लोग और रसूखदार अफसरों पर कार्रवाई रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं। यही वजह है कि जांच ठंडे बस्ते में चली गई है।
अब संभागायुक्त ने इन चारों अधिकारियों को नोटिस जारी करने का फैसला किया है, जिसमें पूछा जाएगा कि तय समय में रिपोर्ट क्यों नहीं दी गई।
क्या हुआ अब तक?
जांच समिति गठन : 15 जून 2025
रिपोर्ट की समय-सीमा : 15 जुलाई 2025
टीमों की संख्या : 16 अफसरों की 4 टीमें
रिपोर्ट की स्थिति : एक भी समिति ने रिपोर्ट जमा नहीं की
कार्रवाई : चारों जांच अधिकारियों को नोटिस की तैयारी, संतोषजनक जवाब न मिलने पर होगी कार्रवाई
राजनीतिक हलचल और सीबीआई जांच की मांग
इस घोटाले ने छत्तीसगढ़ की सियासत में हलचल मचा दी है। विपक्षी नेता डॉ. चरणदास महंत और सांसद ज्योत्सना चरणदास महंत ने इस मामले को लोकसभा में उठाया और सीबीआई जांच की मांग की। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा, जिसका जवाब मिला, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक सीबीआई जांच की मंजूरी नहीं दी। कांग्रेस का आरोप है कि यह घोटाला पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान हुआ, जबकि बीजेपी इसे विपक्ष की साजिश बताकर पलटवार कर रही है।
और विवादों में घिर सकता है मामला
भारतमाला परियोजना का यह घोटाला न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि जनता का भरोसा भी तोड़ रहा है। जांच में देरी और प्रभावशाली लोगों का दबाव इस मामले को और जटिल बना रहा है। अब सभी की नजर संभागायुक्त के नोटिस और जांच समितियों की अगली कार्रवाई पर टिकी है। अगर समय पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला और विवादों में घिर सकता है।
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