/sootr/media/media_files/2025/01/07/1CSJlJXxIyG0zU258ZUy.jpg)
बीजापुर नक्सली हमले में एक के बाद एक अहम पहलु सामने आ रहे हैं। नक्सलियों ने इस धमाके को कैसे, कब और क्यों अंजाम दिया यह द सूत्र ने अब तक बताया है। आइए अब जानते है कि नक्सली इस धमाके की तैयारी कब से कर रहे थे। इस धमाके को सफलता देने के लिए नक्सली महीनों नहीं बल्कि, सालों से लगे हुए थे।
नक्सली इसी फिराक में थे कि कब उन्हें बड़ी संख्या में जवान एक साथ मिले और वह इस धमाके को अंजाम दें। दरअसल, नक्सलियों का मंसूबा सिर्फ 9 की संख्या पर नहीं था। वह इससे भी अधिक जवानों को उड़ाने के लिए घात लगाकर बैठे थे। इस धमाके को अंजाम देने के लिए नक्सलियों ने 3 साल पहले ही पूरी योजना बना ली थी। कुटरू से बेदरे (जहां धमाका हुआ) में 10 साल पहले ही सड़क बन चुकी थी।
नक्सलियों ने किया प्रेशर IED ब्लास्ट, फोर्स ने 3 आतंकी मार गिराए
इस सड़क को पतली डामर की परत से तैयार किया गया था। इस वजह से सड़क तीन साल पहले बारिश के मौसम में बह गई। इसके चलते 3 साल पहले इस सड़क को फिर से बनाया गया। तभी नक्सलियों ने यहां 60 किलो का हैवी आईईडी बम प्लांट कर दिया था। सड़क के किनारे 6-7 पेड़ होने के कारण नक्सलियों को जानकारी थी कि बम कहां पर प्लांट है।
फोर्स की कौन सी टीम को उड़ाना था, यह भी पहले से तय था
इतना ही नहीं, नक्सलियों ने यह भी पहले से तय कर रखा था कि उन्हें कौन से फोर्स की टीम को उड़ाना है। नक्सलियों के निशाने पर डीआरजी जवान थे। उन्हें यह भी मालूम था कि गाड़ी नंबर 11 में डीआरजी जवान ही बैठे हैं। जब 11 नंबर की गाड़ी आईईडी बम के पास गई तो, नक्सलियों ने धमाके को अंजाम दे डाला। धमाके के लिए नक्सली एम्बुंश लगाकर घात पर ही बैठे थे।
IED ब्लास्ट में 9 जवान शहीद, ऑपरेशन से लौट रही थी फोर्स
डीआरजी जवान नक्सलियों के हैं सबसे बड़े दुश्मन
डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड) जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डीआरजी की टीम में स्पेशल जवानों की भर्ती होती है। डीआरजी में वह सुरक्षाबल शामिल होते हैं जो, बस्तर इलाके या इसके आस-पास के क्षेत्र के होते हैं। इन सुरक्षाबलों को आसपास की स्थानीय भाषा आती है। ये जवान बस्तर के लोगों से भी जल्दी घुल-मिल जाते हैं। डीआरजी जवानों के इन गुणों के कारण फोर्स को ऑपरेशन करने में सफलता मिली है। नक्सलियों की भाषा आम बोल-चाल वाली होती है। मुखबिरों से भी डीआरजी जवानों के अच्छे संपर्क होते हैं। इसे डीआरजी के जवान आसानी से समझ जाते हैं।
जिस रोड भ्रष्टाचार के लिए मुकेश की हत्या... उसी की रिपोर्ट दबा दी
FAQ
पत्रकार मुकेश चंद्राकर के सिर पर 15 फ्रैक्चर, लिवर के 4 टुकड़े