अमेरिका में हुए केस के कारण अडानी ग्रुप एक बार फिर चर्चा में है। अडानी का छत्तीसगढ़ से खास कनेक्शन है। यहां पर अडानी का 25 हजार करोड़ का निवेश है। अडानी पर बीजेपी की मेहरबानी कही जाती है लेकिन कांग्रेस भी अडानी पर खूब मेहरबान रही है। 2014 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने अडानी को छत्तीसगढ़ में कोयला खदानें आवंटित कीं। लेकिन इन कोयला खदानों को पर्यावरण और वन स्वीकृति प्रदेश की भूपेश सरकार के समय मिली।
यहीं से पेड़ों की कटाई शुरु हुई। इससे पहले मनमोहन सरकार ने पहली बार अडानी को छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक अलॉट किए थे। भूपेश बघेल अब भले ही कह रहे हों कि उन्होंने अडानी से कोई अनुबंध नहीं किया लेकिन अडानी को हसदेव से कोयला निकालने की अनुमति तो उनकी सरकार ने ही दी। आइए आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ में कोयला खदान और उसकी अनुमति मिलने की अडानी की कहानी।
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अडानी कांड की जद में बीजेपी-कांग्रेस
छत्तीसगढ़ में अडानी ग्रुप को काम दिए जाने के मुद्दे पर एक बार फिर सियासत तेज हो गई है। इसकी जद में बीजेपी के साथ कांग्रेस भी आ गई है। एक तरफ़ बीजेपी आरोप लगा रही है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने अडानी को काम दिया, दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी कह रही है कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने अडानी को काम दिया।
अडानी ग्रुप को लेकर होने वाले ये विवाद असल में छत्तीसगढ़ की कोयला खदानों से जुड़े हुए हैं। जिनको लेकर पिछले एक दशक से स्थानीय आदिवासी विरोध कर रहे हैं। राज्य में कोयला खदान का आवंटन केंद्र सरकार करती है लेकिन इस पर राज्य सरकार आपत्ति कर सकती है। यदि राज्य सरकार की आपत्ति हो तो उस खदान की नीलामी नहीं की जाती।
खदान को पर्यावरण और वन की स्वीकृति राज्य सरकार करती है। आदिवासी कानूनों के तहत स्थानीय स्तर पर ग्राम सभा से मंजूरी ली जाती है। अडानी ग्रुप एमडीओ मॉडल पर काम करता है यानी माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर मॉडल।
इस मॉडल के तहत सभी तरह के क्लियरेंस लेने और खनन का जिम्मा भी अडानी ग्रुप के पास ही रहता है। मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने राजस्थान सरकार को आवंटित परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान से एमडीओ मॉडल पहली बार लागू किया गया। उस समय छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की सरकार थी।
राजस्थान सरकार ने अपनी इस खदान के लिए अडानी ग्रुप के साथ एमडीओ समझौता किया। अडानी के पास छत्तीसगढ़ में एमडीओ मॉडल पर सात कोयला खदानें हैं। इनमें से 18 मिलियन टन वार्षिक क्षमता वाले परसा ईस्ट केते बासन और केते एक्सटेंशन कोयला खदान मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में आवंटित की गई थी।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से देश की 204 कोयला खदानों को निरस्त किए जाने के बाद, छत्तीसगढ़ की पाँच अन्य कोयला खदानें, केंद्र की मोदी सरकार ने आवंटित कीं। यही बात पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह रहे हैं।
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भूपेश बघेल की मेहरबानी
प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी समेत भूपेश बघेल और दूसरे नेता, इन कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध करते रहे हैं, जिनका एमडीओ अदानी समूह के पास है। लेकिन भूपेश बघेल का सरकार में आने के बाद रुख बदल गया।
सत्ता में आने के पांच महीने के भीतर ही छत्तीसगढ़ की आवंटित हसदेव अरण्य की पतुरिया-गिदमुड़ी कोयला खदान अडानी ग्रुप के पास चली गई। इस कोयला खदान के लिए कांग्रेस सरकार ने ही 31 मई 2021 को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया की अधिसूचना जारी की।
हसदेव अरण्य के ही इलाक़े में परसा कोयला खदान का एमडीओ भी अडानी समूह के पास है। कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद चार मार्च 2021 को छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने परियोजना के लिए स्थापना और संचालन की अनुमति और 7 अप्रैल 2022 को खनन परियोजना संचालन की सहमति जारी की।
6 अप्रैल 2022 को राज्य सरकार के वन विभाग ने खनन के लिए अंतिम वन अनुमति जारी की। जिसके आधार पर 19 और 21 अप्रैल 2022 को इस खदान के लिए पेड़ों की कटाई की अनुमति जारी की गई।
अडानी के एमडीओ वाले परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साल 2022 में रायपुर पहुँचे। उन्होंने कहा कि वे भूपेश बघेल से इस कोयला खनन को अनुमति देने का अनुरोध करने के लिए आए हैं।
कांग्रेस के दोनों मुख्यमंत्रियों की लगभग चार घंटे तक बैठक चली और उसी दिन यानी 25 मार्च 2022 को ही अदानी के एमडीओ वाले परसा ईस्ट केते बासन की वन स्वीकृति का अंतिम आदेश राज्य सरकार ने जारी कर दिया। अडानी के ही एमडीओ वाले गारे-पेलमा सेक्टर-2 कोयला खदान के लिए तो जनसुनवाई की कार्रवाई ही भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में 27 सितंबर 2019 को हुई।
19 अप्रैल 2022 को राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर इस कोयला खदान के लिए वन मंजूरी देने की सिफ़ारिश की। आलोक शुक्ला कहते हैं कि इन फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव की जाँच के लिए थाना से लेकर कलेक्टर तक शिकायतों के बाद हसदेव के ग्रामीण 300 किलोमीटर पदयात्रा करके रायपुर पहुंचे । पदयात्रियों से मिलने के बाद तत्कालीन राज्यपाल अनसुइया उइके ने कहा कि आदिवासियों के साथ अन्याय होने नहीं दिया जायेगा वह उनकीं प्रशासक हैं ।
उन्होंने 23 अक्टूबर 2021 को मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जाँच करने और तब तक सभी कार्यवाही स्थगित रखने का आदेश दिया। राज्यपाल के आदेश को दरकिनार करके सरकार ने इस कोल ब्लॉक को 2021 में ही वन स्वीकृति जारी कर दी। ग्राम सभाओं की जाँच किये बिना ही तत्कालीन भूपेश सरकार ने 7 अप्रेल 2022 को इसी कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति के अंतिम आदेश को भी जारी कर दिया।
आदिवासी नेता बघेल पर लगा रहे ये आरोप
नियम विरुद्ध खदानों की मंजूरी के ख़िलाफ़ पिछले कई सालों से आंदोलन कर रहे आदिवासी नेता कहते हैं कि गारे-पेलमा की खदानों के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में चुनाव से पहले भूपेश बघेल भी शामिल होते रहे हैं। उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो वे इस खदान की स्वीकृति रद्द करेंगे, लेकिन इसके उलट सत्ता में आते ही उन्होंने अडानी के एमडीओ वाले इस खदान के लिए ज़रूरी स्वीकृतियाँ जारी करनी शुरू कर दीं। छत्तीसगढ़ अकेला ऐसा राज्य है, जहां अडानी ग्रुप के दो बिजली संयंत्र हैं, एक रायपुर के रायखेड़ा में और दूसरा रायगढ़ में।
कांग्रेस के कार्यकाल में ही रायपुर स्थित जीएमआर छत्तीसगढ़ एनर्जी लिमिटेड के पावर प्लांट को अडानी ग्रुप ने ख़रीदा और 20 अगस्त 2019 से कंपनी अडानी पावर लिमिटेड के पास आई। इसी तरह रायगढ़ की कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड का प्रबंधन भी 20 जुलाई 2019 से अदानी समूह के प्रभाव में आया। विपक्ष में रहते हुए हसदेव अरण्य में अडानी के एमडीओ वाले कोयला खदानों के ख़िलाफ़ आंदोलनों में लगातार शामिल होने वाले भूपेश बघेल ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने कोयला संकट का हवाला देते हुए एक भी खदान की अनुमति रद्द करने से इनकार कर दिया। इस मामले में कांग्रेस नेता कहते हैं कि बीजेपी यह भ्रम फैलाने का काम कर रही है। कांग्रेस सरकार में तो अडानी के नियम विरुद्ध किए गए कामों को रोकने का काम किया गया है।