नगरीय निकाय चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी में आंतरिक विवाद और असंतोष उभरकर सामने आ रहा है। टिकट वितरण के बाद से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के इस्तीफों का सिलसिला जारी है। यह पूरा मामला पेंड्रा नगर पालिका के वार्ड नंबर 1 का है, जहां कांग्रेस की घोषित प्रत्याशी प्रेमवती कोल ने चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। प्रेमवती कोल के इस कदम ने कांग्रेस के अंदरूनी माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, पेंड्रा नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस ने पंकज तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, इस फैसले से पार्टी के कई स्थानीय नेता और कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं। वार्ड नंबर 1 की प्रत्याशी प्रेमवती कोल के इस्तीफे के पीछे भी इसी असंतोष को कारण बताया जा रहा है। पार्टी के भीतर पेंड्रा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के चयन को लेकर भारी मतभेद की स्थिति है। स्थानीय नेताओं का मानना है कि निर्णय प्रक्रिया में उनकी अनदेखी की गई है।
कांग्रेस के लिए बड़ा झटका
पेंड्रा नगर पालिका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में उम्मीदवार का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। निकाय चुनाव के इस अहम समय में कार्यकर्ताओं और नेताओं का लगातार पार्टी छोड़ना, कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े करता है। अब देखना होगा कि कांग्रेस इस आंतरिक कलह को कैसे संभालती है और निकाय चुनाव में इसे अपने पक्ष में कैसे मोड़ती है।
पेंड्रा नगर पालिका के वार्ड नंबर 1 की कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमवती कोल ने क्यों इस्तीफा दिया?
प्रेमवती कोल ने वार्ड नंबर 1 से कांग्रेस की घोषित प्रत्याशी होने के बावजूद चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसका मुख्य कारण पार्टी में अध्यक्ष पद के चयन को लेकर असंतोष और निर्णय प्रक्रिया में उनकी अनदेखी बताया जा रहा है।
पेंड्रा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस ने किसे उम्मीदवार बनाया है, और इसका विरोध क्यों हो रहा है?
कांग्रेस ने पेंड्रा नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए पंकज तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। इस फैसले का पार्टी के कई स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विरोध किया है क्योंकि उनका मानना है कि निर्णय प्रक्रिया में उनकी राय को नजरअंदाज किया गया है।
कांग्रेस के लिए प्रेमवती कोल के इस्तीफे का क्या प्रभाव हो सकता है?
प्रेमवती कोल के इस्तीफे से कांग्रेस को पेंड्रा नगर पालिका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में बड़ा झटका लग सकता है। चुनाव के समय नेताओं और कार्यकर्ताओं के इस्तीफे से पार्टी की चुनावी रणनीति कमजोर हो सकती है, जिससे पार्टी को मतदाताओं का विश्वास बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है।