जिस रामगढ़ पहाड़ी पर राम रहे उस पर धमाके की आंच, अडानी का कोल ब्लॉक, बीजेपी करा रही जांच

छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक एक बड़ा मुद्दा है। खासतौर तब जबकि उनका ठेका अडानी कंपनी पास है। आदिवासी इसका घोर विरोध कर रहे हैं क्योंकि इसके लिए हसदेव के पेड़ काटे जा रहे हैं।

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Arun Tiwari
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रायपुर : छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक एक बड़ा मुद्दा है। खासतौर तब जबकि उनका ठेका अडानी कंपनी पास है। आदिवासी इसका घोर विरोध कर रहे हैं क्योंकि इसके लिए हसदेव के पेड़ काटे जा रहे हैं। अब एक नया विवाद सामने आ गया है। राजस्थान को रोशन करने के लिए जिस केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक से कोयला निकाला जा रहा है उससे छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक रामगढ़ पहाड़ी के वजूद पर खतरा मंडरा रहा है।

कोल ब्लॉक पर अडानी कंपनी के धमाके की धमक रामगढ़ को हिला देगी। बीजेपी सरकार ने हाल ही में इस कोल ब्लॉक की अनुमति अडानी कंपनी को दी है। इस पर विवाद बढ़ा तो बीजेपी संगठन ने तीन सदस्यों की जांच कमेटी बना दी। यह कमेटी पड़ताल कर बताएगी कि रामगढ़ पहाड़ी को इससे कितना नुकसान है। आइए आपको बताते हैं सरकार,अडानी,बीजेपी और रामगढ़ के बीच उलझी कहानी।     

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क्यों खास है रामगढ़ पहाड़ी :

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में ऐतिहासिक रामगढ़ पहाड़ी है। यह आदिवासियों की आस्था का केंद्र तो है ही लेकिन इसका एक और इतिहास है जो इसे खास बनाता हैं। रामगढ़ वो पहाड़ी है जहां भगवान राम दो बार आए। पहली बार विश्वामित्र के साथ दंडकारण्य के राक्षसों का वध करने और दूसरी वार वनवास के समय। 

यहां के लोग बताते हैं कि वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां पर काफी वक्त गुजारा है। महाकवि कालीदास भी यहां लंबे समय तक रहे हैं। कहा जाता है कि उनकी महान रचना मेघदूतम उन्होंने यहीं लिखी थी। इसके अलावा यहां पर आदिवासी समुदाय के कई देवी देवताओं का स्थान भी है। यही कारण है कि रामगढ़ पहाड़ी को खास माना जाता है। 

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रामगढ़ के वजूद पर संकट : 

इसी ऐतिहासिक रामगढ़ पहाड़ी पर वजूद का संकट मंडरा गया है। कांग्रेस, सरकार,अडानी,बीजेपी और रामगढ़ के बीच यह कहानी उलझ गई है। दअसल यह मसला कोल ब्लॉक को लेकर है। यह केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक  है। यह खदान भी राजस्थान की है और एमडीओ अनुबंध अडानी कंपनी का है। इस खदान का 95 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है।

और इसमें 1742 हेक्टेयर वन भूमि में 5 लाख से अधिक पेड़ काटे जाएँगे । यह खदान सरगुजा के प्रसिद्ध रामगढ़ पहाड़ का भी विनाश करेगा । यह वही खदान है जिसके लिए तमनार से पेड़ कटना चालू हो गए हैं। इस कोल ब्लॉक के धमाके से रामगढ़ की पहाड़ी दहल जाएगी और इसके टूटने का संकट आ जाएगा।

इस कोल ब्लॉक की अनुमति को कांग्रेस की भूपेश सरकार ने रद्द किया था। लेकिन जून 2025 में बीजेपी सरकार ने इस कोल ब्लॉक से कोयला निकालने की अनुमति दे दी। यही कारण है कि यहां से कोयला निकालने के लिए होने वाले धमाकों से इसके करीब स्थित रामगढ़ पहाड़ी का अस्तित्व मिट जाएगा। 

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कांग्रेस का विरोध : 

हसदेव क्षेत्र में नए कोल प्रोजेक्ट के कारण सरगुजा की सांस्कृतिक धरोहर रामगढ़ पर्वत पर संभावित खतरे को देखते पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की पहल पर रामगढ़ संरक्षण और संवर्द्धन समिति नाम के गैर राजनीतिक संस्था का गठन किया गया है। टीएस सिंहदेव ने कहा कि केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक से रामगढ़ के अस्तित्व को खतरा है।

विष्णुदेव सरकार बनने के बाद पुराने रिपोर्ट से उलट नई रिपोर्ट पेश कर कोल ब्लॉक को मंजूरी दी जा रही है। पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने रामगढ़ की ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की मुहिम शुरू की है। सिंहदेव ने कहा कि खदान के कारण ऐतिहासिक रामगढ़ पहाड़ के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे के खिलाफ अगर खड़ा नहीं हुआ तो खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल में रामगढ़ पर्वत की विरासत को बचाने और हाथियों के लिये बनाए जा रहे लेमरू प्रोजेक्ट के लिए तत्कालीन केते एक्सटेंशन कोल प्रोजेक्ट को खारिज कर दिया था।  

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बीजेपी ने बनाई कमेटी : 

इस विरोध को देखते हुए बीजेपी संगठन ने एक कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी रामगढ़ पर्वत पर जाएगी और वहां स्थितियों का अध्ययन करेगी। यह कमेटी एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट संगठन को सौंपेगी। 

यह है रामगढ़ पर्वत अध्ययन समिति :

  • शिवरतन शर्मा पूर्व विधायक संयोजक
  • रेणुका सिंह विधायक
  • अखिलेश सोनी प्रदेश महामंत्री

बीजेपी कहती है कि कुछ लोग इस पहाड़ी को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। लेकिन इस कमेटी के बनाने से कई सवाल पैदा हो रहे हैं। क्या यह कमेटी सिर्फ औपचारिकता पूरी करेगी या वास्तव में रामगढ़ के संकट और आदिवासियों के विरोध को भी देखेगी। सवाल ये भी है कि जब बीजेपी की मौजूदा सरकार ने ही अडानी कंपनी को कोयला निकालने की अनुमति दी है तो यह कमेटी इसका विरोध कर पाएगी।

और यदि इस कमेटी ने रामगढ़ पहाड़ी पर संकट बताया तो क्या सरकार यह अनुमति रद्द कर देगी। सवाल बहुत हैं और पेंच भी बहुत हैं। कुल मिलाकर रामगढ़ की पहाड़ी फिलहाल कांग्रेस, बीजेपी,सरकार और अडानी के बीच उलझ गई है।

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