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छत्तीसगढ़ में मछली पालन और पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ी पहल की जा रही है। कोरबा जिले के एतमानगर और सतरेंगा क्षेत्र में राज्य का पहला एक्वा पार्क विकसित किया जा रहा है। यह परियोजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत भारत सरकार द्वारा 37.10 करोड़ रूपए की लागत से स्वीकृत की गई है। एक्वा पार्क के निर्माण से न सिर्फ मत्स्य व्यवसाय को नया आकार मिलेगा, बल्कि रोजगार और पर्यटन के नए अवसर भी क्षेत्र में उत्पन्न होंगे।
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मछली पालन और प्रोसेसिंग का हब
एतमानगर में स्थापित होने वाले एक्वा पार्क में मछली पालन की आधुनिक एवं वैज्ञानिक व्यवस्था की जाएगी। यहाँ निम्नलिखित प्रमुख सुविधाएं विकसित की जाएंगी:
फीड मिल: मछलियों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर आहार तैयार करने की व्यवस्था।
फिश प्रोसेसिंग प्लांट: मछलियों की सफाई, बोन हटाकर उच्च गुणवत्ता की फिश फिले तैयार करना और पैकिंग करके निर्यात की सुविधा।
हेचरी (Hatchery): उच्च गुणवत्ता वाले मत्स्य बीज का उत्पादन, जिससे स्थानीय किसानों को बेहतर बीज उपलब्ध कराया जा सके।
रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (RAS): कम पानी में ज्यादा उत्पादन देने वाली तकनीक, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा।
इस पार्क के माध्यम से मछली उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट तक की पूरी चेन एक ही जगह पर तैयार की जाएगी, जिससे यह क्षेत्र राज्य में मछली पालन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।
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सतरेंगा में पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
सतरेंगा क्षेत्र में एक्वा पार्क के विस्तार के तहत मछली पालन के साथ-साथ पर्यटन की अपार संभावनाओं को भी विकसित किया जा रहा है। प्रस्तावित सुविधाएं इस प्रकार हैं:
एक्वा म्यूजियम: मछली पालन से संबंधित जानकारी और जागरूकता के लिए।
एंगलिंग डेस्क: पर्यटकों के लिए मछली पकड़ने की सुविधा।
कैफेटेरिया और फ्लोटिंग हाउस: जलाशय के किनारे आरामदायक और आकर्षक रहने तथा खाने-पीने की सुविधा।
मोटर बोट सुविधा: जलक्रीड़ा और भ्रमण के लिए।
यह स्थल शिक्षा, मनोरंजन और व्यावसायिक गतिविधियों का अनोखा संगम बनेगा और कोरबा को पर्यटन नक्शे पर नई पहचान दिलाएगा।
केज कल्चर से ग्रामीणों को मिला रोजगार
हसदेव जलाशय के सरभोंका स्थित निमउकछार क्षेत्र में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) के सहयोग से लगभग 800 केज लगाए गए हैं। इनमें 9 मछुआ सहकारी समितियों के 160 सदस्य मछली पालन कर रहे हैं, जिन्हें 5-5 केज आवंटित किए गए हैं। एक सदस्य को औसतन ₹88,000 वार्षिक आमदनी हो रही है।
मछुआरा समिति के सदस्यों जैसे श्री दीपक राम मांझीवार, श्री अमर सिंह मांझीवार और श्रीमती देवमति उइके ने बताया कि इस नई तकनीक से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। इस क्षेत्र से हर साल 1600 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो रहा है, जिससे प्रतिदिन 70-80 लोगों को प्रत्यक्ष और 15-20 लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिल रहा है।
तिलापिया और पंगास मछलियों की बढ़ती मांग
हसदेव जलाशय क्षेत्र में मुख्य रूप से तिलापिया और पंगास (बासा) प्रजातियों का पालन हो रहा है, तिलापिया मछली कम लागत में पाली जाती है, यह पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत है और अमेरिका जैसे देशों में निर्यात भी होती है। यह 6-8 महीने में बाजार योग्य हो जाती है। पंगास मछली में कांटा कम होता है और यह उपभोक्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय है।
समृद्धि की ओर बढ़ता हसदेव-बांगो क्षेत्र
यह एक्वा पार्क छत्तीसगढ़ में मछली पालन, स्वरोजगार और पर्यटन की एक नई इकोनॉमी को जन्म देगा। इससे ग्रामीणों को सम्मानजनक और टिकाऊ आजीविका मिलेगी, वहीं राज्य को मत्स्य उत्पादन, निर्यात और रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे।
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