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Raipur. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की जमानत याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। यह मामला चर्चित ₹2000 करोड़ के कथित शराब घोटाले से जुड़ा है, जिसमें चैतन्य बघेल पिछले तीन महीने से जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को निर्देश दिया है कि वह 10 दिनों के भीतर अपना काउंटर एफिडेविट (Counter Affidavit) दाखिल करे। उसके बाद अगली सुनवाई तय की जाएगी।
क्या है मामला?
चैतन्य बघेल को ED ने 18 जुलाई 2025 को गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के शराब कारोबार में हुए 2000 करोड़ रुपये के कथित घोटाले से जुड़ी धन शोधन प्रक्रिया में भूमिका निभाई। हालांकि, चैतन्य ने न सिर्फ जमानत मांगी है बल्कि उन्होंने अपनी याचिका में PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है।
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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?
मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने की। चैतन्य बघेल की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एन. हरिहरन ने पैरवी की, जबकि ईडी की ओर से ASG एस.वी. राजू पेश हुए।
सिब्बल के तर्क- 'बिना समन गिरफ्तारी गैरकानूनी'
कपिल सिब्बल ने दलील दी कि -“चैतन्य बघेल को बिना समन और बिना नोटिस गिरफ्तार किया गया। PMLA की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी से पहले समन और नोटिस जरूरी है। ईडी ने गैर-सहयोग का आरोप लगाकर मनमाने तरीके से गिरफ्तारी की है।”
उन्होंने यह भी कहा कि जांच एजेंसियां जानबूझकर देरी कर रही हैं ताकि आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखा जा सके।
कोर्ट की टिप्पणी - 'आरोपों पर जवाब देना जरूरी'
सिब्बल की दलील सुनने के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “गैर-सहयोग सिर्फ एक आधार है, आरोपों पर जवाब देना भी जरूरी है।” वहीं जस्टिस बागची ने जोड़ा, “यह केवल गिरफ्तारी का मामला नहीं है, बल्कि यह भी सवाल है कि जांच आखिर कब तक चलेगी।”
ईडी का जवाब- 'जांच जारी है, तीन महीने का समय मिला है'
ईडी की ओर से एएसजी एस.वी. राजू ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने हमें जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। प्रक्रिया जारी है। जल्द रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।” इस पर कोर्ट ने ईडी को आदेश दिया कि 10 दिनों के भीतर काउंटर एफिडेविट दाखिल करे, ताकि आगे की सुनवाई निर्धारित की जा सके।
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अब समझिए PMLA को चुनौती क्यों दी गई?
चैतन्य बघेल ने अपनी याचिका में PMLA की धारा 50 और 63 को संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी है।
धारा 50 (PMLA): ईडी को पूछताछ, गवाही और दस्तावेज मांगने की शक्ति देती है। इस धारा के तहत दर्ज बयान को सबूत माना जाता है। आरोपी को “चुप रहने का अधिकार” सीमित कर देती है।
धारा 63 (PMLA): जांच में सहयोग न करने या गलत जानकारी देने पर सजा का प्रावधान है। यानी, यदि व्यक्ति ने ईडी को जानकारी नहीं दी या भ्रामक जवाब दिया, तो उसे दंडित किया जा सकता है।
चैतन्य बघेल का कहना है कि ये दोनों धाराएं संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 (न्यायिक प्रक्रिया और मौलिक अधिकारों) का उल्लंघन करती हैं।
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