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छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का दर्द है कि कम ही नहीं हो रहा। जब से मंत्री बने हैं विवाद उनका पीछा ही नहीं छोड़ रहा भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य महकमे की दुर्दशा ने उन्हें पहले ही हलाकान कर रखा था। अब मीडिया ने भी उन्हें अपने निशाने पर ले लिया है। स्वास्थ्य विभाग में रीजेन्ट और उपकरणों की खरीदी में गड़बड़झाला भूपेश बघेल की सरकार के समय से ही चल रहा था। अस्पतालों और स्वास्थ्य महकमे की हालत उस समय भी ख़राब थी। जब सत्ता बदली तो जनता की उम्मीदें परवान चढ़ने लगीं ऐसा लगा कि कुछ बेहतर होगा लेकिन हालात ठीक होने के बदले बिगड़ने लगे। भाजपा की सरकार का स्वास्थ्य विभाग बदइंतजामी पर अंकुश लगाने की बजाय हवा के साथ बहने लगा, जिसका नतीजा यह निकला कि प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग सबसे ज्यादा सुर्ख़ियों में आ गया।
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मामला चाहे एम्बुलेंस का हो या चिकित्सक का हर जगह विभाग की भद ही पिटी है। फिर सबसे बड़ा बवाल हुआ राज्य के सबसे अस्पताल मेकाहारा में। जहां अस्पताल की सुरक्षा के लिए तैनात बाउंसरों ने पत्रकारों के साथ मारपीट कर ली। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने मीडिया को बेहतर व्यवस्था का वचन दिया। अब कहानी यहीं से डिरेल होने लगती है यानी मामला ट्रैक से उतरने लगता है। विभाग के अधिकारी स्वास्थ्य सेवाएं ठीक करने की जगह एक घुमावदार आदेश निकालकर अस्पतालों में मीडिया के प्रवेश पर ही पाबंदी लगाने का प्रयास करते हैं।
जब इसका तगड़ा विरोध होता है तो आदेश स्थगित कर दिया जाता है। अब विभाग के बड़े अधिकारी जगह जगह सफाई देते फिर रहे हैं कि उनकी मंशा ऐसी नहीं थी। मंशा चाहे जैसी रही हो एक बात तो तय है कि पूरे महकमे में उच्च स्तर पर सामंजस्य का जबरदस्त अभाव है। वैसे भी स्वास्थ्य विभाग की रेटिंग उसके अस्पतालों में उपलब्ध सुविधा से होती है और यही अस्पताल स्वास्थ्य विभाग का दर्पण होते हैं।
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अंदरखाने की खबर बताती है कि मंत्री जी को उनके सलाहकारों ने सलाह दे दी कि सारी बदनामी की जड़ मीडिया है इसलिए इसे ही अस्पतालों में घुसने से रोक दो, जब खबर ही बाहर नहीं आएगी तो बदनामी भी नहीं होगी। लेकिन मंत्री जी के सारे दांव उलटे ही पड़ रहे हैं। मीडिया का मसला अभी सुलझा नहीं था कि उनके विशेष सहायक सीजीएमएससी के सब इंजीनियर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गए और मंत्री जी ने उन्हें भी तत्काल उनके मूल विभाग में भेज दिया। बताया जा रहा है कि अब स्वास्थ्य मंत्री ने उनके स्थान पर उनके ही भाई को गद्दी सौंप दी है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो मंत्री जी का निकट भविष्य खतरे में पड़ जायेगा। खैर...... आगे आगे देखिये होता है क्या।
अपने ही कार्यकर्ता पर कहर बन रहे भाजपा विधायक
रायपुर जिले में ग्रामीण इलाके से आने वाले भारतीय जनता पार्टी के एक नए नवेले विधायक अपनी ही पार्टी के पुराने कार्यकर्ता का घर उजाड़ने पर आमादा हो गए हैं। दुखी कार्यकर्ता ने विधायक की शिकायत मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से भी कर दी है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। दरअसल मामला रायपुर से सटे ग्रामीण इलाके सेजबहार का है। यहां के निवासी और पुराने भाजपा कार्यकर्ता का घर एक ऐसे मोहल्ले में है जिसका कुछ हिस्सा सरकारी जमीन पर बसा है।
इसी मोहल्ले में भाजपा विधायक के कई करीबी रिश्तेदार भी निवास करते हैं। भाजपा कार्यकर्ता और विधायक के रिश्तेदारों के बीच किसी बात पर बहस हुई और विवाद इतना बढ़ा कि विधायक जी भी इस विवाद में कूद पड़े और उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल कर इस भाजपा कार्यकर्त्ता की जमीन नपवा दी। घर की दीवार भी तुड़वा दी और सामान बाहर फिकवा दिया। अब जिला प्रशासन इस कार्यकर्त्ता के घर को अवैध बता रहा है। भाजपा के इस कार्यकर्त्ता ने भी विधायक के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया है।
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जिसमें कहा गया है कि यदि उसके घर का निर्माण गलत है तो विधायक जी के रिश्तेदारों का निर्माण भी गलत है इसलिए कार्रवाई एक जैसी होनी चाहिए। बात तो सही है, ऐसा तो नहीं हो सकता कि विधायक जी के रिश्तेदारों का अवैध निर्माण छोड़ दिया जाए और गरीब कार्यकर्त्ता का निर्माण तोड़ दिया जाए। अब यह कार्यकर्ता दफ्तरों के चक्कर काट रहा है लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं है।
विधायक जी के मामले में भला कौन टांग फसाये ........बात केवल वर्तमान विधायक की नहीं है इस विधानसभा से भाजपा के ही एक पूर्व विधायक जो हाल ही में एक प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए हैं दोनों मिलकर जमीन के बड़े बड़े सौदे निपटाने में भी लगे हैं। अब इनके मार्ग में जो आता है निपटा दिया जाता है चाहे वह भाजपा का वरिष्ठ कार्यकर्ता ही क्यों न हो। रायपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में जमीन की दलाली में लिप्त मौजूदा और पूर्व विधायक की जुगल जोड़ी के किस्से बहुत मशहूर हो गए हैं लेकिन भाजपा का संगठन भी विवश है वोट बैंक का मामला जो है।
कद्दू कटेगा तो सब में बटेगा
सामान्यतः इस कहावत का उपयोग बेईमानी से अर्जित माल के बंटवारे को लेकर किया जाता है लेकिन हैरत की बात ये है कि यह कहावत इन दिनों कांग्रेस और भाजपा में क्यों वायरल हो रही है। मामला ऐसा है कि प्रदेश की जांच एजेंसी ACB ने कोरबा जिले में भूपेश बघेल की सरकार के दौरान हुए DMF घोटाले की जांच के बाद छह हजार पन्नों की चार्जशीट अदालत में पेश की जिसमें 570 करोड़ के बड़े घोटाले की आशंका व्यक्त की गई है।
इस चार्जशीट में कहा गया है कि इस घोटाले में तत्कालीन कलेक्टर ने 57 करोड़ रुपए और अन्य अधिकारियों ने लगभग छह करोड़ की रिश्वत ली है। कांग्रेस के एक नेता ने इस खबर को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी इसे री पोस्ट कर दिया। अब कांग्रेस हैरान है कि जयराम रमेश कांग्रेस सरकार के समय हुए घोटाले को क्यों पोस्ट कर रहे हैं।
ऐसे में भाजपा भी कैसे पीछे रहती उसने जयराम रमेश पर मीम बनाना शुरू कर दिया। सवाल ये है कि अखिल भारतीय कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता जयराम रमेश इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकते हैं। प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कोई भी कलेक्टर इतनी बड़ी राशि का खेल बिना ऊपरवालों की सहमति के कर ही नहीं सकता।इसलिए हो सकता है कि इस पोस्ट के जरिये जयराम रमेश यह जानना चाह रहे हों कि भैया कद्दू कटा तो कहां कहां बटा ????
शराब ने किया शर्मिंदा
छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री और भाजपा के तेज तर्रार नेता इन दिनों शराब दुकानों को लेकर अपने क्षेत्र की जनता से कन्नी काट रहे हैं। दरअसल पिछली कांग्रेस सरकार के समय उनके विधानसभा क्षेत्र में आने वाले एक संभ्रांत रिहायशी इलाके में शराब की दुकान खोल दी गई थी उस समय वे विधायक भी नहीं थे लेकिन उन्होंने इसका विरोध जनता के साथ मिलकर किया और वह दुकान सरकार ने वहां से हटा दी।
अब नेताजी फिर से विधायक चुन लिए गए हैं और उनकी ही सरकार ने उनके ही विधानसभा क्षेत्र में फिर से शराब दुकान खोल दी है। क्षेत्र की जनता इस शराब दुकान के खुलने से भारी नाराज है और विधायक जी धर्मसंकट में हैं कि अपनी ही सरकार के फैसले का खुला विरोध कैसे करें ??
निकट भविष्य में उन्हें मंत्री भी बनना है लेकिन जनता समझने को तैयार नहीं है। अब नेता जी के खासमखास कह रहे हैं कि शराब की दुकान का विरोध तो होता ही है यह तो सामान्य बात है। वैसे इसी विधानसभा से चुनाव हारने वाले कांग्रेस के नेता नई शराब दुकानों के विरोध में जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं ऐसा इसलिए क्योंकि अब उनकी पार्टी की सरकार नहीं है। सच यह है कि इन लोगों की नेतागिरी के चक्कर में आम जनता की दिक्कत समझने वाला कोई नहीं।
प्रफुल्ल पारे | Check- Mate | छत्तीसगढ़ सरकार | छत्तीसगढ़ बीजेपी | छत्तीसगढ़ कांग्रेस
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