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Photograph: (the sootr)
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले का अबूझमाड़ नक्सलियों का सबसे मजबूत किला था। यहां सूर्यास्त के बाद सन्नाटा हर गली-मोहल्ले में पसर जाता था। खेत तो थे, पर खेती करने वाले नहीं, घर तो थे, पर रोशनी नहीं। त्योहारों का नाम तो था, पर त्योहार मनाने वाले नहीं थे।
अब हालात बदल रहे हैं। नक्सलियों के लगातार सरेंडर के कारण यहां के हालात बदल गए हैं। यह पूरा इलाका अब नक्सलवाद से पूरी से मुक्त हो गया है। इसके चलते राहत शिविरों में रह रहे दो सौ परिवार अब अपने घर-गांव लौटने लगे हैं। गांव और शहर में फिर एकबार रौनक देखी जा रही है। इस बार यहां लोग जोरदार दिवाली मनाने, और आतिशबाजी की तैयारी कर रहे हैं।
दो दशक बाद अबूझमाड़ में फूटेंगे पटाखें
बीस सालों से अबूझमाड़ के अधिकांश गावों में नक्सलियों ने आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा रखा था। आतिशबाजी का इस्तेमाल नक्सली एक-दूसरे को संदेश भेजने के लिए करते थे। पटाखे नक्सलियों के सिग्नलिंग टूल थे। इनके अलावा पटाखों का इस्तेमाल कोई और नहीं कर सकता था। राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को भी पटाखे या आतिशबाजी की इजाजत नहीं थी।
अब नक्सलवाद के खात्मे और लगातार सरेंडर ने स्थिति बदल दी है। सरकार और सुरक्षा बलों की पहुंच इस दुर्गम क्षेत्र तक बढ़ी है। अबूझमाड़ के राहत शिविरों में रह रहे परिवार 20 सालों बाद पहली बार पटाखों के संग दीपावली मनाने को तैयार हैं।
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राहत शिविरों से घर वापसी ही असली दीवाली
2005 में सलवा जुडुम अभियान के समय 200 परिवार अबूझमाड़ छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हो गए थे। दो दशक से ये लोग बेघर होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर थे।
आज ये सभी परिवार घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। पीडियाकोट के चैतराम नेताम कहते हैं —
हमें यकीन नहीं था कि हम फिर कभी गांव लौट पाएंगे। सरेंडर की खबर ने जैसे खोई हुई उम्मीद लौटा दी।
निराम गांव की बुधरी बताती हैं —
हमारी ज़मीन हमें फिर मिल सकेगी। 20 साल इंतजार के बाद, इस बार की दीवाली हमें जीवनभर याद रहेगी।
अबूझमाड़ में 20 साल बाद दिवाली मनाने तैयारियों को ऐसे समझें
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अब नहीं देना होगा नक्सलियों को टैक्स
अबूझमाड़ क्षेत्र में लौट रहे लोगों को उम्मीद है कि अब उन्हें नक्सलियों को टैक्स नहीं देना पड़ेगा। पहले यहां के ग्रामीणों से नक्सली हर बात पर 'क्रांतिकारी टैक्स' वसूलते थे। ग्रामीणों को मनरेगा मज़दूरी, तेंदूपत्ता कमाई, ट्रैक्टर-बाइक पर टैक्स देना पड़ता था। फसलों और सरकारी राशन पर भी नक्सली वसूली करते थे। लेकिन अब नक्सलवाद के खात्मे के बाद लोग इस टैक्स से मुक्त हो गए हैं।
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वापस मिल सकेगी अपनी ज़मीन
अबूझमाड़ के अलग-अलग गांवों से हज़ारों लोग राहत शिविर में रह रहे थे। इन ग्रामीणों को उम्मीद है कि अब उन्हें उनकी खेती की ज़मीन वापस मिल जाएगी। बता दें कि नक्सलियों ने इन लोगों की जमीनें छीन कर अपने साथियों को बांट दी थीं। अबूझमाड़ के गोड़सा, निराम, पालेवाया, पीडियाकोट, कौशलनार, पहुरनार और मंगलनार जैसे इलाकों में दिवाली जोरदार मनेगी।