छत्तीसगढ़ में आबकारी नीति में बदलाव की तैयारी, क्या ठेका पद्धति की होगी वापसी?

राज्य सरकार शराब नीति में बदलाव करने की योजना बना रही है। ठेका पद्धति को फिर से लागू करने के संकेत दिए गए हैं। शराब बिक्री में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अवैध बिक्री पर रोक लगेगी।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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RAIPUR.छत्तीसगढ़ सरकार आबकारी नीति में बदलाव की तैयारी में है। यह बदलाव राज्य की वित्तीय सेहत को मजबूत करने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है। आबकारी विभाग ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए शराब से ₹12,500 करोड़ का राजस्व लक्ष्य निर्धारित किया है। 

वर्तमान आबकारी नीति में यह लक्ष्य काफी बड़ा है। पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार को तीन हजार करोड़ का घाटा इस नीति के कारण हुआ है। इसके बाद से ही पुरानी आबकारी नीति में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही थी। सरकार एकबार फिर प्रदेश में ठेका सिस्टम को लागू करने पर विचार कर रही है। 

आबकारी नीति में बदलाव की जरूरत क्यों?

हाल के वर्षों में राज्य सरकार शराब से होने वाली आय में कमी महसूस कर रही है। पिछले साल का राजस्व लक्ष्य 11,000 करोड़ रुपए था, लेकिन सरकार केवल 8,000 करोड़ रुपए ही जुटा पाई। सरकार को 3 हजार करोड़ का घाटा उठाना पड़ा था। 

इस कारण सरकार ने नए लक्ष्यों का निर्धारण करते हुए 12,500 करोड़ रुपए के राजस्व लक्ष्य का सेट किया है। इसके लिए, आबकारी विभाग को नीति में बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही है। 

पिछले 5 सालों में शराब से हुई आय

  • 2020-21   4636.9 करोड़ रुपए
  • 2021-22   5110.1 करोड़ रुपए
  • 2022-23   6783.8 करोड़ रुपए
  • 2023-24   8430.5 करोड़ रुपए
  • 2024-25   8000.0 करोड़ रुपए
  • 2025-26   12500 करोड़ रुपए (लक्ष्य)

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ठेका पद्धति को फिर अपनाने पर विचार

2017 में, डॉ. रमन सिंह की सरकार ने शराब बिक्री के लिए सरकारी सिस्टम को लागू किया था, जिसे भूपेश बघेल सरकार ने भी जारी रखा।इस सिस्टम के कारण राज्य सरकार शराब बिक्री का लक्ष्य पूरा करने में सफल नहीं हो पाई है। इसलिए, अब राज्य सरकार ठेका पद्धति पर विचार कर रही है।

ठेका पद्धति से राज्य के भीतर शराब की बिक्री प्रतिस्पर्धी बनेगी साथ ही अवैध शराब की बिक्री पर लगाम लग सकेगी। ठेका पद्धति के तहत, व्यापारियों को लाइसेंस दिया जाता है, और वे बाजार में अपनी बिक्री के लिए स्वतंत्र होते हैं। इससे शराब की गुणवत्ता पर नियंत्रण बढ़ेगा और सरकारी खजाने में अधिक राजस्व पहुंचेगा।

छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित नई आबकारी नीति को ऐसे समझें

आबकारी नीति में बदलाव: राज्य सरकार शराब नीति में सुधार के लिए ठेका पद्धति (Contract System) को फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। शराब बिक्री में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अवैध बिक्री पर काबू पाया जाएगा।

राजस्व लक्ष्य में कमी: 2024-25 में शराब से 12,500 करोड़ रुपए का राजस्व लक्ष्य रखा गया है। पिछले वर्ष लक्ष्य से 3,000 करोड़ रुपए कम आय हुई थी।

शराब बिक्री में पारदर्शिता: सरकार का उद्देश्य शराब नीति को और अधिक पारदर्शी और व्यावहारिक बनाना है। शराब के व्यापार में किसी प्रकार की अनियमितताएं न हों और सरकारी राजस्व में वृद्धि हो।

ठेका पद्धति के लाभ: ठेका पद्धति से शराब व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। शराब की गुणवत्ता पर नियंत्रण मिलेगा और राज्य में अवैध शराब की बिक्री पर कड़ी रोक लगेगी।

कारोबारियों से सुझाव: विभाग ने शराब उद्योग से जुड़े कारोबारियों और प्रतिनिधियों से शराब नीति में सुधार के लिए सुझाव लिए हैं। बॉटलिंग फीस, लाइसेंस शुल्क, और अवैध गतिविधियों पर नियम बनेंगे।

विभागीय बैठकों का दौर,कारोबारियों से ले रहे सुझाव

छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग ठेका प्रणाली की संभावनाओं पर विचार कर रहा है। इसके लिए विभाग लगातार बैठकें कर रहा है। आबकारी अधिकारी उद्योग प्रतिनिधियों, लाइसेंस धारकों, बार संचालकों, से सुझाव ले रहे है। इसमें बॉटलिंग फीस, आयात-निर्यात शुल्क, और नई बोतलों के इस्तेमाल से जुड़े सुझाव लिए जा रहे हैं। इससे विभाग को उद्योग की आवश्यकताओं को समझने और नीतियों को व्यावहारिक बनाने में मदद मिलेगी।

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अवैध शराब की बिक्री पर रोक के प्रयास

राज्य में अवैध शराब की बिक्री एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है। शराब माफिया मध्यप्रदेश से शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर कर रहा है। सरकार का मानना है कि ठेका पद्धति से राज्य के भीतर प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे शराब की अवैध बिक्री पर नियंत्रण होगा। साथ ही, यह कदम राज्य में शराब के व्यापार को और अधिक ट्रांसपेरेंट बनाएगा। 

2025-26 के लिए राजस्व लक्ष्य तय

इस वर्ष, शराब से होने वाली आय का लक्ष्य 12,500 करोड़ रुपए रखा गया है। विभाग ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई कदम उठाए हैं। विभाग अब नई शराब नीति के तहत बदलाव, ठेका पद्धति काे फिर लागू करने पर काम कर रहा है। सरकार की कोशिश है कि 2026-27 तक शराब नीति को और अधिक व्यावहारिक और ट्रांसपेरेंट बनाया जाए।

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