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छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के लच्छनपुर गांव के सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में बच्चों को कुत्ते का जूठा भोजन परोसने के गंभीर मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने इस मामले में प्रभावित बच्चों को मुआवजा देने का महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। साथ ही, कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए।
मीडिया ने उठाया मुद्दा
यह मामला पहली बार तब सामने आया जब 'द सूत्र' ने 29 जुलाई 2025 को लच्छनपुर के सरकारी स्कूल में हुई इस लापरवाही की खबर प्रकाशित की। खबर के अनुसार, पलारी ब्लॉक के इस स्कूल में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत बच्चों को परोसे गए भोजन को आवारा कुत्तों ने जूठा कर दिया था।
बच्चों ने जब इसकी शिकायत शिक्षकों से की, तो उनकी बात को अनसुना कर दिया गया और उन्हें वही जूठा भोजन खाने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना के बाद अभिभावकों ने स्कूल समिति की बैठक बुलाई, जिसमें इस मामले की गंभीरता सामने आई।
78 बच्चों को दी गई एंटी-रेबीज वैक्सीन
इस घटना के बाद स्कूल के 78 बच्चों को स्वास्थ्य जोखिम के मद्देनजर तत्काल एंटी-रेबीज वैक्सीन की खुराक दी गई। यह कदम बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उठाया गया, क्योंकि कुत्तों के जूठे भोजन से रेबीज जैसे गंभीर रोग का खतरा हो सकता था। इस घटना ने न केवल स्कूल प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया, बल्कि मध्यान्ह भोजन योजना के संचालन में खामियों को भी सामने लाया।
हाईकोर्ट की सख्ती, दोषियों पर कार्रवाई
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया और स्कूल शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट की पिछली सुनवाई में चार बिंदुओं पर शपथपत्र के साथ जवाब मांगा गया था।
शासन ने अपने जवाब में बताया कि इस मामले में स्कूल के हेडमास्टर और दो अन्य शिक्षकों को तत्काल निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा, मध्यान्ह भोजन की जिम्मेदारी संभाल रही महिला स्व-सहायता समूह को इस कार्य से हटा दिया गया है।
मुआवजा और सख्त दिशा-निर्देश
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान प्रभावित बच्चों के लिए मुआवजे का आदेश दिया। हालांकि, मुआवजे की राशि और वितरण की प्रक्रिया का निर्णय शासन स्तर पर लिया जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग को मध्यान्ह भोजन योजना की निगरानी और संचालन के लिए कड़े दिशा-निर्देश लागू करने होंगे। अधिकारियों को नियमित मॉनिटरिंग और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।
सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
यह घटना छत्तीसगढ़ में मध्यान्ह भोजन योजना के संचालन में मौजूद खामियों को उजागर करती है। मध्यान्ह भोजन योजना का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना और उनकी शिक्षा को प्रोत्साहित करना है, लेकिन इस तरह की लापरवाही से न केवल बच्चों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ता है, बल्कि अभिभावकों का स्कूल प्रशासन पर भरोसा भी कम होता है।
स्थानीय निवासियों और अभिभावकों ने हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। एक अभिभावक ने कहा, "हमारे बच्चों के साथ ऐसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट का मुआवजे का आदेश और दोषियों पर कार्रवाई एक सकारात्मक कदम है।"
भविष्य के लिए सबक
इस मामले ने स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना के संचालन में जवाबदेही और पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित किया है। हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद अब स्कूल शिक्षा विभाग पर दबाव है कि वह ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित निरीक्षण, जिम्मेदार व्यक्तियों की जवाबदेही तय करने और स्वच्छता मानकों का पालन करने से ही इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।
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