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छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में लापरवाही को लेकर दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डबल बेंच ने शासन के हलफनामे को त्रुटिपूर्ण और भ्रामक बताते हुए नाराजगी जताई। कोर्ट ने परिवहन सचिव और आयुक्त को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है।
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शपथ पत्र पर सवाल, अवमानना की चेतावनी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शासन द्वारा पेश शपथ पत्र पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने पूछा था कि बिलासपुर जिले में कितनी बसें संचालित हो रही हैं। जवाब में परिवहन विभाग के सचिव और बिलासपुर नगर निगम आयुक्त ने संयुक्त रूप से शपथ पत्र दाखिल किए जाने की जानकारी अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने कोर्ट को दी। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में शहरी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली 2012-13 में शुरू हुई थी, जिसमें 70 शहरों/कस्बों के लिए 451 बसें खरीदी गई थीं।
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ये बसें रायपुर, दुर्ग-भिलाई, राजनांदगांव, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, कोरिया, सरगुजा और बस्तर के 9 शहरी समूहों में चलाई जा रही हैं। बिलासपुर में 9 बसों में से 6 चालू हालत में हैं, जिनमें 5 वर्तमान में चल रही हैं, और एक बस जल्द शुरू होगी।
मीडिया खबरों ने खोली पोल
कोर्ट ने मीडिया में प्रकाशित खबरों का हवाला देते हुए शपथ पत्र को भ्रामक करार दिया। चीफ जस्टिस ने सख्त लहजे में कहा कि गलत जानकारी देने को अवमानना माना जा सकता है। कोर्ट ने परिवहन सचिव और आयुक्त को गुरुवार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया।
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सार्वजनिक परिवहन की बदहाली पर कोर्ट सख्त
जनहित याचिका में सार्वजनिक परिवहन की खराब स्थिति और लापरवाही का मुद्दा उठाया गया था। कोर्ट का यह कड़ा रुख दर्शाता है कि वह आम जनता के लिए सुगम और विश्वसनीय परिवहन व्यवस्था सुनिश्चित करने को लेकर गंभीर है। अब सभी की नजरें अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां शासन को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
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