सालों से सरकारें कर रही कोर्ट-ट्रिब्यूनल के फैसले को नजरअंदाज, ध्वनि प्रदूषण पर अब HC हुआ सख्त

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सरकार को ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए, जबकि सरकार लगातार बहाने बना रही थी। अदालत ने जल्द से जल्द कानून में संशोधन करने की बात कही।

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VINAY VERMA
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Photograph: (the sootr)

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डीजे और साउंड सिस्टम के शोर से आम लोगों को हो रही परेशानी के बावजूद सरकार की बहानेबाजियां कम नहीं हो रही है। जिससे नाराज हाईकोर्ट ने सरकार को सख्त आदेश दिए हैं।

छग हाईकोर्ट में इस विषय को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच सुन रही है। जहां राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि समिति ने कोलाहल अधिनियम में संशोधन की अनुशंसा की है। इसे जल्द लागू कर दिया जाएगा।

बिलासपुर हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह प्रस्तावित संशोधनों को बिना देरी लागू करे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने डीजे और इसके शोर को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन इनका पालन राज्य सरकारों द्वारा नहीं किया जा रहा है।

9 महीने बाद भी नहीं कर पाए बदलाव

तमाम तर्क के बाद सरकार ने माना है कि उनके पास कार्रवाई के लिए कड़ा नियम ही नहीं हैं। लिहाजा कोर्ट के निर्देश पर नियमों में संशोधन के लिए 27 जनवरी 2025 को समिति बनाई गई। जिसे बने भी 9 महीने बीत रहे हैं। समिति को जरूरी संशोधन पर सुझाव देने थे। करीब 7 महीने बाद 13 अगस्त 2025 को अपनी रिपोर्ट दी और कानून विभाग से परामर्श कर समिति ने सिफारिश पेश की।

पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर सहमति के बाद अब यह प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। देरी पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है और इसे जल्द लागू करने को कहा है। अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी। 

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NGT का आदेश पहले से

ध्वनि प्रदूषण पर कार्रवाई के नाम पर भले ही राज्य सरकार कड़े नियम नहीं होेने की दुहाई दे रही है। लेकिन, एनजीटी द्वारा 2016 में दिया गया आदेश लागू करवाने में भी यह फिसड्डी साबित हुई है।

एनजीटी के आदेश के अनुसार सड़कों पर पंडाल और स्वागत गेट इत्यादि की अनुमति नहीं देनी है। ऐसा पाने पर निगम, पुलिस और जिला प्रशासन उसे तत्काल हटाएगी और जिम्मेदार पर पेनाल्टी लगाएगी। नियमविरुद्ध आवाज करने वाले डीजे और ध्वनि विस्तार यंत्रों को अनुमति नहीं देना है। 

ट्रिब्यूनल- HC के आदेश ठंडे बस्ते में..

प्रदूषण नियंत्रण पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के तमाम आदेशों को दरकिनार करते हुए जिला प्रशासन का महकमा और पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर बचने का प्रयास कर रहे हैं।

एनजीटी के आदेश की अनदेखी और हाईकोर्ट के सवाल पर राज्य सरकार ने बताया है कि अनुमति राज्य ने नहीं बल्कि नगर निगम की हो सकती है। इस पर हाईकोर्ट ने सरकार से शपथ पत्र मांगा है और सवाल पूछा है कि राज्य सरकार बताए कि क्या नगर निगम राज्य के बाहर की व्यवस्था है? 

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मौजूदा कानून में कमियां-छग सरकार

सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने बताया कि मौजूदा कोलाहल नियंत्रण अधिनियम में इतने कड़े प्रावधान नहीं हैं। अभी तक ऐसे मामलों में सिर्फ 500 से 1000 रुपए जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है। न तो उपकरण जब्त होते हैं और न ही सख्त कार्रवाई होती है। इच्छा शक्ति की कमी के कारण कई पर तो यह भाी कार्रवाई नहीं होती।

बहरहाल शासन ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि अधिनियम लागू होने के बाद कड़ाई से कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि इसपर राज्य सरकार कब तक इसे लागू कर देगी। 

हानिकारक आवाज ने ले ली जान

ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि 75 डेसिबल से उपर की आवाज मानव के लिए नुकसानदेय है, जबकि डीजे और ध्वनि विस्तारक यंत्रों में 120 डेसिबल से उपर गाने बजते हैं। हानिकारक आवाज के कारण पिछले साल अंबिकापुर में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। कोर्ट और एनजीटी को हमने कई बाद ध्यानाकर्षण किया है लेकिन सरकारी लापरवाही जारी है। 

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