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Bilaspur. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश के 1188 शिक्षकों की क्रमोन्नति की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जस्टिस एनके व्यास ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि संविलियन (Amalgamation) से पहले शिक्षाकर्मी स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन नहीं थे, इसलिए वे 10 साल की सेवा अवधि के आधार पर क्रमोन्नति (Increment/Promotion) पाने के पात्र नहीं हैं।
क्या था पूरा मामला?
पंचायत विभाग में नियुक्त और बाद में स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन किए गए लगभग 1188 शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। शिक्षकों का तर्क था कि वे 10 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं और इसलिए वे 10 मार्च 2017 के आदेश के तहत वेतन वृद्धि (क्रमोन्नति) के हकदार हैं। संविलियन के बाद इन शिक्षकों को सहायक शिक्षक (एलबी), शिक्षक (एलबी) और व्याख्याता (एलबी) पदनाम दिया गया है। याचिकाकर्ताओं ने क्रमोन्नति के लिए सोना साहू के मामले में हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले को आधार बनाया था।
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ऐसे समझें पूरा मामलाहाईकोर्ट ने 10 साल सेवा अवधि के आधार पर प्रमोशन की मांग वाली 1188 शिक्षकों की याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि संविलियन से पहले शिक्षाकर्मी शासकीय सेवक नहीं थे, इसलिए उनकी पुरानी सेवा अवधि को प्रमोशन के लिए नहीं जोड़ा जा सकता। ये शिक्षाकर्मी पहले पंचायत विभाग के अधीन कार्यरत थे और उनकी नियुक्ति पंचायत राज अधिनियम 1993 के तहत हुई थी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि संविलियन नीति 2018 के अनुसार कोई भी लाभ, वेतनवृद्धि या क्रमोन्नति संविलियन की तारीख से पहले का दावा नहीं किया जा सकता। |
हाईकोर्ट ने क्यों खारिज की याचिकाएं?
राज्य शासन और हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के दावों को खारिज करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख तर्क दिए:
1. संविलियन से पहले शासकीय सेवक नहीं थे
राज्य शासन ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता पंचायत राज अधिनियम, 1993 के तहत जनपद पंचायत के अधीन नियुक्त थे। संविलियन से पहले वे राज्य शासन के नियमित सरकारी सेवक नहीं थे, बल्कि पंचायत विभाग के अधीन थे।
2. सेवा अवधि की गणना
न्यायालय ने शासन के तर्क को सही माना कि शिक्षकों की सेवा अवधि की गणना क्रमोन्नति के लिए केवल 1 जुलाई 2018 (संविलियन की तिथि) से ही की जा सकती है। इस आधार पर, वे 10 वर्ष की अनिवार्य सेवा अवधि की योग्यता पूरी नहीं करते।
3. संविलियन नीति में स्पष्टता
हाईकोर्ट ने संविलियन नीति (30 जून 2018) का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूर्व शिक्षाकर्मी केवल संविलियन की तारीख से ही शासकीय शिक्षक माने जाएंगे, और वे इससे पहले के किसी भी लाभ, वेतन वृद्धि या क्रमोन्नति का दावा नहीं कर सकते।
4. 'सोना साहू' केस अलग
याचिकाकर्ताओं के प्रमुख तर्क (सोना साहू केस) को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि सोना साहू मामले के तथ्य वर्तमान केस से पूरी तरह अलग हैं, इसलिए समानता का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस एनके व्यास का फैसला
जस्टिस एनके व्यास ने अपने फैसले में साफ कहा कि संविलयन से पहले शिक्षाकर्मी स्कूल शिक्षा विभाग के नियंत्रण में नहीं थे, इसलिए वे क्रमोन्नति पाने की पात्रता नहीं रखते। यह फैसला छत्तीसगढ़ के हजारों शिक्षकों की सेवा शर्तों और लाभों पर दूरगामी प्रभाव डालेगा।
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