इस महंत के चक्रव्यूह में किस तरह उलझी बीजेपी , हार के दस बड़े कारण

छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में सिर्फ कोरबा ही इकलौती सीट रही, जो कांग्रेस के खाते में गई। यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही महिला उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा था। कोरबा से ज्योत्सना महंत ने जीतकर कांग्रेस की साख बचा ली।

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Vikram Jain
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अरुण तिवारी@RAIPUR. छत्तीसगढ़ में एक सियासी महंत ने मोदी के विजय रथ को रोक दिया। यानी मोदी पर भारी महंत। प्रदेश में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर दस सीट जीतने वाली बीजेपी ग्यारहवीं सीट पर क्यों पस्त हो गई। वो भी तब जबकि उस सीट पर पार्टी की दिग्गज और फायर ब्रांड नेत्री सरोज पांडे चुनाव लड़ रही थी। कोरबा में ज्योत्सना महंत ने बीजेपी की सरोज पांडे को पचास हजार से परास्त कर दिया। ज्योत्सना महंत के पति चरणदास महंत छत्तीसगढ़ की सियासत के वे माहिर खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो मंत्री और छह विधायकों के रहते हुए भी अपनी सीट पर विजय पताका फहरा दी। महंत के चक्रव्यूह में ऐसी उलझी सरोज पांडे कि जीत के करीब नहीं पहुंच पाईं। आइए आपको बताते हैं सरोज पांडे की हार के दस बड़े कारण। 

सरोज पांडे की दस बड़ी चूक 

बाहरी का ठप्पा : दुर्ग की रहने वाली सरोज पांडे अपने उपर से बाहरी उम्मीदवार होने का ठप्पा नहीं हटा पाईं। सरोज ढाई सौ किलोमीटर दूर कोरबा के मैदान में जंग जीतने उतर गईं। उनको बाहरी उम्मीदवार मानकर वोटर उन पर भरोसा नहीं कर पाए। यहां तक कि उनको प्रदेश से बाहर का उम्मीदवार प्रचारित कर दिया गया। 

जोगी पर भरोसा : सरोज पांडे को जोगी कांग्रेस पर भरोसा करना भारी पड़ गया। बीजेपी के कार्यकर्ता इससे नाराज हो गए। जोगी के प्रभाव वाले पाली तानाखार जैसे इलाके से महंत को 48 हजार की लीड मिल गई। 

भितरघात में उलझीं : सरोज पांडे को भितरघात का सामना भी करना पड़ा। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उनका काम मन से नहीं किया। खासतौर से रेणुका सिंह और भैयालाल राजवाड़े के लोगों ने उस तरह से काम नहीं किया जिस तरह से करना चाहिए था। इससे पांडे को बहुत नुकसान हुआ। 

बाहरी पर भरोसा : सरोज पांडे ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की जगह बाहरी कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया। उनका काम करने के लिए दुर्ग और भिलाई के कार्यकर्ता मैदान में उतर गए। मंडल अध्यक्षों को संसाधन तो दिए गए लेकिन उनकी निगरानी के लिए एजेंसी लगा दी गई। पोलिंग एजेंट तक दुर्ग से बुलाए गए कार्यकर्ता बने। यहां तक कि सरोज पांडे का काम करने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के नेता भी आए। इससे स्थानीय कार्यकर्ता नाराज हो गए। 

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कारोबारियों का विरोध : सरोज पांडे के विरोध में स्थानीय कारोबारी भी रहे। कोरबा बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया माना जाता है। कारोबारियों को डर था कि यहां पर दुर्ग और भिलाई के लोगों का कब्जा हो जाएगा। पांडे के तेज तर्रार तेवर भी उनकी हार की बड़ी वजह माने गए। 

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया : चरणदास महंत ने छत्तीसगढ़ियावाद को अपने प्रचार का प्रमुख हिस्सा बनाया। स्थानीय लोगों को उससे जोड़ा। ओबीसी पर भी खास फोकस किया। तीन दशक से छत्तीसगढ़ की राजनीति कर रहे चरणदास महंत का यहां के लोगों से जीवंत संपर्क भी काम आया। सरोज पांडे ये नहीं कर सकीं। 

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नहीं मिला पंडितों का साथ : सरोज पांडे ब्राह्मण समुदाय से आती हैं लेकिन यहां के ब्राह्मणों ने भी उनका साथ नहीं दिया। यहां के ब्राह्मण रीवा या यूपी के पंडितों को बाहरी मानते हैं और उनका साथ नहीं देते। सरोज ये भरोसा कायम करने में नाकाम रहीं। 

गोंडवाना से गठजोड़ नहीं हुआ : सरोज पांडे गोंडवाना से गठजोड़ करने में कामयाब नहीं हुईं। सूत्रों की मानें तो महंत ने बीजेपी के वोट कटवाने के लिए ही जीजीपी उम्मीदवार को मैदान में उतारा। गोंडवाना ने करीब 45 हजार वोट हासिल किए जो बीजेपी की हार की बड़ी वजह बने। 

काम न आए छह विधायक : कोरबा लोकसभा सीट में आठ विधानसभा सीट आती हैं। इनमें छह पर बीजेपी के विधायक हैं। इसके बाद भी सरोज पांडे को एक ही विधानसभा से लीड मिल पाई। बाकी में वे पिछड़ गईं। 

हाईप्रोफाइल प्रचार : सरोड पांडे का प्रचार हाईप्रोफाइल रहा जबकि चरणदास महंत ने नुक्कड़ सभाएं, घर घर तक जाना और सभी लोगों से संपर्क करने पर ध्यान दिया। ज्योत्सना महंत के खिलाफ हुई एंटी इन्कमबेंसी को महंत ने दूर किया।

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