छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले का एबीसीडी सिस्टम, पप्पू ने 100 करोड़ केके तक और 800 करोड़ पीसीसी के कोषाध्यक्ष को पहुंचाए

छत्तीसगढ़ के ₹2500 करोड़ के शराब घोटाले में ED की चार्जशीट से खुलासा हुआ है कि अवैध कमाई के लिए 'एबीसीडी' सिस्टम बनाया गया था। पप्पू ने तांत्रिक केके श्रीवास्तव को ₹100 करोड़ और प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष को ₹800 करोड़ पहुंचाए।

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Arun Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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रायपुर.छत्तीसगढ़ के ढाई हजार करोड़ के शराब घोटाले से जुड़ी ईडी की चार्जशीट राज पर राज उगल रही है। 9 हजार पन्नों की इस चार्जशीट में कई सफेदपोशों के नाम सामने आ रहे है। ईडी ने अपनी डायरी में बताया है कि शराब घोटाला करने वालों ने 2500 करोड़ की काली कमाई के लिए एबीसीडी सिस्टम बनाया था। इससे अवैध कमाई की उगाही से लेकर उसकी बंदरबांट तक शामिल थी।

चैतन्य बघेल के राजदार पप्पू ने ईडी के सामने ये स्वीकार किया है कि उसने 100 करोड़ रुपए तांत्रिक केके श्रीवास्तव तक पहुंचाए और 800 करोड़ से ज्यादा की कमाई प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल तक पहुंचाई। ईडी ने कहा है कि शराब घोटाले की कमाई को चैतन्य बघेल ने अपने प्रोजेक्ट ग्रीन विट्ठल में इस्तेमाल किया। 

शराब घोटाले की एबीसीडी : 

ईडी ने अपने अभियोग पत्र में लिखा है कि ईओडब्लू और एसीबी ने दिनांक 29.06.2024 को अपना पहला आरोप पत्र एसीबी कोर्ट रायपुर में दायर किया। इस चार्जशीट से पता चला कि आरोपियों ने एक आपराधिक षडयंत्र रचा और अपने पद का दुरुपयोग किया। एक सिंडिकेट के रूप में, विभिन्न अवैध और कपटपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल किया और दस्तावेजों में जालसाजी करके उन्हें असली रूप में इस्तेमाल किया। इस धोखाधड़ी से सरकार को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाकर, उन्होंने अपने लिए अनुचित लाभ प्राप्त किया।

इस आरोप पत्र के अलावा एसीबी और ईओडब्ल्यू ने चार सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी दायर कीं। इन आरोप पत्र से पता चला कि सिंडिकेट द्वारा शराब के अवैध करोबार से 2563 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई की। इस पूरे सिस्टम को तीन भागों में बांटा गया।

ए में शराब करोबारियों से लिया गया कमीशन, बी में प्रदेश की शराब दुकानों में डिस्टलर, होलोग्राम निर्माता,शराब कारोबारी,ट्रांसपोर्टर अऔर जिला आबकारी अधिकारियों के गठजोड़ ने अवैध शराब का करोबार किया। और सी में कमीशन की बंदर बांट शामिल थी। इस एबीसी से जो कमाई की उसमें ए से 319,32,67,275 रु, बी से 2174,67,36,000 रु और सी से  70,00,00,000 रु की यानी कुल 2500 करोड़ की अवैध कमाई की गई। 

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किसका क्या काम था : 

अभियोग पत्र के मुताबिक इस घोटाले में आबकारी विभाग के तत्कालीन सचिव अरुण पति त्रिपाठी को यह काम सौंपा गया था कि वह सीएसएमसीएल द्वारा खरीदी गई शराब पर वसूले गए अवैध रिश्वत कमीशन को अधिकतम करे,और सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से बिना शुल्क वाली शराब की बिक्री के लिए आवश्यक व्यवस्था करे।

चूंकि आबकारी नीति में संशोधन, सीएसएमसीएल का निर्माण, एफएल-10ए नीति जैसे सभी आबकारी मामलों को आबकारी विभाग के मंत्री द्वारा अनुमोदित किया जाना था, इसलिए कवासी लखमा को शराब सिंडिकेट द्वारा आबकारी विभाग द्वारा प्रस्तुत सभी फाइलों को मंजूरी देने के लिए शामिल किया गया था।

इस ऑपरेशन में अरुण पति त्रिपाठी को कवासी लखमा, अनवर ढेबर,अनिल टुटेजा, निरंजन दास और अन्य लोगों का सहयोग मिला था। अपनी योजना को आगे बढ़ाने के लिए, अनवर ढेबर ने नकदी इकट्ठा करने का काम विकास अग्रवाल यानी सुब्बू को सौंपा और रसद का काम अरविंद सिंह को सौंपा गया। इस तरह, सिंडिकेट ने आकार ले लिया। विकास अग्रवाल अभी तक जाँच में शामिल नहीं हुए हैं। 

शराब घोटाले और ईडी की जांच में हो रहे खुलासों को ऐसे समझें 

छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: ED की चार्जशीट में हुआ 248 करोड़ और अवैध मुनाफाखोरी  का खुलासा - Liquor Syndicate Scam ED Probe two four eight Crore Revenue  Loss Kickbacks ntcpmm - AajTak

  • ईडी (ED) की 9 हजार पन्नों की चार्जशीट में खुलासा हुआ है कि ₹2500 करोड़ की अवैध कमाई के लिए एक व्यवस्थित 'एबीसीडी' सिस्टम बनाया गया था, जिसमें अवैध उगाही से लेकर पैसों की बंदरबांट तक शामिल थी।
  • घोटाले के मुख्य आरोपी चैतन्य बघेल के विश्वासपात्र लक्ष्मी नारायण बंसल उर्फ पप्पू ने स्वीकार किया कि उन्होंने तांत्रिक केके श्रीवास्तव को ₹100 करोड़ और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस कमेटी कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल को ₹800 करोड़ से अधिक की धनराशि पहुंचाई।
  • रामगोपाल अग्रवाल को शराब घोटाले (Liquor Scam) की अवैध कमाई में ₹800 करोड़ से अधिक का हिस्सा मिला, जो उनके सहायक देवेंद्र दड़सेना द्वारा एकत्र किया गया; रामगोपाल अग्रवाल वर्तमान में फरार हैं।
  • ईडी के अनुसार, चैतन्य बघेल ने इस अवैध कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपनी रियल एस्टेट परियोजना 'विट्ठल ग्रीन प्रोजेक्ट' में लगाया, जो मनी लॉन्ड्रिंग का सीधा मामला है।
  • सिंडिकेट (Syndicate) में आबकारी सचिव अरुण पति त्रिपाठी को अवैध कमीशन वसूलने और मंत्री कवासी लखमा को नीतिगत मंजूरी देने का काम सौंपा गया था, जबकि अनवर ढेबर मुख्य रूप से अवैध धन के संग्रह का प्रबंधन कर रहे थे।

घोटाले में पप्पू की भूमिका : 

चार्जशीट के अनुसार जांच से पता चला कि भाग-बी और भाग-ए की धनराशि में से बड़ी राशि लक्ष्मी नारायण बंसल यानी पप्पू के द्वारा एकत्रित की जा रही थी। डिजिटल रिकॉर्ड मौजूद हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं। ईडी ने इस रकम के प्रबंधन की प्रक्रिया में शामिल प्रमुख व्यक्तियों के बयान भी दर्ज किए हैं और यह इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है कि लक्ष्मी नारायण बंसल यानी पप्पू बंसल वास्तव में ये अवैध कमाई प्राप्त कर रहा था।

ईडी के अनुसार पप्पू बंसल ने चैतन्य बघेल के साथ मिलकर शराब घोटाले से उत्पन्न 1000 करोड़ रुपए से अधिक की आपराधिक आय को संभाला था। पप्पू बंसल ने कहा कि वह दिपेन चावड़ा के माध्यम से अनवर ढेबर से यह अवैध कमाई एकत्र करते थे और उसके बाद ये धनराशि  राम गोपाल अग्रवाल को दी जाती थी।

ईडी के मुताबिक रामगोपाल अग्रवाल उस समय छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रदेश कमेटी के कोषाध्यक्ष थे और वर्तमान में उनका पता नहीं चल रहा है/वे फरार हैं। उन्हें कई समन जारी किए गए हैं और वे जांच में शामिल नहीं हुए हैं। राम गोपाल अग्रवाल के लिए निर्धारित धनराशि उनके तत्कालीन सहायक देवेंद्र दड़सेना द्वारा एकत्रित की जाती थी।

उन्होंने चैतन्य बघेल के निर्देश पर केके श्रीवास्तव नामक एक व्यक्ति को 80-100 करोड़ रुपये की धनराशि भी दी थी। उन्होंने चैतन्य बघेल को सीधे 5 करोड़ रुपये की नकदी सौंपी थी। निदेशालय ने केके श्रीवास्तव और देवेंद्र दडसेना से भी पूछताछ की, जिन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें वास्तव में लक्ष्मी नारायण बंसल द्वारा दावा और बताए अनुसार धनराशि प्राप्त हुई थी।

चैतन्य की विट्ठल ग्रीन प्रोजेक्ट में लगी अवैध कमाई : 

ईडी की चार्जशीट के मुताबिक चैतन्य बघेल ने अपनी रियल एस्टेट परियोजना विठ्ठल ग्रीन में अवैध कमाई का उपयोग किया। लक्ष्मी नारायण बंसल से 2 करोड़ रुपए चैतन्य बघेल के बैंक खाते में जमा किए गए और इस प्रोजेक्ट में लगाए गए। सहेली ज्वैलर्स से 5 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, जिन्हें चैतन्य बघेल ने भूमि खरीद में लगाया और यह भी इसी प्रोजेक्ट में इस्तेमाल हुए।

लगभग 5 करोड़ रुपए त्रिलोक सिंह ढिल्लों की संस्थाओं से प्राप्त हुए और अंततः इन्हें परियोजना के विकास में उपयोग किया गया। त्रिलोक सिंह ढिल्लो ने इस प्रोजेक्ट को फायदा दिलाने के लिए अपने लोगों के नाम पर कई फ्लैट खरीदे। कम से कम 10 करोड़ रुपए नकद भुगतान के रूप में प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं की खरीद में खर्च किए गए। इस शराब घोटाले की ऐसी ही कई परतें हैं जो धीरे धीरे सामने आ रही हैं। 

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