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Photograph: (the sootr)
छत्तीसगढ़ में हुए चर्चित शराब घोटाले के मामले में राजनीतिक और कारोबारी समीकरणों का खुलासा हुआ है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 7000 पन्नों का चालान पेश किया है।
इस चालान में शराब घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अनियमितताओं की जांच की जा रही है। इस मामले में ईडी और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) दोनों सक्रिय हैं। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने चैतन्य को रिमांड पर लेने की मांग भी की है।
शराब घोटाले में चैतन्य बघेल की भूमिका
चैतन्य बघेल को शराब घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रमुख आरोपी के रूप में पेश किया गया है। ईडी के अधिकारी सोमवार को रायपुर कोर्ट में चार बंडलों में 7000 पन्नों का चालान लेकर पहुंचे थे। इस चालान में चैतन्य बघेल के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
ईडी का कहना है कि दुर्ग के कारोबारी लक्ष्मीनारायण उर्फ पप्पू बंसल ने कबूल किया है कि शराब घोटाले में तीन महीनों के भीतर उसे 136 करोड़ रुपए मिले थे। यह पैसा कारोबारी अनवर ढेबर और नीतेश पुरोहित ने भेजा था। पप्पू बंसल ने दावा किया है कि इन पैसों का कुछ हिस्सा चैतन्य बघेल तक भी पहुंचा, जो कुल मिलाकर लगभग 1000 करोड़ रुपए का था। यह पैसा विभिन्न परियोजनाओं में निवेश करने के लिए इधर-उधर किया गया था।
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चैतन्य की गिरफ्तारी और अदालत में सुनवाई
चैतन्य बघेल को 18 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था और वह तब से रायपुर जेल में बंद हैं। इस समय, चैतन्य की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट ने पहले उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था और सेशन कोर्ट में याचिका दाखिल करने को कहा। अब मंगलवार को सेशन कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई होगी। इस पर फैसला आने तक ईओडब्ल्यू ने चैतन्य को रिमांड पर लेने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर अदालत ने रोक लगा दी है।
चैतन्य के लिए भविष्य की कानूनी लड़ाई
इस मामले में अब तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हो चुकी हैं। चैतन्य के खिलाफ की जा रही जांच में बड़े कारोबारी नामों का भी जिक्र किया गया है। ईडी और ईओडब्ल्यू की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, इस घोटाले में चैतन्य की भूमिका अहम रही है, और जांच का दायरा अब और बढ़ सकता है। चैतन्य के खिलाफ आरोपों में निरंतर वृद्धि हो रही है और आगामी सुनवाई से इस मामले में नया मोड़ आ सकता है।
ऐसे समझें छत्तीगढ़ के शराब घोटाले को
छत्तीसगढ़ शराब घोटाला 2025: एक नज़र
2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। उसी साल, शराब घोटाले की शुरुआत हुई, जो 2022 तक राज्य में फैल गया। इस घोटाले के अंतर्गत शराब के जरिए काले धन की कमाई की गई और यह सब भूपेश बघेल की सरकार की नाक के नीचे हुआ। यह घोटाला तब सामने आया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले की जांच की और कई अहम खुलासे किए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को भी इस घोटाले का आरोपी बनाया गया है।
शराब घोटाले का प्रारंभ
शराब घोटाले का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ में शराब की बिक्री को नियंत्रित करना था, लेकिन इसके बजाय यह एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला बन गया। राज्य की नई आबकारी नीति के तहत, 2017 में छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (CSMCL) का गठन किया गया, ताकि शराब के व्यापार को केंद्रीकृत किया जा सके। रमन सिंह की सरकार के दौरान यह नीति बनाई गई, लेकिन 2018 में सरकार बदलने के बाद इस नीति में गंभीर खामियां सामने आईं, जिससे शराब सिंडिकेट ने अपना काम शुरू किया।
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नोएडा से क्या जुड़ाव है?
प्रवर्तन निदेशालय ने खुलासा किया कि शराब घोटाले में नकली होलोग्राम बनाने के लिए नोएडा स्थित एक कंपनी को टेंडर दिया गया। यह कंपनी होलोग्राफी सुरक्षा फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड नामक संस्था थी, जो शराब की बोतलों पर असली होलोग्राम बनाने का काम करती थी। हालांकि, यह कंपनी इस काम के लिए योग्य नहीं थी, फिर भी नियमों में संशोधन करके उसे यह टेंडर दिया गया।
घोटाले का संचालन कैसे हुआ?
छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले के संचालन के तरीके को समझना काफी महत्वपूर्ण है। 2018 में जब भूपेश बघेल की सरकार बनी, तो CSMCL के प्रबंधन में बदलाव किया गया। इसके बाद शराब सिंडिकेट ने इस पर कब्जा जमाया और एक समानांतर आबकारी विभाग का गठन कर दिया। इस विभाग में राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों, नेताओं और आबकारी अधिकारियों का हाथ था।
तीन साल तक चला शराब घोटाला
यह घोटाला तीन साल तक चलता रहा और इस दौरान कई अधिकारी, नेताओं और शराब माफिया के बीच मिलीभगत के कारण अवैध बिक्री बढ़ती रही। सरकारी गोदामों से शराब को सीधे ठेकों में भेजा जाने लगा। यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से संगठित और योजनाबद्ध तरीके से चली, जिससे शराब उद्योग को भारी नुकसान हुआ और राज्य की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुई।