प्रफुल्ल पारे@RAIPUR
छत्तीसगढ़ में 40 लाख टन धान की नीलामी के नाम पर एक बार फिर बंदरबाट होने वाला है। इस साल कुल खरीदे गए धान में से राज्य सरकार लगभग 40 लाख टन धान को खुले बाजार में डिजिटल नीलामी के जरिये बेचने जा रही है, जिसमें एक अनुमान के मुताबिक उसे करीब 3600 करोड़ का शुद्ध घाटा होने वाला है।
घाटा तो बाद की बात है पहले तो उसे डिजिटल प्लेटफार्म पर नीलामी करवाने वाली कंपनी ही नहीं मिल रही है। इस नीलामी को अंजाम देने वाले छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ ने पहली बार टेंडर निकाला तो दो कंपनियों ने हिस्सा लिया और अब विपणन संघ ने दूसरी बार टेंडर निकाला है। सरकार ने पूरे प्रदेश के किसानों से लगभग 150 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की और सारे उपयोग के बाद लगभग 40 लाख मीट्रिक टन धान बच रहा है। सरकार की समस्या ये है कि बचा हुआ धान खरीदी गई कीमत पर नहीं बिका तो उसे करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
विवादों में घिरी नीलामी की प्रक्रिया
जानकारी के अनुसार इस साल छत्तीसगढ़ में करीब 150 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई। लगभग 110 लाख मीट्रिक टन धान का सरकार खुद इस्तेमाल करेगी और बचे हुए 40 लाख मीट्रिक टन धान को खुले बाजार में बेच देगी। सरकार ने इस नीलामी का काम विपणन संघ को दिया है। आपको बता दें कि 2020 में भी कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के समय बचा हुआ धान इसी तरह डिजिटल नीलामी से बेचा गया था। उस समय यह काम नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रमोटेड कंपनी एनइएमएल ने किया था। चार साल बाद अब फिर शेष धान को बेचने के हालत निर्मित हो गए हैं, लेकिन इस बार विपणन संघ नीलामी के लिए जो प्रक्रिया अपना रहा है वह पूरी प्रक्रिया विवादों में घिरती जा रही है।
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इसलिए निरस्त हो गया टेंडर
पूरे देश में एक दर्जन से अधिक कंपनियां डिजिटल प्लेटफार्म पर खरीदी बिक्री का काम करती हैं जिन्हे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा प्रमोट किया जाता है, लेकिन विपणन संघ ने जब पहला टेंडर निकाला तो उसमें एनइएमएल के अलावा एक और कंपनी ने भाग लिया। नियम के मुताबिक टेंडर में तीन कंपनियों को होना जरूरी है इसलिए यह टेंडर निरस्त हो गया और दोबारा यह टेंडर निकाला जा रहा है। डिजिटल नीलामी का काम करने वाली कुछ कंपनियों ने टेंडर की शर्तों पर भी आपत्ति उठाई।
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सरकार की शर्त, टेंडर में शामिल नहीं हो पाएंगी कई कंपनियां
इन कंपनियों का कहना है कि डिजिटल प्लेटफार्म पर कृषि उपज की खरीदी और बिक्री दोनों होती है, इसलिए टर्न ओवर भी दोनों का मिलाकर निर्धारित होना चाहिए, लेकिन सरकार 5 लाख मीट्रिक टन केवल बिक्री का टर्न ओवर मांग रही है। इस शर्त के चलते कई कंपनियां इस टेंडर में शामिल ही नहीं हो पाएंगी। वहीं इस टेंडर में कोई ऐसी कंपनी हिस्सा नहीं ले सकती जिसे किसी भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार ने अवैधानिक कार्यों में लिप्त पाकर प्रतिबंधित किया हो यहां इस शर्त का भी पालन होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि जिस कंपनी ने 2020 में डिजिटल नीलामी की थी वही कंपनी इस बार भी भाग ले रही है जबकि उड़ीसा की सरकार ने उसे धान और मक्का की नीलामी के लिए प्रतिबंधित किया हुआ है।
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कैसे होगी घाटे की भरपाई?
राज्य सरकार के सामने एक ही चुनौती है कि किसी भी तरह बचा हुआ धान अच्छी कीमत पर नीलाम हो जाए तो उसका घाटा काम हो जाएगा। सवाल ये है कि एक ही कंपनी की मोनोपोली होगी प्रतिस्पर्धा नहीं हो पाएगी और बिना स्पर्धा के सरकार को अच्छे दाम नहीं मिल पाएंगे। सरकार के पास जो बचा हुआ धान है उसे सरकार ने 3100 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से खरीदा है तो खुले बाजार में उसे इससे अधिक कीमत मिलनी चाहिए, पुराने अनुभव के आधार पर जानकारों का कहना है कि यह धान 2200 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक कीमत में नहीं बिकेगा। अगर ऐसा होता है तो सरकार को 900 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान तय है। इस हिसाब से यह घाटा लगभग 3600 करोड़ रुपये का होगा।
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डिजिटल नीलामी ही क्यों?
सरकार अपने बचे हुए धान को डिजिटल नीलामी से इसलिए बेचना चाहती है क्योंकि डिजिटल नीलामी में बोली लगाने वालों की पहचान नहीं हो पाती जिसके कारण खरीदार ग्रुप बनाकर रेट फेब्रिकेशन नहीं कर पाता। इसीलिए डिजिटल नीलामी में अच्छे भाव मिलने की संभावना बनी रहती है।
छत्तीसगढ़ में धान की अच्छी कीमत में सरकारी खरीदी होती है जबकि पड़ोसी राज्य ओड़िशा और झारखंड में ऐसा नहीं है। जिसके कारण इन प्रदेशों का धान भी छत्तीसगढ़ में अड़तियों द्वारा खपा दिया जाता है। जो धान सरकार नीलाम कर रही है उसके अधिकांश खरीदार अड़तिये ही होते हैं।इसलिए ऐसे धान को अगले साल फिर सरकार को बेच देने की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
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