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Raipur. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बुधवार को धर्मांतरण के बढ़ते मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि गरीबी, अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण होने वाला धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है। इस पर रोक लगाने के लिए आगामी शीतकालीन सत्र में कठोर धर्मांतरण विरोधी कानून लाया जाएगा।
मुख्यमंत्री साय ने यह बात जनजातीय समाज के महान शिक्षाविद् और समाजसेवी बाबा कार्तिक उरांव की जन्म शताब्दी के अवसर पर कही। इस दौरान उन्होंने बाबा कार्तिक उरांव चौक निर्माण कार्य का भूमिपूजन भी किया।
'प्रलोभन से धर्म बदलना गलत'
सीएम साय ने अपने संबोधन में कहा - “भारत में सभी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को गरीबी या प्रलोभन के कारण धर्म बदलने पर मजबूर किया जाता है, तो यह सही नहीं है। सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जनजातीय समाज की संस्कृति, आस्था और परंपरा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
बाबा कार्तिक उरांव को दी श्रद्धांजलि
सीएम ने बाबा कार्तिक उरांव के योगदान को याद करते हुए कहा - “बाबा कार्तिक उरांव समाज के गौरव हैं। उन्होंने विदेशों में उच्च शिक्षा हासिल करने के बावजूद अपनी धर्म, संस्कृति और सभ्यता को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने शिक्षा के प्रसार, सामाजिक एकता और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया।”
धर्मांतरण पर बढ़ती सख्ती की तैयारी
राज्य में विशेषकर बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लंबे समय से धर्मांतरण के मामले सामने आ रहे हैं। राजधानी रायपुर और बिलासपुर में भी कई बार प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगे हैं।
पुलिस और EOW की टीम ने पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे मामलों में कार्रवाई की है। कुछ दिन पहले राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने भी कहा था कि धर्मांतरण के खिलाफ कानून का मसौदा तैयार किया जा चुका है।
राज्य में बढ़ेगी सख्ती, शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश होगा
मुख्यमंत्री के बयान के बाद यह लगभग तय माना जा रहा है कि आगामी शीतकालीन विधानसभा सत्र में धर्मांतरण विरोधी बिल पेश किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य ऐसे प्रलोभनपूर्ण धर्म परिवर्तन को रोकना है जो सामाजिक असंतुलन और साम्प्रदायिक तनाव को जन्म दे रहे हैं।
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जनजातीय समाज में खुशी
मुख्यमंत्री साय के बयान का जनजातीय समाज में स्वागत किया जा रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने कहा है कि “सरकार का यह कदम समाज की मूल पहचान और आस्था को संरक्षित करने की दिशा में अहम साबित होगा।”
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