छत्तीसगढ़ में सीएम विष्णुदेव साय सरकार के अफसरों ने बड़ा चमत्कार कर दिया है। चमत्कार भी ऐसा कि सुनने वाला दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजूबर हो जाएं। जी हां, बात ही कुछ ऐसी है। दरअसल, हुआ यूं है कि छत्तीसगढ़ की न्यायधानी यानी बिलासपुर में शहर के बीचों- बीच सरकारी तालाब, नजूल की जमीन पर अवैध कब्जे हो गए हैं। कब्जे तो सालों से हैं, लेकिन शराब कारोबारी अमोलक सिंह भाटिया के संबंधियों ने तो तालाब के एक बड़े हिस्से को ही पाट दिया था। मामले ने तूल पकड़ा आनन-फानन में तालाब को कब्जे से मुक्त कराया गया। तालाब से भराव वाली मिट्टी को निकालने में प्रशासन को दो दिन लग गए थे।
कलेक्टर को गुमराह करने की कोशिश...रिपोर्ट हुई खारिज
बिलासपुर शहर में नजूल की जमीनों पर अतिक्रमण की जानकारी प्रशासन की ओर से एकत्र की गई। इसके लिए कलेक्टर अवनीश शरण ने अपर कलेक्टर शिव बनर्जी की अध्यक्षता में 45 सदस्यीय कमेटी का बनाई। इस टीम में शामिल राजस्व अधिकारियों की ओर से इतनी सफाई के साथ रिपोर्ट तैयार की गई कि उसे लौटाना पड़ा। इसके बाद अवैध कब्जे की रिपोर्ट तैयार करने के लिए दोबारा से निर्देश जांच टीम को दिए गए।
सरकारी गलियारों में बाबू यानी क्लर्क सबसे बड़ा अधिकारी माना जाता है। कलेक्टर के बार- बार दबाव दिए जाने के बाद राजस्व अमले ने दोबारा जांच की। इस बार भी राजस्व अमला अपनी बाजीगरी से बाज नहीं आया। उसने ऐसी रिपोर्ट बनाई कि सब चौंक गए। दरअसल, राजस्व अमले ने 41 खसरा नंबरों पर 64 हजार 961 वर्गफीट जमीन पर कब्जा होने की रिपोर्ट तैयार की। इसमें सबसे खास बात ये रही कि राजस्व अमला ये पता नहीं करा पाया कि ये कब्जा किसने किया है।
यानी वह इंसान कौन है कि जिसने सरकारी जमीन दाब रखी है, लेकिन राजस्व अमले ने ये जरूर पता कर लिया कि इस जमीन पर किस-किस भगवान यानी कि मंदिर का कब्जा है। जैसे कि रिपोर्ट में लिखा गया है कि खसरा नंबर 10/001 पर पंचमुखी हनुमान, 10/004 पर श्री विष्णु मंदिर, 121/1 पर श्रीसुलभ मंदिर का कब्जा है। वहीं, जिन जगहों पर इंसान का कब्जा था, उस खसरा नंबर के आगे 'अतिक्रमण' लिख कर खाना पूर्ती कर दी गई।
अब तीसरी बार होगी जांच
दूसरी बार तैयार की गई रिपोर्ट पर भी बताया जा रहा है कि कलेक्टर ने सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां तक कि उन्होंने इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए अब तीसरी बार भी जांच करने के आदेश दे दिए हैं। शहर के बीचों-बीच बेशकीमती जमीनों पर आम आदमी तो कब्जा कर नहीं सकता। जाहिर है, कब्जेधारी रसूखदार ही होंगे, जिनके नाम तक लिखने में सरकारी अमले को पसीना आ रहा है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जो सरकारी अमला अतिक्रमण करने वालों के नाम तक नहीं लिख पा रहा है, वो सरकारी जमीनों को उनके कब्जे से कैसे मुक्त कराएगा।
बिलासपुर के सरकारी तालाब पर कब्जे का मामला क्या है?
बिलासपुर में सरकारी तालाब और नजूल की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया गया था। शराब कारोबारी भाटिया के परिवार ने तालाब के बड़े हिस्से को पाट दिया था। मामले के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन ने कब्जा हटाया और तालाब से भराव की मिट्टी निकालने में दो दिन का समय लगा।
सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराने में क्या मुश्किलें हैं?
कब्जाधारी रसूखदार हैं, जिनके नाम सार्वजनिक करने में सरकारी अमले को हिचकिचाहट हो रही है। जांच टीम की निष्क्रियता और रिपोर्ट में अधूरी जानकारी के कारण कार्रवाई धीमी हो रही है।