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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मोहल्लों में सुलभ और गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए शुरू किए गए हमर क्लिनिक अब अपनी मूल मंशा से भटकते नजर आ रहे हैं। ये क्लिनिक आमलोगों को उनके घर के पास ही बेहतर इलाज उपलब्ध कराने का वादा लेकर शुरू किए गए थे, अब महज दवा बांटने के केंद्र बनकर रह गए हैं।
क्लिनिकों में न तो मरीजों की समुचित जांच हो रही है, न ही उन्हें डॉक्टर की सलाह मिल रही है। हालात इतने खराब हैं कि नर्सें ही डॉक्टर की भूमिका निभाने को मजबूर हैं, और बिना उचित जांच के मरीजों को दवाइयां थमाकर घर भेज दिया जा रहा है। इससे मरीजों में निराशा बढ़ रही है, और स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठ रहे हैं।
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डॉक्टरों की कमी, नर्सों पर बोझ
इस क्लिनिक की शुरुआत 2019 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने की थी, ताकि शहरी क्षेत्रों में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिल सकें। मगर, वर्तमान में रायपुर के 50 से अधिक क्लिनिकों में से ज्यादातर में डॉक्टरों की भारी कमी है। केवल कुछ ही क्लिनिकों में डॉक्टर उपलब्ध हैं, जबकि बाकी में नर्सें और अन्य स्वास्थ्य कर्मी मरीजों का इलाज संभाल रहे हैं।
कुशालपुर का क्लिनिक इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां मरीजों को बिना डॉक्टरी परामर्श के दवाइयां दी जा रही हैं। नर्सें प्रशिक्षित तो हैं लेकिन डॉक्टरों की तरह विशेषज्ञता नहीं रखतीं, सरकारी निर्देशों के दबाव में अपने अनुभव के आधार पर मरीजों का इलाज कर रही हैं। हालांकि, यह व्यवस्था जोखिम भरी है, क्योंकि किसी भी गलती की जिम्मेदारी नर्सों को ही उठानी पड़ती है। एक नर्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमें मजबूरी में मरीजों को देखना पड़ता है। डॉक्टर नहीं हैं, तो हम क्या करें? मगर कोई गलती हो जाए, तो सजा हमें ही मिलेगी।"
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मरीजों की शिकायत, इलाज के नाम पर खानापूर्ति
एक पीडित ने बताया कि उसे तीन दिन से बुखार था। इलाज की उम्मीद लेकर स्थानीय क्लिनिक पहुंचे, लेकिन वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। नर्स ने बिना जांच के उन्हें कुछ दवाइयां दीं और घर लौटने को कहा। पीडित ने कहा, "अगर कोई गंभीर बीमारी हो, तो क्या होगा? नर्स ने तो बस दवा थमा दी।" गंभीर मामलों में नर्सें मरीजों को निजी अस्पतालों या बड़े सरकारी अस्पतालों में जाने की सलाह दे देती हैं, जिससे क्लिनिक की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं।
शहर के अन्य इलाकों जैसे पंडरी, टाटीबंध, और माना में भी यही स्थिति है। मरीजों का कहना है कि क्लिनिक में न तो उचित जांच की सुविधा है, न ही डॉक्टरों की उपलब्धता। कई मरीजों को सामान्य बुखार, खांसी, या दर्द जैसी समस्याओं के लिए भी बड़े अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है, जिसके लिए उन्हें अतिरिक्त समय और पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
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डॉक्टरों की भर्ती की मांग, मगर कोई सुनवाई नहीं
रायपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) ने डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार को कई बार पत्र लिखा है। सीएमएचओ कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि हमर क्लिनिकों के लिए कम से कम 50 अतिरिक्त डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राज्य सरकार की ओर से भर्ती प्रक्रिया को मंजूरी नहीं मिलने के कारण क्लिनिकों की स्थिति लगातार खराब हो रही है।
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हमर क्लिनिक की मंशा और हकीकत
हमर क्लिनिक योजना का उद्देश्य था कि शहरी गरीब और मध्यम वर्ग के लोग बिना बड़े अस्पतालों की लंबी कतारों में लगे अपने घर के पास ही मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण इलाज पा सकें। इन क्लिनिकों में सामान्य बीमारियों जैसे बुखार, सर्दी-खांसी, डायबिटीज, और उच्च रक्तचाप की जांच और इलाज की सुविधा होनी थी। साथ ही, गंभीर मामलों को बड़े अस्पतालों में रेफर करने की व्यवस्था थी। लेकिन डॉक्टरों की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने इस योजना को खोखला कर दिया है।
नर्सों की मजबूरी, मरीजों की परेशानी
नर्सों पर इलाज का जिम्मा होने के कारण उनकी स्थिति भी असमंजस में है। एक ओर उन्हें सरकारी आदेशों का पालन करना पड़ता है, तो दूसरी ओर मरीजों की बढ़ती शिकायतों और गंभीर मामलों में जोखिम का सामना करना पड़ता है। एक नर्स ने बताया, "हमारे पास न तो पूरी ट्रेनिंग है, न ही संसाधन। फिर भी हमें मरीजों को देखना पड़ता है। अगर कुछ गलत हो गया, तो हम पर ही गाज गिरेगी।"
क्या है समाधान?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हमर क्लिनिक जैसी योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। इनमें शामिल हैं।
डॉक्टरों की भर्ती : क्लिनिकों में स्थायी डॉक्टरों की नियुक्ति।
बुनियादी सुविधाएं : जांच के लिए जरूरी उपकरण और दवाइयों की नियमित आपूर्ति।
नर्सों का प्रशिक्षण : नर्सों को आपात स्थिति में प्राथमिक उपचार के लिए विशेष प्रशिक्षण।
निगरानी तंत्र : क्लिनिकों के कामकाज की नियमित समीक्षा और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
मरीजों में बढ़ रही निराशा
हमर क्लिनिक की बदहाल स्थिति ने रायपुर के नागरिकों में निराशा पैदा की है। कुशालपुर की रीता बाई ने कहा, "हम सोचते थे कि अपने मोहल्ले में ही अच्छा इलाज मिलेगा, लेकिन यहां तो सिर्फ खानापूर्ति हो रही है।" मरीजों का कहना है कि अगर सरकार इस योजना को गंभीरता से नहीं लेगी, तो यह सिर्फ कागजी योजना बनकर रह जाएगी।
सरकार के सामने चुनौती
हमर क्लिनिक की स्थिति सुधारना अब राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। यदि जल्द ही डॉक्टरों की भर्ती और बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर नहीं किया गया, तो यह योजना अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो सकती है। रायपुर के नागरिकों की उम्मीद अब सरकार के अगले कदम पर टिकी है, ताकि हमर क्लिनिक वाकई में "हमर" यानी आम लोगों की स्वास्थ्य जरूरतों का सहारा बन सकें।
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