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छत्तीसगढ़ में खबर है कि सरकार किसी और की है लेकिन चल किसी और की रही है। बीजेपी की सरकार है लेकिन इसे चलाने वाला कोई और सूत्रधार है। पूरा प्रशासन कहीं और से कंट्रोल हो रहा है। एक साल में बीजेपी सरकार इतना नहीं कर पाई कि कम से कम की पोस्ट तो अपने भरोसे के अफसरों को बैठा लिया जाए। विष्णु की सरकार में प्रमुख पदों पर वही लोग बैठे जिनको पिछली सरकार ने बैठाया था। साथ ही एक बार फिर खैरागढ़ टेम्पेट्स की चर्चा शुरु हो गई है। यह शब्द भूपेश सरकार में खूब चर्चा में रहा था। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक
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विष्णु के प्रशासन पर भूपेश की धाक
बीजेपी सरकार भूपेश बघेल पर कितने भी आरोप लगाए लेकिन विष्णु के प्रशासन पर भूपेश की धाक है। यह क्यों कहा जा रहा है क्योंकि इसके पीछे एक पूरी कहानी है। जब भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे तब आईएएस_आईपीएस ने एक प्रयोग किया जिसे खैरागढ़ टेंपलेट्स या खैरागढ़ मॉडल कहा गया। खैरागढ़ में उपचुनाव के दौरान चुनाव जीतने का एक मॉडल तैयार किया गया। इसमें पूरे क्षेत्र को छोटे छोटे सेक्टरों में बांटा गया। प्रमुख आईपीएस की एक टीम बनाई गई। इन टीम के लीडरों ने भरोसे के जवानों को इन सेक्टरों में तैनात किया गया।
यह जवान उस सेक्टर के सभी प्रमुख लोग, धार्मिक स्थल, वरिष्ठ नागरिक,प्रभावशाली लोग और धर्मगुरुओं समेत सभी की पूरी जानकारी रखते थे। इनके जरिए जनमत तैयार किया गया। सह सारा काम सीएम हाउस के अधिकारियों और बड़े ओहदे पर बैठे आईपीएस के सुपरविजन में हो रहा था। इस मॉडल ने काम किया और 2018 के चुनाव में सभी विधानसभा क्षेत्रों में इसे लागू करने की तैयारी की गई। इस पर काम भी शुरु हो गया।
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लेकिन इसकी भनक बीजेपी को लग गई और ये काम खराब हो गया। लेकिन इस मॉडल के सूत्रधार विष्णु सरकार में भी की पोस्ट पर हैं। किसी को एक्सटेंशन मिल रहा है तो कोई अपनी ड्यूटी छोड़कर राजधानी में अफसरों को आई फोन बांट रहा है। और सरकार है कि कुछ नहीं कर पा रही। खबर तो यहां तक है कि एक प्रमुख आईपीएस को तीसरी बार एक्सटेंशन की तैयारी की जा रही है। अब इसे क्या कहेंगे कि शासन किसी और का और चला कोई और रहा है।
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दिल्ली से लौटी कांग्रेस की लिस्ट
पीसीसी चीफ लाख कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी नई टीम तैयार नहीं हो पा रही। खबर है कि पीसीसी चीफ ने कई महीनों की मेहनत कर एक सूची तैयार की और मुहर लगाने के लिए दिल्ली भेज दी। लेकिन वो सूची दिल्ली ने मंजूर नहीं की और वापस भेज दी। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे बड़ा कारण था। यहां से जो सूची गई थी उसमें कांग्रेस के बड़े नेता के समर्थकों का नाम नहीं था। यानी उनके पुराने समर्थकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इस पर नेताजी ने आपत्ति जताई। बस फिर क्या था जो सूची दिल्ली भेजी गई उसे टोकरी में डाल दिया गया और साफ शब्दों में कह दिया गया कि पुराने लोगों से काम चलाइए। अब चुनावों में पुराने लोगों को ही दायित्व दे दिया गया है।
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जितने की गाड़ियां नहीं उससे कई गुना किराया
पुलिस विभाग में करोड़ों रुपए सालाना किराए की गाड़ियों के नाम पर उड़ाए जा रहे हैं। ये विभाग साल भर में इतना किराया गाड़ियों पर फूंक देता है जितने में एक हजार इनोवा गाड़ियां खरीदी जा सकती हैं। दरअसल यह खुलासा पुलिस विभाग की एक मीटिंग में हुआ। हर जिले में सालभर में आठ से दस करोड़ रुपए की किराए की गाड़ियां पुलिस अफसरों के यहां और थानों में लगाई जाती हैं।
इस तरह पूरे प्रदेश में 200 से 250 करोड़ रुपए सिर्फ किराए की गाड़ियों पर खर्च किए जाते हैं जबकि न तो इतनी जमीन पर दिखाई देती हैं और न ही इतनों की जरुरत है। बस कागजों पर यह गाड़ियां दौड़ रही हैं। जब सरकार ने इसका हिसाब किताब मांगा तो जिले के अफसरों में खलबली मच गई। अब गाड़ियों की वापसी शुरु हो गई है। सूत्रों की मानें तो 400 से ज्यादा गाड़ियां अलग_अलग जिलों से वापस कर दी गई हैं। अब सवाल है कि आखिर यह 250 करोड़ किसकी जेब में जा रहा है।