घर और पानी के लिए तरस रही बैगा जनजाति, PM आवास योजना में बने जर्जर घर, रहते हैं पशु

छत्तीसगढ़ में रह रही बैगा जनजाति की हालत बेहद नाजुक है। ये जनजाति आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। यहां न तो रहने के लिए मकान हैं और ना ही पीने के लिए पानी की व्यवस्था।

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Amresh Kushwaha
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Critical Condition of Baiga Tribe
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Critical Condition of Baiga Tribe : विलुप्त होती विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले ( Gaurela-Pendra-Marwahi ) की बैगा जनजाति ( Baiga Tribe ) भी है।

जिन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए आजादी के बाद से लगातार सरकार ने काम किया है। कई योजनाओं के माध्यम से उनके जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया।

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इतने साल बीत जाने के बाद भी स्थिति बद से बदतर है। बैगा जनजाति आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। इस जिले के जनजाति इलाकों में सरकार की तमाम योजनाएं फेल नजर आ रही है। यहां न तो रहने के लिए अच्छा घर है और न ही सड़क, स्कूल और रोजगार जैसी अन्य जरूरी चीजें।

राष्ट्रपति की दत्तक पुत्र मानी जाती हैं ये जनजाति

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजातियों की श्रेणी में अबूझमाड़िया, बैगा, बिरहोर, कमार और पहाड़ी कोरवा आते हैं। पूरे प्रदेश में इन जनजातियों की कुल आबादी लगभग दो लाख के आसपास है।

छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती विशेष पिछड़ी जनजातियों के संरक्षण के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चलाई। इन पांच जनजातियों को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया गया है।

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इसके साथ ही इन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी माना जाता है। ये पांचों जनजाति छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में पाई जाती हैं। बस्तर में अबूझमाड़िया, जशपुर में बिरहोर, धमतरी में कमार, अंबिकापुर और कोरबा जिले में पहाड़ी कोरवा और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में बैगा जनजाति पाई जाती है।

जिले के जंगली इलाकों में रहती है बैगा जनजाति

छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली ये जनजातियां जंगलों में रहती हैं। इनका निर्वहन इन्हीं जंगलों में होता है। इन जनजातियों की कम होती संख्या शासन-प्रशासन के लिए चिंता का कारण है।

इन्हें संरक्षित जनजाति के रूप में रखा गया है। आजादी के बाद से इन जनजातियों के संरक्षण के नाम पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। आज भी ये विशेष पिछड़ी जनजातियां मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं।

बैगा जनजाति अमरकंटक के तराई इलाकों करंगरा सलाहेघोरी, कैवची, आमाडोब, थाड़पथरा गांव में रहती है, जहां इनकी आबादी ढाई से तीन हजार के करीब है। पहाड़ के तराई इलाकों में रहने वाले इस जनजाति की दिनचर्या बहुत कठिन है।

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न पीने का पानी और न ही रहने के लिए छत

कहने ने को तो यहां सीमेंट और कंक्रीट से बनी हुई रोड है, लेकिन जमीन में उसके अवशेष ही दिखाई पड़ रहे थे। यहां की महिलाओं ने बताया कि आज भी वे लोग पहाड़ों से गिरता हुआ पानी पीते हैं। नहाने, खाने और पीने के लिए आज भी ये जनजाति प्राकृतिक जल स्रोतों पर निर्भर है। यहां जो भी योजनाएं आती हैं, वे बैगाओं तक नहीं पहुंच पाती हैं। गांव में आने-जाने के लिए सड़क भी नहीं है। पगडंडियों से आज भी काम चल रहा है।

पीएम आवास को छोड़ कच्चे घरों में रहने को मजबूर

प्रधानमंत्री आवास योजना का हाल भी बेहाल है। इस योजना का लाभ अब तक इन ग्रामीणों को नहीं मिला है। वर्षों पहले बनी इंदिरा आवास योजना का लाभ मिला था, लेकिन वे आवास भी अब जर्जर हो चुके हैं।

आपको बता दें कि बैगा जनजाति बड़ी ही भोली भाली जनजाति होती है। इस जनजाति के लोग महुआ की शराब का सेवन करते हैं। इसके साथ ही ये मुख्य धारा से अलग होते हैं, इनका किसी से कोई लेना-देना नहीं होता है।

पीएम आवास में रखे हैं लकड़ी-कंडे

दरअसल वर्ष 2016-17 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बैगा जनजातियों के लिए आवास बनाए गए। इन जनजातियों के लिए स्वीकृत आवासों का निर्माण ठेकेदारों ने स्वयं किया।

बता दें कि इन आवासों का निर्माण इतना घटिया था कि बिना उपयोग किए ही ये आवास जर्जर हो गए। अब बैगा जनजाति के लोग इन आवासों में रहने से डरते हैं।

इन्हें लगता है कि आवास का छत कभी भी गिर जाएगा। जिसके चलते प्रधानमंत्री आवास में ये लोग बरसात में उपयोग के लिए लकड़ी, कंडे और अपने पशुओं को बांधकर रखे हैं।

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शिक्षा और रोजगार की बुरी हालत

प्रधानमंत्री आवास योजना की तरह ही गांव में शिक्षा व्यवस्था का भी बुरा हाल है। गांव में आंगनबाड़ी केंद्र और प्राथमिक शाला है। इसके आगे की माध्यमिक एवं हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए यहां के छात्रों को विकासखंड मुख्यालय जाना होता है।

गांव से बाहर निकलने वाले रास्ते दुर्गम होने के चलते यहां के बच्चे आगे की पढ़ाई नहीं करते। वहीं कुछ पढ़े-लिखे युवाओं का रोजगार नहीं मिलने से बुरा हाल है। यहां के युवा बेरोजगारी के कारण घर में ही रहकर गांव में दूसरों की मजदूरी कर अपना जीवन बसर कर रहे हैं।

जांच की बात कह रहे अधिकारी

वहीं इस पूरे मामले में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला कार्यक्रम अधिकारी कोसल कुमार तेंदुलकर ने कहना है, अनियमितता हुई है, शिकायत प्राप्त हुई है। जांच की जाएगी। वैसे प्रधानमंत्री जनमन योजना के अंतर्गत अब नए सिरे से बैगा जनजाति के बसाहट इलाकों में विकास की नई कहानी लिखने की तैयारी चल रही है।

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