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छत्तीसगढ़ के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में योगा और पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (पीजीडीसीए) जैसे पाठ्यक्रमों के प्रति छात्रों की रुचि में भारी कमी देखी जा रही है। एक दशक पहले योगा के वैश्विक प्रचार-प्रसार के दौर में इन पाठ्यक्रमों की मांग ने कॉलेजों में बाढ़ ला दी थी, लेकिन अब स्थिति उलट है।
रायपुर जिले के कई कॉलेज योगा के डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों को बंद करने या इन्हें छोटे सर्टिफिकेट कोर्स में बदलने की योजना बना रहे हैं। इसी तरह, पीजीडीसीए जैसे कंप्यूटर पाठ्यक्रमों में भी सीटें खाली रह रही हैं, भले ही कॉलेजों ने फीस में कटौती की हो।
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योगा पाठ्यक्रमों का घटता आकर्षण
पिछले दशक में योगा के वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रचार के चलते छत्तीसगढ़ के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में योगा आधारित सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, और डिग्री पाठ्यक्रम शुरू किए गए थे। उस समय यह उम्मीद थी कि स्कूलों और कॉलेजों में योग शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बड़े पैमाने पर अवसर खुलेंगे। लेकिन शिक्षाविदों और प्राचार्यों का कहना है कि अपेक्षित नौकरी के अवसर न मिलने के कारण छात्रों का रुझान योगा पाठ्यक्रमों की ओर कम हो गया है।
महंत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवाशीष मुखर्जी ने बताया कि इस शैक्षणिक सत्र में योगा पाठ्यक्रम में प्रवेश ही नहीं दिए गए हैं। कॉलेज अब एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम को तीन महीने के सर्टिफिकेट कोर्स में बदलने की तैयारी कर रहा है, जो कम अवधि और कम फीस वाला होगा। कई अन्य कॉलेज भी योगा पाठ्यक्रमों को पूरी तरह बंद करने पर विचार कर रहे हैं।
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पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में योगा पाठ्यक्रम दो विभागों योगा विभाग और शारीरिक शिक्षा विभाग के तहत संचालित हो रहे हैं। लेकिन प्रवेश की अंतिम तिथि बीतने के बाद भी इन पाठ्यक्रमों की सीटें नहीं भर पाई हैं। प्राचार्यों के अनुसार, कोविड-19 से पहले योगा पाठ्यक्रमों के लिए एक सीट पर 8 गुना तक आवेदन आते थे, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है।
पीजीडीसीए में भी खाली सीटें
कंप्यूटर आधारित पाठ्यक्रमों, विशेष रूप से पीजीडीसीए, की मांग भी तेजी से घट रही है। रायपुर के दुर्गा महाविद्यालय में पीजीडीसीए की 60 सीटों के लिए केवल 14 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जबकि महंत महाविद्यालय में 80 में से 60 सीटें ही भर पाई हैं।
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इस कमी को देखते हुए कई कॉलेजों ने फीस में कटौती की है। उदाहरण के लिए, महंत महाविद्यालय ने पीजीडीसीए की फीस 26,000 रुपये से घटाकर 20,000 रुपये कर दी, जिससे प्रवेश में कुछ बढ़ोतरी तो हुई, लेकिन सीटें पूरी तरह नहीं भरीं। दागा महाविद्यालय ने इस शैक्षणिक सत्र से पीजीडीसीए पाठ्यक्रम शुरू किया, लेकिन 60 सीटों के लिए केवल 12 आवेदन आए।
प्राचार्यों का कहना है कि बीएससी (कंप्यूटर साइंस), बीसीए, और अन्य तकनीकी पाठ्यक्रमों की बढ़ती लोकप्रियता ने पीजीडीसीए की मांग को कम कर दिया है।
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क्यों घट रही है रुचि?
शिक्षाविदों का मानना है कि प्रत्येक पाठ्यक्रम का एक ट्रेंड होता है, जो समय के साथ बदलता है। योगा पाठ्यक्रमों की शुरुआत के समय यह अनुमान था कि स्कूलों और कॉलेजों में योग शिक्षकों की मांग बढ़ेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नौकरी के अवसरों की कमी ने छात्रों का उत्साह ठंडा कर दिया।
इसी तरह, पीजीडीसीए जैसे पाठ्यक्रमों की जगह अब अधिक आधुनिक और नौकरी-उन्मुख पाठ्यक्रम जैसे डेटा साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और साइबर सिक्योरिटी ने ले ली है। इसके अलावा, प्राइवेट कॉलेजों में अपेक्षाकृत अधिक फीस और सरकारी नौकरियों में योग या पीजीडीसीए की सीमित मांग ने भी छात्रों को इन पाठ्यक्रमों से दूर कर दिया है।
कई छात्र अब उन कोर्सेज को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो निजी क्षेत्र में बेहतर रोजगार की संभावनाएं प्रदान करते हैं।
कॉलेजों की रणनीति
छात्रों की घटती रुचि को देखते हुए कॉलेज अब नई रणनीतियां अपना रहे हैं। कुछ कॉलेज योगा के डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों को छोटे अवधि के सर्टिफिकेट कोर्स में बदल रहे हैं, जो कम समय और कम लागत में पूरे किए जा सकते हैं। यह कोर्स उन लोगों को आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किए जा रहे हैं, जो योग को शौक के तौर पर या पूरक शिक्षा के रूप में सीखना चाहते हैं।
वहीं, पीजीडीसीए जैसे पाठ्यक्रमों को आकर्षक बनाने के लिए कॉलेज फीस में कटौती कर रहे हैं। लेकिन प्राचार्यों का कहना है कि यह कदम भी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि छात्र अब अधिक प्रासंगिक और भविष्योन्मुखी पाठ्यक्रमों की ओर रुख कर रहे हैं। कुछ कॉलेज पीजीडीसीए को पूरी तरह बंद करने पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि संसाधनों का उपयोग नए और मांग वाले कोर्सेज में किया जा सके।
शिक्षा विभाग और सरकार की भूमिका
शिक्षाविदों का सुझाव है कि शिक्षा विभाग और सरकार को इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। योग शिक्षकों की नियुक्ति के लिए स्कूलों और कॉलेजों में विशेष पद सृजित करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। अगर सरकार इस दिशा में कदम उठाए, तो योग पाठ्यक्रमों की मांग फिर से बढ़ सकती है। इसी तरह, पीजीडीसीए जैसे पाठ्यक्रमों को अपडेट करके इसमें डेटा एनालिटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, या सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसे आधुनिक मॉड्यूल जोड़े जा सकते हैं, ताकि ये आज के जॉब मार्केट के लिए प्रासंगिक बनें।
छात्रों और अभिभावकों की चिंता
छत्तीसगढ़ के छात्रों और अभिभावकों का कहना है कि कॉलेजों को ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने चाहिए, जो वर्तमान समय की मांग के अनुरूप हों। कई अभिभावकों ने शिकायत की कि योग और पीजीडीसीए जैसे कोर्स में निवेश करने के बाद भी उनके बच्चों को नौकरी नहीं मिली, जिसके चलते इन पाठ्यक्रमों के प्रति अविश्वास बढ़ा है।
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