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Dhamtari. धमतरी जिले में पुलिस हिरासत में हुई मौत ने कानून और मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मार्च 2025 की यह घटना तब हुई जब धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार दुर्गेंद्र कठोलिया (41 वर्ष) की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए मृतक के परिवार को 5 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है।
घटना का विवरण
दुर्गेंद्र कठोलिया को 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया। 31 मार्च को शाम 5 बजे वह पूरी तरह स्वस्थ होकर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश हुए, लेकिन तीन घंटे बाद रात 8 बजे पुलिस हिरासत में उनकी मौत हो गई। पीएम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर 24 चोटों के निशान दर्ज हैं। चोटें हाथ, छाती, जांघ, घुटनों, चेहरे और नाक पर थीं। मेडिकल बोर्ड ने मौत का कारण कार्डियो-रेस्पिरेटरी अरेस्ट और दम घुटने से मौत बताया।
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पुलिस की प्रतिक्रिया और राज्य सरकार का दावा:
पुलिस ने परिजनों को यह कहकर गुमराह किया कि दुर्गेंद्र कठोलिया अचानक बीमार हो गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, लेकिन कुछ ही देर बाद परिवार को पता चला कि उनकी मौत पहले ही हो चुकी थी। जब शव मिला तो उस पर चोटों के गहरे निशान देखकर परिजन स्तब्ध रह गए। राज्य सरकार ने अपनी दलील में मौत को प्राकृतिक बताया और कहा कि शरीर पर मिली चोटें साधारण और पुरानी थीं, लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस तर्क को सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि पुलिस हिरासत में तीन घंटे के भीतर हुई मौत सामान्य नहीं हो सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी परिस्थितियों में राज्य किसी भी तरह से अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
हाईकोर्ट का फैसला
चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने कहा कि यह घटना पुलिस की बर्बरता और हिरासत में ज्यादती का परिणाम है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हनन है। कोर्ट ने इसे कस्टोडियल बर्बरता का उदाहरण बताया।
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धमतरी पुलिस कस्टडी में मौत केस को ऐसे समझें:
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मुआवजे का आदेश
मृतक की पत्नी दुर्गा देवी को 3 लाख रुपए। मृतक के माता-पिता को प्रत्येक 1 लाख रुपए। 8 हफ्ते के भीतर भुगतान अनिवार्य, अन्यथा 9% वार्षिक ब्याज लागू। गृह विभाग के सचिव को निर्देश, मुआवजा समय पर देने और आदेश की प्रति सभी प्रतिवादियों को भेजने के लिए।
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राज्य सरकार के लिए चेतावनी:
हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं जनता का भरोसा तोड़ती हैं। राज्य को अपने पुलिसबल को मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना होगा और डीके बसु दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।