मनरेगा में अफसर का डिजिटल फ्रॉड आया सामने, कलेक्टर ने किया बर्खास्त

छत्तीसगढ़ में कोरबा जनपद पंचायत पोड़ी उपरोड़ा में पदस्थ कार्यक्रम अधिकारी एमआर कर्मवीर को मनरेगा योजना में 4 करोड़ 20 लाख से अधिक की वित्तीय अनियमितता का दोषी पाए जाने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। कार्रवाई कलेक्टर अजीत बसंत द्वारा की गई है।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ में कोरबा जनपद पंचायत पोड़ी उपरोड़ा में पदस्थ कार्यक्रम अधिकारी (PO) एमआर कर्मवीर को मनरेगा योजना में 4 करोड़ 20 लाख से अधिक की वित्तीय अनियमितता का दोषी पाए जाने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। यह कार्रवाई कलेक्टर एवं जिला कार्यक्रम समन्वयक अजीत बसंत द्वारा की गई है। आरोपी पीओ ने जनपद सीईओ के डिजिटल सिग्नेचर (DSC) का दुरुपयोग कर स्वेच्छा से भुगतान किया था, जिसकी न तो अनुमति ली गई थी और न ही कोई अनुशंसा।

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मामला दबा रहा तीन साल तक

घटना वर्ष 2022 की है, जब एमआर कर्मवीर पोड़ी उपरोड़ा में कार्यक्रम अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। उस समय तत्कालीन सीईओ बीएस राज और बाद में राधेश्याम मिर्ज़ा के डिजिटल हस्ताक्षरों का उपयोग कर बिना उनकी जानकारी के बड़ी राशि का भुगतान कर दिया गया था। खास बात यह है कि यह गंभीर वित्तीय गड़बड़ी तीन वर्षों तक दबा कर रखी गई, लेकिन वर्तमान कलेक्टर के संज्ञान में आते ही मामला तेजी से खुला।

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जांच में खुली परतें

कलेक्टर अजीत बसंत ने मनरेगा एनआएम विशेषज्ञ, लेखाधिकारी, उपसंचालक पंचायत, और RES व पीएमजीएसवाई के कार्यपालन अभियंताओं की टीम बनाकर पूरे मामले की जांच कराई। जांच के दौरान पाया गया कि:

मजदूरी मद में: ₹4,20,49,571

सामग्री मद में: ₹9,84,320

प्रशासकीय मद में: ₹33,04,548

अर्धकुशल मजदूरी मद में: ₹7,11,046

इस प्रकार कुल 4.7 करोड़ रुपए से अधिक की राशि का भुगतान अनधिकृत रूप से किया गया।

बिना मास्टर रोल के भुगतान

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि मजदूरी मद का भुगतान बिना मास्टर रोल संधारण किए ही कर दिया गया। इसके अलावा जनपद सीईओ की अनुमति और अनुशंसा के बिना राशि जारी की गई, जो सीधे तौर पर वित्तीय कदाचार की श्रेणी में आता है।

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नोटिस और बर्खास्तगी

एमआर कर्मवीर को इस पूरे मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। उनके द्वारा दिए गए जवाब को असंतोषजनक मानते हुए उन्हें युक्तियुक्त सुनवाई का अवसर भी दिया गया, लेकिन उसमें भी वे संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। इसके बाद कलेक्टर ने उन्हें एक माह का वेतन देकर सेवा से पृथक करने का आदेश जारी कर दिया।

जनहित की योजनाओं में इस तरह की अनियमितता न केवल प्रशासनिक विफलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि जब तक सक्षम नेतृत्व संज्ञान नहीं लेता, तब तक ऐसे मामले दबे ही रहते हैं। कलेक्टर अजीत बसंत की तत्परता और कठोर कार्रवाई ने प्रशासनिक जवाबदेही की मिसाल कायम की है।

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