दिव्यांगता के आंकलन के लिए एमपी के इस शहर में जाते हैं छत्तीसगढ़ के दिव्यांग, 25 साल में नहीं सुधरे इंतजाम

छत्तीसगढ़ को भले ही मध्यप्रदेश से अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने 25 साल हो गए हों, लेकिन यहां के दिव्यांगों को आज भी सुटेबिलिटी सर्टिफिकेट बनवाने के लिए मध्यप्रदेश का सफर करना पड़ता है।

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Pravesh Shukla
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रायपुर। छत्तीसगढ़ को भले ही मध्यप्रदेश से अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने 25 साल हो गए हों, लेकिन यहां के दिव्यांगों को आज भी सुटेबिलिटी सर्टिफिकेट बनवाने के लिए मध्यप्रदेश का सफर करना पड़ता है। दरअसल यह प्रमाण पत्र मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थित वोकेशनल रिहेबलिटेशन सेंटर फॉर हैंडिकेप्ट में बनाया जाता है। दिव्यांगों को अगर बारहवीं के बाद ग्रेजुएशन या फिर पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर के सभी कोर्स जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल, एग्रीकल्चर, डिप्लोमा कोर्स, डिग्री-डिप्लोमा, उच्च शिक्षा या तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई करनाी है तो, इसके लिए उन्हें सुटेबिलिटी सर्टिफिकेट लगाना अनिवार्य है। 

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पात्रता की होती है जांच

आवेदन करने वाला छात्र नौकरी के लिए पात्र हैं भी या नहीं, इसकी क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए भी उन्हें 600 से 1200 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। इससे छात्र-छात्राओं का वक्त, मेहनत और पैसा तीनों बर्बाद हो रहा। लगातार शिकायतों के बावजूद राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में प्रयास नहीं किया जा रहा । प्रदेश में सिर्फ दिव्यांगता का प्रतिशत बताने तक की सुविधा है। 

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इसके ​लिए जरूरी है सर्टिफिकेट

किसी सर्टिफिकेट को जारी करने से पहले सेंटर में इस बात की जांच होती है कि यदि कोई छात्र किसी ब्रांच से इंजीनियरिंग करना चाहता है, तो वह उसके लिए योग्य है भी या नहीं। दिव्यांगता के अनुसार संबंधित ब्रांच के लिए उसकी क्षमता कितनी है और भविष्य में किस स्तर पर होगी इसका मुल्यांकन किया जाता है।  कुछ इसी तरह भविष्य में पांच-दस साल बाद उसकी क्षमता की स्थिति क्या होगी इसका भी आंकलन किया जाता है। ठीक यही प्रक्रिया नौकरी के लिए भी की जाती है। छत्तीसगढ़ के निवेदन पर सेंटर प्रभारी एसके कुशवाहा रायपुर में साल में एक बार कैंप लगाते हैं। वे आवेदकों की जांच कर प्रमाणपत्र जारी करते हैं।

यहां सिर्फ बताते हैं कितनी दिव्यांगता है

केंद्र सरकार के इस अहम दफ्तर में अब तक प्रदेश के दिव्यांग इसलिए दौड़ लगा रहे हैं, क्योंकि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही यह काम यहां हो रहा है। राज्य विभाजन के बाद इस कार्यालय के संबंध में ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। 

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सर्टिफिकेट में रहती है ये जानकारी

प्रदेश में जिला और संभाग स्तर पर बोर्ड की ओर से सिर्फ व्यक्तिगत दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनाया जाता है। जिसमें यह बताया जाता कि उसे किस तरह की दिव्यांगता है और कितने प्रतिशत दिव्यांगता है। संभाग स्तर पर बोर्ड इस संबंध में या तो शिकायतें सुनता है या प्रमाणपत्रों की सत्यता प्रमाणित करता है। जब इस बारे में समाज कल्याण मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े से बात की गई तो उन्होंने बताया कि, अब तक वोकेशनल रिहेबलिटेशन सेंटर फॉर हैंडिकेप्ट के संबंध में पहल क्यों नहीं की गई इसका पता लगाया जाएगा। इस संबंध जो भी उचित पहल होगी वह जल्द से जल्द की जाएगी, ताकि दिव्यांगजनों को इसका लाभ मिल सके। 

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क्या है प्रावधान

प्रदेश में सरकारी नौकरियों में 4 फीसदी और न्यायिक सेवा में एक फीसदी का प्रावधान है। दिव्यांग अधिकार नियम को 2016 में बनाया गया था, जो कि 2017 से अमल में लाया जा रहा है। इसमें 21 कैटेगरी के दिव्यांगों को शिक्षा, रोजगार, प्रशिक्षण, पुनर्वास और इलाज की सुविधाएं मुहैया कराने का प्रावधान है। दिव्यांगों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर भी सक्षम बनाया जाना है।

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