फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी करने वालों पर शिकंजा, कई अधिकारी जांच के घेरे में

छत्तीसगढ़ में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरी पाने वालों पर अब कड़ी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ की सतत मांग और बिलासपुर हाईकोर्ट में लंबित याचिका के तहत राज्य शासन ने यह कदम उठाया है।

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Harrison Masih
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Fake disability certificates case: छत्तीसगढ़ में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरी पाने वालों पर अब कड़ी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ की सतत मांग और बिलासपुर हाईकोर्ट में लंबित याचिका WP(S) No. 3472/2023 के तहत राज्य शासन ने यह कदम उठाया है। 

इस दिशा में राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी विभाग प्रमुखों को आदेश जारी करते हुए फर्जी प्रमाणपत्र धारकों की जानकारी प्रस्तुत करने और राज्य मेडिकल बोर्ड से जांच कराने के निर्देश दिए हैं।

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राज्य सरकार का सख्त एक्शन प्लान

राज्य शासन ने 2 जुलाई 2025 को रायपुर के जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के बोर्ड रूम में राज्य मेडिकल बोर्ड की विशेष बैठक बुलाई है, जिसमें उन कर्मचारियों की भौतिक जांच की जाएगी, जिन पर फर्जी दिव्यांगता के आरोप हैं। जांच के लिए सभी संदिग्धों को अपने चिकित्सा दस्तावेजों की विशेषज्ञ चिकित्सकों से प्रमाणित प्रति के साथ अनिवार्य रूप से उपस्थित होने के निर्देश दिए गए हैं।

इनमें शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, कृषि, पशुधन, जल संसाधन, विधि, सामान्य प्रशासन, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभागों के कर्मचारी शामिल हैं। यदि दोष साबित होते हैं, तो संबंधित कर्मचारियों की नौकरी तक समाप्त की जा सकती है।

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फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों में बड़े पदनाम

दिव्यांग सेवा संघ के अध्यक्ष बोहित राम चंद्राकर के अनुसार, फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र लगाकर नौकरी करने वालों की संख्या 21 से अधिक है, जिनमें शामिल हैं:

7 डिप्टी कलेक्टर, 3 नायब तहसीलदार, 3 लेखा अधिकारी, 3 पशु चिकित्सक, 2 सहकारिता निरीक्षक। इन सभी ने PSC के माध्यम से चयन के दौरान फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए।

लोरमी और जांजगीर-चांपा: फर्जीवाड़े के केंद्र

इस पूरे मामले में मुंगेली जिले का लोरमी ब्लॉक और जांजगीर-चांपा सबसे अधिक संदेह के घेरे में हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार लोरमी के 6 से 7 गांवों में पिछले 10 वर्षों में 300 से अधिक लोगों के बहरे होने का दावा किया गया है।

इनमें से 147 लोगों ने श्रवण बाधित प्रमाणपत्र बनवाकर सरकारी नौकरियों में नियुक्ति पाई। इनमें से अधिकतर के सरनेम "राजपूत", "राठौर" और "सिंह" हैं। कई बहुएं विवाह के बाद इन गांवों में आईं और कुछ ही समय में श्रवण बाधित प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया।

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कृषि विभाग में सबसे ज्यादा फर्जी नियुक्ति

दिव्यांगों के लिए जारी विशेष भर्ती अभियान के तहत ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी और कृषि शिक्षक के पदों पर बड़ी संख्या में नियुक्तियां की गईं, जिनमें फर्जीवाड़ा उजागर हुआ:

50 ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी – सभी ने श्रवण बाधित प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया

3 कृषि शिक्षक – इन पर भी फर्जी प्रमाणपत्र का संदेह

अकेले सारधा, लोरमी, झाफल, सुकली, फुलार, विचारपुर और बोडतरा गांव ऐसे हैं जहां से बड़ी संख्या में संदिग्ध प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।

दो डॉक्टरों की भूमिका संदिग्ध

दिव्यांग सेवा संघ के अनुसार, बिलासपुर और मुंगेली में पदस्थ दो डॉक्टरों के हस्ताक्षर से जारी अधिकांश प्रमाणपत्रों की वैधता पर सवाल उठे हैं। इनमें से एक डॉक्टर वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में उच्च पद पर पदस्थ हैं। इन डॉक्टरों की भूमिका की भी जांच की मांग की गई है।

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न्यायिक आदेश और पारदर्शिता की दिशा में पहल

यह पूरी कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश और याचिकाकर्ता संजय कुमार मरकाम द्वारा दायर जनहित याचिका के आधार पर की जा रही है। इसका उद्देश्य है वास्तविक दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा, फर्जीवाड़ा करने वालों पर कड़ी कार्रवाई, नियुक्तियों में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना। 

राज्य शासन की यह पहल छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार, जातिगत अनुचित लाभ और फर्जी प्रमाणपत्रों के गोरखधंधे पर लगाम लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और साहसिक कदम माना जा रहा है। आगामी मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के बाद अधिकारी स्तर पर बर्खास्तगी, एफआईआर और रिकवरी जैसी कड़ी कार्रवाई संभव है।

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