पार्षद के सहारे मेयर उम्मीदवारों की किस्मत... ऐसे पार होगी नैया

Chhattisgarh Local Body Election 2025 : बीजेपी और कांग्रेस में टिकट चाहे जिस भी नेता को मिले, उसे अपनी पार्टी के पार्षद उम्मीदवारों के सहारे ही नैया पार करनी होगी।

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Kanak Durga Jha
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fate of mayor candidates depends on councillor candidates
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Chhattisgarh Local Body Election 2025 : बीजेपी और कांग्रेस में टिकट चाहे जिस भी नेता को मिले, उसे अपनी पार्टी के पार्षद उम्मीदवारों के सहारे ही नैया पार करनी होगी। उसकी वजह ये कि 10 दिन में वे पांच लाख वोटर तक किसी भी हालत में नहीं पहुंच सकते।

प्रचार के लिए उन्हें पार्षद प्रत्याशियों का सहारा लेना ही पड़ेगा। यानी उनकी जोत-हार काफी हद तक पार्षद प्रत्याशियों पर निर्भर करेगी। नगर निगम के 70 वार्डों में 5 लाख 6 हजार 162 मतदाता हैं। सभी मतदाताओं तक पार्षद प्रत्याशी तो पहुंच सकते हैं, लेकिन अकेले मेयर कैंडिडेट के लिए यह लगभग असंभव है। 

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उसकी वजह ये कि 28 जनवरी को अंतिम रूप से नामांकन फॉर्म जमा होने के बाद मेयर कैंडिडेट के पास प्रचार के लिए गिनती के दिन रह पाएंगे। 11 फरवरी को निगम क्षेत्र के 500 मतदान केंद्रों में ईवीएम से बोटिंग होगी। ऐसे में उनके पास केवल 10 दिन का समय रहेगा। उसमें भी एक दिन वे शांतिपूर्वक रूप से केवल जनसंपर्क ही कर सकेंगे। 

चूंकि प्रचार के लिए कम समय है, ऐसे में बीजेपी होगा या फिर कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी, उन्हें अपनी पार्टी के पार्षद उम्मीदवारों को अपने प्रचार की जिम्मेदारी देनी होगी। यह पार्टी स्तर पर या फिर व्यक्तिगत रूप से भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि मेयर प्रत्याशी पार्षद उम्मीदवारों को चुनाव में मदद करें। बानी, उन्हें प्रचार सामग्री उपलब्ध कराएं, ताकि इसके बदले उन्हें वे उनके प्रचार में सहयोग करें। 

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अपने साथ बांटेंगे मेयर कैंडिडेट का पर्चा

यह माना जा रहा है कि अधिकांश पार्षद प्रत्याशी बार्ड में अपने साथ ही अपनी पार्टी के मेयर कैंडिडेट का पर्चा भी घर-घर बांटते नजर आएंगे। वहीं जिन वार्डों में पार्टी की स्थिति कमजोर है, वहां वे वार्ड के मतदाताओं से मेयर प्रत्याशी का परिचय भी कराते दिख सकते हैं। डोर-टू-डोर प्रचार में पार्षद प्रत्याशी मेयर कैंडिडेट के साथ नजर आ सकते हैं।

सहयोग का फार्मूला काफी पुराना 

पार्षद व मेयर प्रत्याशियों के एक-दूसरे को सहयोग करने का फार्मूला कोई नया नहीं है। विगत चुनाव को छोड़ दें, तो उससे पहले के निगम चुनाव में वे एक-दूसरे को मदद करते रहे हैं। हालांकि, कई बार मेयर प्रत्याशियों को पार्षद उम्मीदवारों से धोखा मिलने की खबरें भी आती रही हैं।

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इधर, त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में भी यह फार्मूला लागू है। जनपद पंचागत सदस्य के मजबूत उम्मीदवार, सरपंच प्रत्याशियों को अपने पंचायत में बोट दिलाने की जिम्मेदारी देते हैं। वहीं जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने वाले भी इसी तरह की उम्मीद सरपंच प्रत्याशियों से करते हैं।

 

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