फर्जी बिल से सरकार को लगाया 341 करोड़ का चूना, चौंकाने वाला खुलासा

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड से जुड़े 341 करोड़ रूपए के घोटाले में खुलासा सामने आया है। डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा के बीच नियमित मोबाइल संपर्क और रीजेंट की आपूर्ति में मिलीभगत के प्रमाण EOW के पास मौजूद हैं। 

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छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) से जुड़े 341 करोड़ रूपए के मेडिकल सप्लाई घोटाले में चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। EOW की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, इस घोटाले के पीछे एक संगठित गिरोह सक्रिय था, जिसमें दो प्रमुख नाम उभरकर सामने आए हैं डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा। दोनों के बीच नियमित मोबाइल संपर्क और रीजेंट की आपूर्ति में मिलीभगत के प्रमाण EOW के पास मौजूद हैं। 

यह है CGMSC घोटाला 

CGMSC राज्य सरकार की वह संस्था है जो अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए दवाइयों, जांच उपकरणों और मेडिकल रीजेंट की खरीद करती है। EOW की जांच के मुताबिक, रीजेंट की खरीद में भारी अनियमितता की गई। वर्ष 2021-2023 के बीच करीब 341 करोड़ रूपए की आपूर्ति ऐसे फर्जी बिलों और घटिया क्वालिटी वाले उत्पादों के माध्यम से की गई, जिनमें न तो गुणवत्ता की जांच हुई और न ही उचित मूल्यांकन।

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डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा की भूमिका

EOW की रिपोर्ट में सामने आया है कि डॉ. अनिल परसाई, जो पूर्व में मेडिकल खरीद प्रक्रिया से जुड़े रहे हैं, ने अपने प्रभाव और नेटवर्क का दुरुपयोग कर कुछ कंपनियों को फर्जी टेंडर दिलवाए। उन्होंने रीजेंट की आपूर्ति में रेट तय करने, टेंडर की शर्तों को प्रभावित करने और तकनीकी समितियों पर दबाव बनाने जैसे कई स्तरों पर हस्तक्षेप किया।

शशांक चोपड़ा, जो कि मेडिकल उपकरण आपूर्ति से जुड़ी कंपनियों के प्रमोटर माने जाते हैं, ने इन सभी कार्यों के लिए आर्थिक लेन-देन और लॉजिस्टिक सपोर्ट प्रदान किया। दोनों के बीच मोबाइल कॉल्स, मैसेजिंग डेटा, व्हाट्सएप चैट आदि के जरिए नियमित संपर्क के प्रमाण EOW ने जब्त किए हैं, जो घोटाले में उनकी मिलीभगत को स्थापित करते हैं।

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ऐसे काम करता था यह संगठित गिरोह

EOW ने यह स्पष्ट किया है कि यह घोटाला किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि एक पूरी तरह से योजनाबद्ध नेटवर्क द्वारा अंजाम दिया गया। फर्जी कंपनियों को खड़ा किया गया जो सिर्फ दस्तावेजों में मौजूद थीं।

CGMSC में बैठे कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से लो क्वालिटी या डेट-एक्सपायर्ड रीजेंट को मान्यता दिलाई गई। आपूर्ति की गई वस्तुएं बाजार मूल्य से कई गुना अधिक दाम पर खरीदी गईं। भुगतान के लिए फर्जी बिल तैयार किए गए और इनमें सरकारी स्तर पर अप्रूवल दिलवाया गया।

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राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद राज्य के स्वास्थ्य विभाग और पूर्ववर्ती सरकार पर कई सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दलों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच अब CBI के हवाले की जाए, जबकि सरकार का कहना है कि EOW की जांच ही पर्याप्त और प्रभावी है।

EOW अब डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा से औपचारिक पूछताछ की तैयारी कर रही है। उनके बैंक खातों, संपत्तियों और विदेश यात्राओं की भी जांच की जा रही है। रिपोर्ट में यह भी संकेत है कि जल्द ही कुछ गिरफ्तारियां हो सकती हैं। CGMSC से जुड़े 341 करोड़ रूपए के इस घोटाले ने स्वास्थ्य सेवाओं की पारदर्शिता और आपूर्ति तंत्र की साख को गहरा झटका दिया है। आने वाले दिनों में जांच की दिशा और गति राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिरता पर भी असर डाल सकती है।

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FAQ

1: CGMSC घोटाला क्या है और इसमें 341 करोड़ रुपये की हेराफेरी कैसे हुई?
उत्तर: CGMSC (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के तहत अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के लिए मेडिकल रीजेंट और उपकरणों की खरीद में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ। 2021 से 2023 के बीच करीब 341 करोड़ रुपये की आपूर्ति फर्जी बिल, घटिया गुणवत्ता और ओवरप्राइसिंग के जरिए की गई। यह घोटाला संगठित तरीके से फर्जी कंपनियों, अधिकारियों और सप्लायर्स की मिलीभगत से अंजाम दिया गया।
2: डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा की इस घोटाले में क्या भूमिका रही है?
उत्तर: EOW की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. अनिल परसाई ने तकनीकी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर टेंडर दिलवाने, रेट फिक्सिंग और क्वालिटी अप्रूवल में हस्तक्षेप किया। शशांक चोपड़ा, जो मेडिकल सप्लाई कंपनियों से जुड़े हैं, ने फर्जी कंपनियों के जरिए आपूर्ति कराई और वित्तीय ट्रांजेक्शन को मैनेज किया। दोनों के बीच नियमित मोबाइल संपर्क और मैसेजिंग के प्रमाण मिले हैं।
3: आगे इस घोटाले की जांच में क्या-क्या हो सकता है?
उत्तर: EOW अब डॉ. परसाई और शशांक चोपड़ा से पूछताछ करेगी, उनके बैंक खातों, संपत्तियों और विदेशी संबंधों की जांच की जा रही है। कुछ अधिकारियों और कारोबारियों की गिरफ्तारी की संभावना जताई जा रही है। साथ ही, इस मामले को लेकर राजनीतिक दबाव भी बढ़ रहा है, जिससे जांच को CBI को सौंपे जाने की मांग तेज हो गई है.

 

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