अरपा-भैंसाझाड़ नहर परियोजना में भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों पर सरकार की मेहरबानी, दोषी 11 में से सिर्फ तीन पर ही कार्रवाई

छत्तीसगढ़ की अरापा-भैंसाझाड़ नहर परियोजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ। इस भारी भ्रष्टाचार के लिए 11 अधिकारियों की बड़ी भूमिका थी। लेकिन इन 11 अधिकारियों में से सिर्फ तीन पर कार्रवाई की गई बाकी अधिकारी या तो रिटायर हो गए या फिर नौकरी में मजे मार रहे हैं।

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Arun Tiwari
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रायपुर : भारतमाला प्रोजेक्ट की तरह छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नहर परियोजना में भी बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। ये है बिलासपुर की अरपा-भैंसाझाड़ नहर परियोजना। इस परियोजना में भी अधिकारियों ने बिल्डर और व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों का हक मार लिया। जो जमीन इस नहर परियोजना में नहीं आ रही थी उसका भी मुआवजा बांट दिया गया।

इस परियोजना में हुए भारी भ्रष्टाचार के लिए 11 अधिकारियों की बड़ी भूमिका थी। लेकिन इन 11 अधिकारियों में से सिर्फ तीन पर कार्रवाई की गई बाकी अधिकारी या तो रिटायर हो गए या फिर नौकरी में मजे मार रहे हैं। सवाल यही है कि सरकार का ये कैसा भष्टाचार पर जीरो टॉलरेस है जिसमें करॅप्ट अधिकारी नौकरी में जमे हुए हैं।   

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अफसरों ने खोदी भ्रष्टाचार की नहर 

भारतमाला परियोजना की तरह ही छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नहर परियोजना में सरकारी अधिकारियों ने भ्रष्टाचार का पानी बहा दिया। बिलासपुर की 1100 करोड़ की अरपा-भैंसाझाड़ नहर परियोजना में एसडीएम से लेकर पटवारी तक ने बिल्डरों और व्यापारियों के साथ मिलकर करोड़ों का भ्रष्टाचार कर दिया। इसमें भी जमीनों के लेन देन का खेल किया गया।

ग्राम सकरी के 18 खसरों की छह एकड़ जमीन पर मुआवजा बना दिया गया जबकि यह जमीन इस नहर परियोजना के तहत नहीं आ रही है लेकिन करोड़ों का मुआवजा बनाकर अधिकारियों ने खेल कर दिया। अधिकारियों ने इस नहर को भ्रष्टाचार की नहर बनाकर अपने घर तक खुदवा दिया।

इस परियोजना में भ्रष्टाचार के लिए 11 अधिकारियों को दोषी माना गया लेकिन हैरानी की बात है इनमें से सिर्फ तीन को ही सस्पेंड या डिसमिस किया गया बाकी 8 लोगों को विभागीय जांच के नाम पर खानापूर्ति कर दी। इनमें से कुछ रिटायर हो गए हैं तो कुछ अभी भी नौकरी पर जमे हुए हैं। यहां पर सवाल ये उठता है कि आखिर इन अफसरों पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों है। 

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इन दोषी अफसरों पर की गई कार्यवाही

आनंदरुप तिवारी - तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी ने अवार्ड पारित किए जाने में अनियमितता की जिससे सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ। इनको सस्पेंड कर दिया गया। 

मुकेश साहू - तत्कालीन पटवारी ने नक्शे में त्रुटिपूर्ण बटांकन किया और नक्शा तैयार करने में अनियमितता बरती। साहू को सरकार ने नौकरी से डिसमिस कर दिया है। 

दिलशाद अहमद - तत्कालीन पटवारी ने नक्शे में त्रुटिपूर्ण बटांकन किया और नक्शा तैयार करने में अनियमितता बरती। इसको भी सस्पेंड कर दिया गया है। 

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इन दोषी अफसरों पर मेहरबानी 

कीर्तिमान सिंह राठौर - तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी - इन्होंने नहर परियोजना के लिए आ रही जमीन का त्रुटिपूर्ण बटांकन किया और नक्शा तैयार करने में अनियमितता बरती। इनका प्रकरण नस्तीबद्ध कर दिया गया है। 

मोहरसाय सिदार - तत्कालीन नायब तहसीलदार  - इन्होंने भी नियम विरुद्ध बटांकन कर रसूखदारों को फायदा पहुंचाया। सरकार को इनकी जानकारी ही नहीं है। विभाग ने बिलासपुर संभाग में पत्र भेजकर पूछा है कि इन पर क्या कार्यवाही की गई है। 

हूल सिंह  - तत्कालीन राजस्व निरीक्षक  -  इन्होंने भी गलत बटांकन किया है। ये सरगुजा में पदस्थ हैं। इन पर विभागीय जांच की खानापूर्ति की जा रही है। 

आरएस नायडू  - तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर,जल संसाधन  - इन्होंने भी बटांकन में खेल किया। अब ये रिटायर हो गए हैं। 

एके तिवारी  - तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर,जल संसाधन  - इन्होंने अवार्ड पारित करने में अनियमितता बरती है। यह भी रिटायर हो गए हैं। 
 
राजेंद्र प्रसाद मिश्रा  - तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी  - इन्होंने भी बटांकन में गड़बड़ी की। यह भी रिटायर हो गए हैं। 

एसएल द्वेदी  - तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी  - ये भी अवार्ड पारित करने में अनियमितता के दोषी हैं। यह कोरबा में सुपरीटेंडेंट इंजीनियर के पद पर पदस्थ हैं। 

आके राजपूत  - तत्कालीन सब इंजीनियर  - इन्होंने भी नहर परियोजना में अनियमितता बरती। ये वर्तमान में अनुविभागीय अधिकारी,रतनपुर जिला बिलासपुर में पदस्थ हैं। 

इस तरह हुआ फर्जीवाड़ा  

किसान शत्रुहन की 41 डिसमील व मेंड्रा निवासी किसान लक्ष्मण की 27 डिसमील जमीन नहर निर्माण के लिए अधिग्रहित की गई थी। इनके नाम से मुआवजा प्रकरण भी बना। पटवारी मुकेश साहू ने मुआवजा पत्रक व भूअर्जन दस्तावेजों में कांट-छांट कर दोनों किसानों के नाम को गायब कर दिया। दोनों किसानों के बजाय 41.32 लाख का फर्जी भुगतान आसमां बिल्डर्स के नाम मुआवजा बना दिया और राशि का भुगतान भी कर दिया गया।

इसका फर्जी प्रतिवेदन पटवारी मुकेश साहू ने जुलाई 2020 में बनाया। खास बात ये कि 29 जून 2020 को मुकेश साहू को पटवारी पद से भार मुक्त कर दिया गया था। लेकिन मुकेश रिलीव होने के बाद भी वहां पर पटवारी का काम करता रहा और भ्रष्टाचार को अंजाम देता रहा। इस फर्जीवाड़े के किंगपिन मुकेश साहू को सरकार ने प्रमोट कर आरआई बना दिया था। जबकि एसडीएम आनंदरुप तिवारी को प्रमोशन देकर आरटीओ बना दिया गया। 

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बदल दिया नहर का एलाइनमेंट 

 लोरमी निवासी मनोज अग्रवाल की जिस 29 डिसमिल जमीन का मुआवजा देने के लिए पटवारी व राजस्व अफसरों ने नहर का एलाइमेंट बदल दिया। उस जमीन के अधिग्रहण के लिए शासन स्तर पर राजपत्र में प्रकाशन भी नहीं हुआ। राजस्व अमले और अफसरों ने एक व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए कागजों में पूरा खेल कर दिया और सरकारी खजाने को जमकर नुकसान पहुंचाया है। पटवारी मुकेश साहू और एसडीएम तिवारी ने एक और खेला किया। बिलासपुर साकेत एक्सटेंशन निवासी पवन अग्रवाल का मुआवजा पत्रक से नाम काटकर लोरमी निवासी शारदा देवी व मनोज के नाम 88.76 लाख का फर्जी मुआवजा बनाकर भुगतान कर दिया। 

अब तक प्रोजेक्ट अधूरा  

बिलासपुर के कोटा ब्लॉक के भैंसाझार में अरपा नदी पर 1,141 करोड़ रुपए की लागत से अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट का निर्माण 2013 से चल रहा है। अब तक 95 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। ठेकेदार की ओर से मुख्य नहर के साथ ही शाखा नहरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके बनते ही जिले के 3 ब्लॉक के 102 गांवों के करीब 25 हजार हेक्टेयर खेतों तक खरीफ फसल के लिए पानी पहुंचेगा।

जल संसाधन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों का दावा है कि इस साल के अंत तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा। परियोजना का शिलान्यास पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी ने 2013 में किया था। शुरुआत में इसकी लागत 606 करोड़ रुपए थी। निर्माण कार्य जल संसाधन संभाग कोटा के द्वारा 2013 किया गया था। इसकी निर्माण एजेंसी राधेश्याम अग्रवाल/ सुनील अग्रवाल है। यह परियोजना अभी भी अधूरी है। 

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