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रायपुर : सत्ता संभालने के साथ ही विष्णुदेव साय सरकार ने कहा था कि प्रदेश में धर्मांतरण रोकने के लिए नया और कड़ा कानून लाया जाएगा। लेकिन डेढ़ साल बीतने के बाद भी सरकार धर्मांतरण रोकने का नया कानून नहीं बना पाई है। बजट सत्र में डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कहा था कि जल्द ही नया कानून लागू किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा का मानसून सत्र शुरु हो गया है लेकिन इस सत्र में भी धर्मांतरण के संबंध में विधेयक पेश नहीं किया जा रहा है। सरकार ने कानून का मसौदा तो तैयार कर लिया है लेकिन उसको मंजूरी का इंतजार है। इस मसौदे पर सभी विभागों की सहमति नहीं बन पा रही है और इसीलिए ये कानून अटक गया है।
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छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण बड़ा मुद्दा
छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा है। बीजेपी हमेशा से यह मुद्दा उठाती रही है। बीजेपी नेता दिलीप सिंह जूदेव ने अपने जीते जी बड़े पैमाने पर घर वापसी अभियान चलाया था। अब उनके परिवार वालों ने यह जिम्मा संभाला है। संघ से लेकर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री तक छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर मतांतरण को लेकर चिंता और चिंतन दोनों करते रहे हैं।
संघ के प्रमुख कार्यक्रम में बस्तर से कांग्रेस के पूर्व सांसद रहे अरविंद नेताम को चीफ गेस्ट बनाने के पीछे भी धर्मांतरण रोकने का मकसद रहा। बीजेपी जब विधानसभा चुनाव लड़ रही थी तब उसने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के शासनकाल में जमकर धर्मांतरण हुआ है। खासतौर पर आदिवासी इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं।
बीजेपी के नेता भी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में धर्मांतरण करने वालों की संख्या लाखों में है लेकिन कानूनी मामले इक्का दुक्का ही दर्ज हो पाते हैं।
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विधानसभा के इस सत्र में नहीं आएगा कानून
बीजेपी सरकार को प्रदेश में सत्ता संभाले डेढ़ का वक्त बीत चुका है। लेकिन इन महीनों में भी सरकार धर्मांतरण रोकने का कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं कर पाई है। सीएम विष्णुदेव साय और डिप्टी सीएम और गृहमंत्री विजय शर्मा कह चुके हैं कि सरकार धर्मांतरण रोकने के लिए नया और कड़ा कानून ला रही है।
ऐसा नहीं है कि धर्मांतरण के लिए कोई कानून नहीं है लेकिन इसके बाद भी धर्मांतरण बदस्तूर जारी है। इसीलिए साय सरकार ने नया कानून लाने का ऐलान किया। नए कानून का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया लेकिन इस पर अंतिम मुहर नहीं लग पा रही है। यही कारण है कि धर्मांतरण का नया कानून अटक गया है। धर्मांतरण विधेयक विधानसभा के मानसून सत्र में भी पेश नहीं किया जा रहा है।
यहां अटक गया कानून
दरअसल नए कानून का मसौदा तो तैयार हो गया है लेकिन उस पर अभी सभी विभागों की सहमति नहीं मिल पाई है। नए कानून के लिए संबंधित विभाग और विधि विभाग मिलकर ड्राफ्ट तैयार करते हैं। इसमें कानूनी जानकारों के साथ भी राय मशवरा किया जाता है। ड्राफ्ट तैयार होने के बाद सभी विभागों की सहमति ली जाती है।
सीएम की मंजूरी के बाद इस बिल को कैबिनेट में पेश किया जाता है। कैबिनेट की मुहर लगने के बाद इस विधेयक को विधानसभा में पेश कर पास कराया जाता है। धर्मांतरण के इस कानून पर अभी सभी विभागों की सहमति नहीं मिल पाई है। यही कारण है कि इस विधेयक को मानसून सत्र में पेश नहीं किया जा रहा है। सरकार की कोशिश है कि विधानसभा के अगले यानी शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को विधानसभा में पेश करने की है।
इतने हैं धर्मांतरण के मामले
पिछले बजट सत्र यानी मार्च 2025 में डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने विधानसभा में कहा था कि जल्द ही धर्मांतरण के लिए नया कानून सामने लाया जा रहा है। आंकडों के मुताबिक 2020 में 1 मामला दर्ज किया गया। 2021 में 7 मामले, 2022 में 3 मामले, 2023 में कोई मामला दर्ज नहीं, 2024 में 12 मामले और इस साल मार्च तक राज्य में 4 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों से ही साफ होता है कि धर्मांतरण की जड़ें इतनी गहरी जमी हुई हैं कि मतांतरण होता तो लाखों में है लेकिन उसके खिलाफ दर्ज मामले दहाई तक भी नहीं पहुंच पाते।
यूपी की तर्ज पर नया मसौदा
छत्तीसगढ़ में अब किसी एक धर्म से दूसरे धर्म में जाना आसान नहीं होगा। इसके लिए पूरी प्रक्रिया और नियम कानून का पालन करने के बाद धर्म बदला जा सकेगा। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार धर्म स्वातंत्र्य कानून बनाने जा रही है। इसमें नियमों का उल्लंघन या जबरिया धर्म परिवर्तन कराने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान किया जाएगा।
धर्मांतरण की पूरी प्रक्रिया को एक नियम के दायरे में लाया जा रहा है। इस नियम के बाहर जाकर कोई धर्म बदलेगा तो उसको कानूनी मान्यता नहीं दी जाएगी। इसके अलावा प्रलोभन या दबाव डालकर धर्म परिवर्तन करने वाले को दोषी मानते हुए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
विभिन्न राज्यों में इस संबंध में बनाए गए नियम कानून का छत्तीसगढ़ के गृह विभाग ने अध्ययन किया है। इसमें उत्तर प्रदेश का कानून सबसे मजबूत बताया जा रहा है। इस कारण उत्तरप्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य कानून का बहुत अधिक हिस्सा यहां लिया जाएगा। इसके तहत एक प्रक्रिया बनाने के साथ ही दोषी लोगों को कड़ी सजा देने की प्रक्रिया का खासतौर पर ध्यान दिया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में फिलहाल 1968 में बनाए गए अधिनियम के प्रावधान ही लागू हैं। बीच में इसको बदलने का प्रयास किया गया था। सन 2006 में तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेताम ने विधानसभा में धर्मांतरण पर कानून लाया था लेकिन उस समय के राज्यपाल ने इसको मंजूरी नहीं दी और पूरे विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। वह कानून आज तक राष्ट्रपति के पास से मंजूर होकर वापस नहीं आया है। इस कारण राज्य में नए सिरे से धर्मांतरण पर अंकुश के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया की जा रही है।
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