हसदेव बचाओ आंदोलन हुआ तेज,अडानी ने किया कोयला खदान का उद्घाटन,फूटा आदिवासियों का गुस्सा

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य बचाने का आंदोलन अब बड़ा रुप लेता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में इस इलाके में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसने आंदोलन की आग को और भड़का दिया है।

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Arun Tiwari
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रायपुर:छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य बचाने का आंदोलन अब बड़ा रुप लेता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में इस इलाके में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसने आंदोलन की आग को और भड़का दिया है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य का यहां दौरा हुआ तो उनके सामने हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्यों का गुस्सा फूट पड़ा।

इसी दौरान महाराष्ट्र बिजली कंपनी को अडानी कंपनी जिस खदान से कोयला देने वाली है उसका उद्घाटन कर दिया गया। इसके चलते आदिवासियों ने अपना आंदोलन तेज कर दिया है। धरना देकर हसदेव बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने  अपना मांगपत्र रखा। उन्होंने कहा कि हसदेव की कोयला खदानों के लिए जितनी अनुमतियां दी हैं वे सब रद्द की जाएं। आइए आपको बताते हैं कि हसदेव में किस तरह एक तरफ उद्घाटन और एक तरफ आंदोलन चल रहा है।

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हसदेव बचाने तेज हुआ आंदोलन : 

छत्तीसगढ़ का हरा-भरा हसदेव अरण्य एक बार फिर आंदोलन की गूंज से हिल उठा। हसदेव बचाओ संघर्ष समिति  ने अंबिकापुर में धरना प्रदर्शन कर सरकार से जंगलों की कटाई रोकने और खनन परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग की। समिति ने जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपते हुए चेताया कि अगर हसदेव को नहीं बचाया गया तो यह संघर्ष और तेज होगा।

समिति के सदस्यों ने आरोप लगाया कि राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित तीन कोल ब्लॉक – परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केंते एक्सटेंशन – को MDO अनुबंध के तहत अडानी समूह को सौंपा गया है। इन परियोजनाओं के चलते करीब 12 लाख पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है। यह वही जंगल हैं जहां हाथियों का प्राकृतिक आवास है, जहां संकटग्रस्त प्रजातियां पाई जाती हैं और जहां से हसदेव समेत अन्य नदियां अपनी धारा पाती हैं। 

धरना स्थल पर यह भी बताया गया कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और खनन कार्यों से हाथियों का रहवास खत्म हो रहा है, जिसके कारण वे बस्तियों में आ रहे हैं। नतीजा – मानव-हाथी संघर्ष तेज हुआ है और अब तक सैकड़ों लोग और दर्जनों हाथी जान गंवा चुके हैं। खनन से रामगढ़ की प्राचीन पहाड़ी और नाट्यशाला को अपूरणीय क्षति पहुंच रही है।

राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र की बिजली कंपनी को भी हसदेव से कोयला दिया जा रहा है। इस खदान का एमडीओ भी अडानी कंपनी के पास है।धरना स्थल पर ग्रामीणों के नारों से माहौल गूंज उठा – “जंगल नहीं कटने देंगे, हसदेव नहीं बिकने देंगे।” समिति ने साफ कहा कि अगर सरकार ने अब भी कदम नहीं उठाए तो आंदोलन और बड़ा होगा।

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ये हैं हसदेव बचाओ समिति का मांगपत्र : 

  • हसदेव अरण्य को  नो-गो क्षेत्र घोषित किया जाए और लेमरू हाथी रिजर्व के 10 किमी दायरे में खनन पर रोक लगे।
  • रामगढ़ पहाड़ी और नाट्यशाला को संरक्षण देते हुए खनन व विस्फोट बंद हों।
  • केंते एक्सटेंशन व परसा कोल ब्लॉक की सभी स्वीकृतियां निरस्त हों।
  • प्रभावित ग्रामीणों पर दर्ज फर्जी मुकदमे हटाए जाएं।
  • नदियों में खनन से फैल रहे प्रदूषण को रोका जाए और माइनिंग क्लोजर प्लान के अनुसार काम किया जाए। 
  • पेड़ कटाई हादसे में मारे गए मजदूर कमलेश सिदार को सरकारी मुआवजा दिया जाए।

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राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष के सामने फूटा गुस्सा : 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य के सामने हसदेव बचाओ आंदोलन और सर्व आदिवासी समाज के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। समाज प्रमुखों की बैठक में आदिवासी समाज की महिला प्रभाग की प्रमुख सविता साय ने हसदेव को संवेदनशील मुद्दा बताते हुए पेड़ों की कटाई रोकने की मांग की। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थल की एक ईंट निकालने पर पूरे देश में बवाल मच जाता है और उनके देवताओं के पूरे जंगल को उजाड़ा जा रहा है और किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। 

अडानी ने शुरु किया कोयला खदान का संचालन : 

एक तरफ आंदोलन की आग भड़क रही है तो दूसरी तरफ अडानी कंपनी ने छत्तीसगढ़ की बड़ी खदानों में से एक, गारे-पेल्मा कोयला खदान का उद्घाटन कर संचालन शुरु कर दिया। यहां से कोयला महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको) को दिया जाएगा। यहां का एमडीओ भी अडानी कंपनी के पास है। रायगढ़ जिले के तमनार तहसील में स्थित गारे-पेल्मा कोयला खदान का काम शुरु कर दिया गया है।

खदान के बॉक्स कट गतिविधि की शुरुआत महाजेनको के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बी राधाकृष्णन (IAS) की उपस्थिति में की गई। यह कोयला खदान परियोजना छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे बड़ी खदानों में से एक है, जिसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 23.6 मिलियन टन है। यह खदान महाराष्ट्र राज्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगी और चंद्रपुर, कोराडी और पारली जैसे थर्मल पावर प्लांट्स को कोयला आपूर्ति की जाएगी।

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अब राजस्थान के बाद महाराष्ट्र सरकार को भी अपनी बिजली के लिए छत्तीसगढ़ से कोयला चाहिए। इस कोयले को निकाले के लिए महाराष्ट्र पॉवर जनरेशन कंपनी ने अडानी को ही अपना एमडीओ बनाया है। यानी अडानी कंपनी ही महाराष्ट्र पॉवर जनरेशन कंपनी को कोयला मुहैया कराएगी। इसके लिए फिर पेड़ काटे जाएंगे। यह कोल ब्लॉक गारे पेलमा सेक्टर में है। यह कोल ब्लॉक 14 गांवों के अंतरगत आता है। 

कोल ब्लॉक का कुल एरिया 2583 हेक्टेयर है। इसमें 200 हेक्टेयर फॉरेस्ट एरिया है।कोयला निकालने का काम अडानी कंपनी को मिला है। यानी एक तरफ कोयला निकाला जा रहा है और दूसरी तरफ आंदोलन हो रहा है। अगर यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन बड़ी शक्ल ले लेगा जिससे सरकार के लिए हालात मुश्किल हो सकते हैं।

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