hasdeo forest : आज हम आपको बताएंगे अडानी,हसदेव और कोयले की नई कहानी। इसके बारे में अधिकांश लोगों को कम ही जानकारी है। हसदेव की जिस खदान से अडानी कंपनी कोयला निकाल रही है, उसमें 15 साल की बिजली बनाने के लिए कोयला उपलब्ध है। यानी यही एक कोल ब्लॉक राजस्थान की 15 साल की बिजली की जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त है।
अडानी ही इसका एमडीओ है। इसके बाद भी अडानी को तीन कोल ब्लॉक अलॉट हैं। इनमें से कोयला निकालने के लिए 12 लाख पेड़ की बलि दिए जाने की अनुमति अडानी के पास है। यहीं पर पुलिस और आदिवासियों का संघर्ष हो रहा है।
सवाल यही है कि आखिर जब एक खदान में ही पर्याप्त कोयला है तो फिर बाकी खदानों के लिए पेड़ काटकर हसदेव को उजाड़ने की इजाजत क्यों दी जा रही है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि केंद्र सरकार के कोल प्राधिकरण की रिपोर्ट यही कहती है।
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तीन खदानों का एमडीओ बनाया
अडानी कंपनी को राजस्थान में बिजली के लिए कोयला देने तीन खदानों का एमडीओ बनाया गया है। यानी हसदेव अरण्य की इन खदानों से कोयला निकालकर अडानी कंपनी राजस्थान बिजली कंपनी को सप्लाई करेगी।
हसदेव की पीईकेबी यानी परसा ईस्ट केते बासन चालू खदान है जिससे अडानी कंपनी राजस्थान की बिजली कंपनी को कोयला सप्लाई कर रही है। अब आपको बताते हैं कि राजस्थान को हर साल कितने कोयले की सालाना जरुरत है और इस खदान में कितना कोयला उपलब्ध है।
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- केंद्र सरकार की संस्था कोल प्राधिकरण कोयले की आवश्यकता और उत्पादन के मापदंड तय करती है।
- कोल प्राधिकरण की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान को अपनी बिजली की जरुरतें पूरी करने के लिए सालाना 21 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है।
- हसदेव की चालू खदान पीईकेबी से सालाना 21 मिलियन टन कोयला निकालकर अडानी कंपनी राजस्थान बिजली कंपनी को सप्लाई कर रही है।
- पीईकेबी कोल ब्लॉक में 310 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है।
- यह कोयला आने वाले 15 साल तक राजस्थान की बिजली आवश्यकता को पूरा करेगा।
- इन 15 सालों में कोयले के दूसरे विकल्प तलाशे जा सकते है जिससे हसदेव का उजड़ना रुक जाएगा।
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अब सवाल ये है कि जब एक खदान ही राजस्थान की आवश्यकता को पूरा कर रही है तो फिर 2 और खदानों से कोयला निकालने की जरुरत क्या है।
- पीईकेबी से कोयला निकालने के लिए 3 लाख 67 हजार पेड़ काटे जाने हैं। साल 2009 से इनको कटाई चल रही है। अब तक डेढ़ लाख पेड़ काटे जा चुके हैं।
- दूसरी कोयला खदान परसा कोल ब्लॉक है जिसमें 96 हजार पेड़ काटे जा रहे हैं।
- तीसरी कोयला खदान केते एक्सटेंशन में 6 लाख पेड़ हैं।
- इस तरह यदि तीनों कोल ब्लॉक चालू किए जाते हैं तो 10 से 12 लाख पेड़ कट जाएंगे।
- चालू खदान के अलावा दो अन्य खदानों की अनुमति निरस्त कर दी जाए तो इतने पेड़ कटने से बच सकते हैं।
राजस्थान के इन चार पॉवर प्लांट में हसदेव खदान से कोयला जा रहा है।
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छाबरा पॉवर स्टेशन - 3 और 4
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छाबरा पॉवर स्टेशन - 5 और 6
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कालीसिंध पॉवर स्टेशन
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सूरतगढ़ पॉवर स्टेशन
इन खदानों का आवंटन रद्द करने की मांग को लेकर हसदेव बचाओ संघर्ष समिति ने आंदोलन शुरु कर दिया है। इन आंदोलनकारियों ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि सरकार कितना भी दमन कर ले हम अपना जंगल जमीन नहीं छोड़ेंगे।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के द्वारा ग्राम हरिहरपुर में आयोजित आदिवासी, किसान सम्मेलन में स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि सरकार को जितना दमन करना है, जेल में डालना है डाल दे लेकिन हम अपना जंगल जमीन नहीं छोड़ेंगे। मर जाएंगे, लेकिन अडानी कंपनी को अपना जंगल जमीन नहीं देंगे।
ग्रामसभा ने कभी कोई सहमति नहीं दी
ग्रामीणों का कहना है कि हमारी ग्रामसभा ने कभी कोई सहमति नहीं दी है सरकार जबरन हम आदिवासियों से सब कुछ छीनकर कंपनी को सौंप रही है। बिलासपुर से हरिहरपुर हसदेव बचाओ पदयात्रा का समापन हरिहरपुर में हुआ। इस मौके पर आदिवासी, किसान सम्मेलन के रूप में सभा का आयोजन किया गया जिसमें प्रदेश भर से पर्यावरणीय संवेदनशील नागरिक और आदिवासी अधिकारों के लिए कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
इस मामले में नवंबर में सुप्रीम कोर्ट नोटिस जारी कर चुकी है। हसदेव अरण्य को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की सिफारिश के हिसाब से खनन मुक्त करने और संरक्षित करने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और अडानी समूह की दो कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भूयान की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर यह नोटिस जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका के अलावा परसा कॉल ब्लॉक में खनन प्रारंभ न करने के आवेदन पर भी नोटिस जारी किए हैं।
इसमें यह बताया गया है कि पहले से चालू खदान पीएकेबी का उत्पादन राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की वार्षिक आवश्यकता को पूरा कर रहा है और इस कारण भी किसी नए खदान को खोलने की आवश्यकता नहीं है।